डीजल-पेट्रोल की खपत कम करने के लिए जो सरकार रात में पेट्रोल पंप बंद रखने का सुझाव उछाल रही है, आप उसकी पेट्रोल खपत के बारे में सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे. भारत में डीजल-पेट्रोल का सबसे ज्यादा उपभोग कोई और नहीं, खुद सरकार ही करती है. आप 'वेहिकल-पूलिंग' करके दफ्तर जा रहे हैं लेकिन मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों की जिंदगी में पेट्रोल पानी की तरह बह रहा है.
केंद्र और प्रदेश सरकार के मंत्रियों, अधिकारियों और यहां तक कि सार्वजनिक इकाइयों और दूसरी सरकारी एजेंसियों के लिए पेट्रोल की खपत की कोई सीमा निर्धारित नहीं है.मंत्रालय अपने बिल वाउचर में ईंधन के खर्च को 'दफ्तर के खर्च' में जोड़कर पेश करते हैं. इसमें स्टेशनरी से लेकर टॉयलेट पेपर तक का खर्च शामिल है. अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी खबर के मुताबिक 2011-12 में केंद्र सरकार का 'दफ्तर का खर्च' 5,200 करोड़ था. इसमें बड़ा हिस्सा ईंधन (डीजल-पेट्रोल) का था.
महीने की न्यूनतम खपत ढाई लाख लीटर
अब दिल्ली में रह रहे केंद्रीय मंत्रियों, सचिवों, संयुक्त-अतिरिक्त सचिवों औऱ निदेशकों की सरकारी गाड़ियों की बात करते हैं. दिल्ली में 70 सचिव, 131 अतिरिक्त सचिव, 525 संयुक्त सचिव औऱ 1200 निदेशक हैं. सभी निदेशकों को सरकारी गाड़ी नहीं मिली है, पर कई को मिली है. अगर हम सभी सचिवों, अतिरिक्त सचिवों, संयुक्त सचिवों और आधे निदेशकों को हर महीने 200 लीटर पेट्रोल दें, तो महीने की खपत 2.56 लाख लीटर तक पहुंच जाती है.
यह न्य़ूनतम अनुमान है, क्योंकि इन अधिकारियों के लिए पेट्रोल खपत की कोई सीमा निश्चित नहीं है. कुछ मामलों में अगर सीमा है भी तो बहुत ज्यादा है. दिल्ली सरकार के अधिकारियों के लिए 700 लीटर प्रति माह की सीमा तय की गई है. इतने ईंधन में आप 8 बार दिल्ली से मुंबई जाकर वापस आ सकते हैं.
30 करोड़ रुपये सालाना का खर्च
अगर 200 लीटर प्रति व्यक्ति का ही आंकड़ा लेकर चलें, तो केंद्रीय मंत्री मिलकर हर महीने 46,200 लीटर पेट्रोल फूंक देते हैं. इस तरह दिल्ली में 74.10 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मंत्रियों और अधिकारियों का कुल पेट्रोल खर्च हर महीने 230 लाख रुपये हो जाता है. यानी 2,760 लाख सालाना. चूंकि खपत की सीमा तय नहीं है, इसलिए राउंड फिगर में आप इसे 3,000 लाख या 30 करोड़ रुपये सालाना मान सकते हैं.
रात में पेट्रोल पंप बंद करने से क्या होगा!
इस आंकड़े में सैकड़ों टैक्स, संसदीय, रक्षा, सीबीआई, खुफिया और रेलवे अधिकारियों का खर्च शामिल नहीं है. इसमें सैकड़ों सरकार द्वारा चालित कंपनियों का खर्च भी नहीं शामिल है.
अब इस आंकड़े का हर प्रदेश के हिसाब से अंदाजा लगाइए. बात हजारों करोड़ रुपये की है. ऐसी हालत में खुद पर लगाम लगाने के बजाए पेट्रोलियम मंत्री पेट्रोल पंप पर नाइट कर्फ्यू लगाने का शिगूफा छोड़ रहे हैं. कटौती की योजना में कहीं भी खुद पर लगाम लगाने का जिक्र सरकार ने नहीं किया है.