अर्चना की उम्र शादी के लायक है. लेकिन उसके पिता सुरेंद्र सिंह के पास फूटी कौड़ी भी नहीं है कि वे अपनी बेटी के हाथ पीले कर सकें. पांच साल पहले इस दंपती ने सोचा था कि खेती से जो कुछ भी मिलेगा, उससे गृहस्थी चलाने के अलावा बड़ी बेटी के हाथ पीले करने के लिए कुछ बचा लेंगे. पर लगातार तीसरे साल प्रकृति की बेरुखी ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया
सुखाड़ के पहले से संजोकर रखी गई राशि भी खेतीबाड़ी और घर-गृहस्थी में खर्च हो चुकी है. बात यहीं खत्म नहीं होती, सूखे के कारण इस परिवार के समक्ष रोजी-रोटी की ऐसी गंभीर समस्या पैदा हुई कि नवादा जिले के कौआकोल प्रखंड के बिंदीचक गांव निवासी सुरेंद्र सिंह पहली बार रोजगार की तलाश में अपनी तीन बेटियों और दो बेटों को पत्नी संग गांव में छोड़कर पिछले सप्ताह सूरत के लिए रवाना हो गए.
वैसे तो उनके पास तीन बीघा जमीन है. उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड के तहत बैंक से कर्ज लेकर गांव में ही वैकल्पिक व्यवस्था का मन बनाया था.
लेकिन बैंक की त्रुटिपूर्ण कार्यप्रणाली के कारण उन्हें यह मौका नहीं मिला. लिहाजा, परिवार की परवरिश के लिए परदेस जाना उनकी मजबूरी बन गई. उनकी पत्नी आशा देवी कहतीं हैं, ''लगातार सुखाड़ से जमा-पूंजी खत्म हो गई थी, अब बच्चों के भूखों मरने की नौबत आ गई है. लेकिन आज तक सरकारी योजनाओं का कोई भी लाभ नहीं दिया गया. इसलिए उनके पति के पास परदेस जाने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं बचा.''{mospagebreak}
गांव में जमे अन्य किसानों की स्थिति भी कम दयनीय नहीं है. कृष्ण मुरारी सिंह भी तीन बीघा के मालिक हैं. पिछले वर्षों के सुखाड़ की भरपाई के लिए इस वर्ष वे अच्छी खेती की उम्मीद लगाए बैठे थे. लेकिन अनावृष्टि से घर की जमा-पूंजी भी खर्च हो गई. अब पत्नी और बच्चों समेत आठ सदस्यीय परिवार को दो जून की रोटी मिलना भी दूभर हो गया है. इससे निबटने के लिए कृष्ण मुरारी अपनी नौ कट्ठा जमीन गिरवी रखकर 9,000 रु. कर्ज ले चुके हैं.
मुरारी बताते हैं, ''पिछले साल 40,000 रु. का कर्ज मंजूर हुआ था जिसमें से 5,000 रु. बतौर कमीशन ले लिया गया. उत्पादन भी नहीं हुआ और प्रशासनिक लापरवाही से फसल बीमा लाभ भी नहीं मिला. पुराने कर्ज के बकाया रहने से नया कर्ज भी नहीं दिया गया. मजबूरी में अनाज खरीदने और बच्चों के इलाज के लिए जमीन गिरवी रखनी पड़ी है.''
एक ग्रामीण जनार्दन सिंह की हालत भी कुछ इसी तरह की है, जिन्होंने परिवार की परवरिश के लिए पांच फीसदी की ब्याज दर पर गांव के ही दो लोगों से 6,000 रु. बतौर कर्ज लिए हैं. उखड़िया गांव की रेणु देवी और रेखा देवी की हालत इससे भी भयावह है. पति के आकस्मिक निधन के बाद इन्हें दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है. रेणु स्कूल में पोषाहार बनाकर और रेखा दूसरे के घरों में काम कर घर चला रही हैं. इससे पहले इनके परिवारों के पास दो-दो बीघा जमीन थी लेकिन घरेलू जरूरतों के चलते करीब डेढ़-डेढ़ बीघा जमीन बेच देनी पड़ी है.
आठ बीघा जमीन वाले बिंदीचक के कामेश्वर सिंह भी कम परेशानी नहीं महसूस कर रहे हैं. बारिश न होने के बावजूद उन्होंने एक बीघा में डीजल पंपसेट के भरोसे धान की रोपाई कर दी. लेकिन रोपे गए धान को बचाना मुश्किल हो रहा है. वे कहते हैं, ''एक बीघा में मुश्किल से 30-35 मन धान होगा, जिसका बाजार मूल्य अधिकतम 7,000 रु. होगा लेकिन रोपनी के समय तक ही 3,000 रु. खर्च हो चुके हैं, जिसे लगातार डीजल से पटवन में उत्पादित कीमत से ज्यादा लागत मूल्य हो जाएगा.''{mospagebreak}
कौआकोल के लोहसिहानी, कोलुहार, वृदावन, कटनी, चोंगवा, बरौन, अमरपुर जैसे गांवों के ग्रामीणों की हालत और भी दयनीय है जहां लेशमात्र भी धान की रोपनी नहीं 'ई है. लिहाजा, बड़ी संख्या में किसान परिवारों के पुरुष सदस्य रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं. या फिर अचल संपत्ति को गिरवी या बेचकर अपनी परेशानियों से जूझ् रहे हैं.
किसानों के अलावा पशुओं की स्थिति भी भयानक बनी है. गर्मी के दिनों में अंचल के महुडर, गुआघोघरा, मननपुर, धमनी, मधुरापुर, भेलहरा, बदखतरी, पहाड़पुर, मननियातरी, बरियापुर, बीझे, दनिया, फरकी पत्थर समेत सीमावर्ती जमुई जिले के जंगली गांवों के हजारों पशुओं को पेयजल और चारे के लिए बेगुसराय, मोकामा और बड़हिया टाल क्षेत्र में ले जाया जाता है. जहां मवेशियों को खेतों में बैठाने के एवज में भूस्वामियों द्वारा मवेशियों और रखवाले के भोजन का इंतजाम कराया जाता है.
बारिश होते ही ये रखवाले मवेशी के साथ लौटने लगते हैं. लेकिन इस बार पर्याप्त बारिश नहीं होने से ज्यादातर रखवाले वहीं अटके हुए हैं. और जो पहुंचे भी हैं उनकी हालत दयनीय बनी है. बिंदीचक के भिक्षु यादव के पास 50 जानवर थे लेकिन चारा के लिए उसने 8 पशुओं को औने-पौने दाम में बेच दिया.
कौआकोल का इलाका तो महज बानगी है. जिले के अधिकांश क्षेत्रों के किसानों की स्थिति कमोबेश इसी तरह की है. हिसुआ के मंझ्वे गांव निवासी राजू सिंह चार बीघा के किसान हैं. इसके अलावा वे पट्टे की खेती भी करते थे. विडंबना यह कि राजू और उसका भाई सुखदेव आइसक्रीम बेचने लगे हैं जबकि एक और भाई मिथिलेश सपरिवार रोजगार की तलाश में दिल्ली चला गया है. वहीं आर्थिक तंगहाली से सुखदेव की जीवनसंगिनी ने मायके में आसरा ले रखा है.{mospagebreak}
राज्य कृषि विभाग के अनुसार, चालू मौसम में 35.50 लाख हेक्टेयर भूभाग में धान रोपनी का लक्ष्य है. लेकिन अब तक मुश्किल से साढ़े तीन लाख हेक्टेयर भूभाग में ही धान रोपनी हो पाई है जो गत वर्ष की तुलना में में 20 लाख हेक्टेयर कम है. प्रकृति की बेरुखी से धान की रोपनी प्रभावित होने के साथ ही खेतों में दरार पड़ने लगी है. बेलछी के पूर्व मुखिया नवीन कुमार सिंह कहते हैं, ''ज्यादातर लोग हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल करते हैं. इसकी रोपनी की निश्चित समय सीमा होती है. इस सीमा में रोपनी नहीं होने से पूंजी लगने के बाद भी उत्पादन नहीं हो पाता है जिसके कारण एक साथ कई मार झेलनी पड़ती है.''
राज्य के अधिकांश जिलों की स्थिति ऐसी ही है. फिर भी सरकार के पास इस स्थिति से निपटने के लिए कोई ठोस कार्य योजना नहीं है. सिंचाई स्त्रोतों को विकसित करने की दिशा में उल्लेखनीय पहल नहीं की गई जिसके चलते किसानों को अक्सर ऐसी समस्याओं से जूझ्ना पड़ता है.
अपर सकरी जलाशय, तिलैया ढाढर परियोजना जैसे कई महत्त्वाकांक्षी योजनाएं बनाई गई पर वे मूर्तरूप नही ले सकीं. सरकारी नलकूपों की स्थिति पर गौर करें तो अकेले नवादा जिले में 134 राजकीय नलकूप हैं. पिछले साल तक 20 नलकूप चालू थे. लेकिन इस वर्ष चालू नलकूपों की संख्या 18 है. इसी तरह राज्य में 5,147 राजकीय नलकूप हैं लेकिन इनमें से मात्र 1,803 नलकूप ही चालू हैं. शेष नलकूप विद्युत और यांत्रिक कारणों से बंद पड़े हैं. चालू नलकूप भी विद्युत की अनियमित आपूर्ति से अनुपयोगी साबित हो रहे हैं.{mospagebreak}
सिंचाई के परंपरागत स्त्रोतों की हालत भी खस्ता है. हालांकि राज्य सरकार ने परंपरागत स्त्रोतों को विकसित करने के लिए नालंदा, शेखपुरा, मुंगेर, लखीसराय, जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद, गया, पटना, रोहतास, बांका, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर और कैमूर जिलों के लिए 1,200 समेकित योजनाएं तैयार की हैं, जिनके जरिए 5,75,095 हेक्टेयर भूभाग में सिंचाई का लक्ष्य है. साथ ही त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के तहत नवादा और जमुई के लिए 98 योजनाओं की स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है. लेकिन यह योजना अभी भविष्य के गर्भ में है.
राज्य सरकार ने सूबे के सभी 38 जिलों को दो चरणों में सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लक्ष्य से 73 प्रतिशत कम उत्पादन की आशंका जताई है. उन्होंने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलकर 5063.75 करोड़ रु. के विशेष पैकेज की मांग की है. इस पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय के संयुक्त निदेशक पंकज कुमार के नेतृत्व में एक टीम ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर स्थिति का आकलन किया. टीम ने स्थिति को भयावह माना और इससे निपटने के लिए मक्का और तोरी जैसी वैकल्पिक फसलें लगाने पर जोर देने को कहा है.
हालांकि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने किसी को भी भूखा नहीं मरने देने का भरोसा दिलाया है. पर स्थिति भयावह होती जा रही है और घोषणाओं पर अमल नहीं किया गया तो आने वाले समय में किसान अपनी तंगहाली से हार कर मौत को गले लगाने लगें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.