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बिहार: गांव में अकेले दम पर कम्युनिटी रेडियो स्‍टेशन

बिहार के वैशाली जिले के मंसूरपुर गांव का एक मामूली इलेक्ट्रानिक कारीगर राघव महतो कुछ ही रुपये के खर्च में अपना कम्युनिटी रेडियो स्टेशन चलाता है और 15 किलोमीटर के क्षेत्र तक लोगों का मनोरंजन करता है. विश्वास नहीं होता कि इस प्रकार के प्रसारण के लिए कंपनियां जहां लाखों रुपये खर्च करती हैं और कर्मचारियों को रखती हैं वहीं यह काम एक व्यक्ति अपनी खोज से कर रहा है.

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बिहार के वैशाली जिले के मंसूरपुर गांव का एक मामूली इलेक्ट्रानिक कारीगर राघव महतो कुछ ही रुपये के खर्च में अपना कम्युनिटी रेडियो स्टेशन चलाता है और 15 किलोमीटर के क्षेत्र तक लोगों का मनोरंजन करता है. विश्वास नहीं होता कि इस प्रकार के प्रसारण के लिए कंपनियां जहां लाखों रुपये खर्च करती हैं और कर्मचारियों को रखती हैं वहीं यह काम एक व्यक्ति अपनी खोज से कर रहा है. ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं.

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दुनिया में कंपनियां जहां ऐसे आविष्कारों की बदौलत सेवा के रूप में ग्राहकों से लाखों रुपये कमाती हैं वहीं इन्हें तैयार करने वाली विज्ञान प्रतिभाओं को गुमनामी में जीना पड़ता है. ऐसी प्रतिभाओं का अभाव नहीं है लेकिन इन्हें आगे बढ़ाने के लिए अच्छे माहौल की जरूरत है. राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला में वैज्ञानिक डॉ आर पी सिंघल ने कहा, ‘वैज्ञानिक पेशे में भला कोई क्यों आयेगा जब कैरियर के अन्य आकषर्क विकल्प मौजूद हैं. प्रबंधन आदि क्षेत्रों में वेतन भत्तों में आकषर्क विकल्प हैं. व्यवस्था में ही खोट है.’

भारत में शुरू से ही वैज्ञानिक खोजों और अनुसंधान कार्य में लगी प्रतिभाओं की उपेक्षा का सिलसिला रहा है. व्यवस्था बदलती है लेकिन रवैया वही है. पेटेंट के मामले में भी यही स्थिति है. कई अन्य वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि देश में विज्ञान के पठन पाठन और उसे पुष्पित पल्लवित करने के लिए समुचित पहल नहीं हो रही है. एक वैज्ञानिक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि सरकार की नीतियां दोषपूर्ण हैं. शैक्षिक व्यवस्था ऐसी नहीं है जिसमें विज्ञान के व्यावहारिक रूप को बढ़ावा मिले. विश्व में अन्य देशों से भारत के पेटेंट की तुलनात्मक संख्या गवाह है. पेटेंट दावों की संख्या में विश्व में भारत का स्थान 9वां और इसे मंजूर करने में 12वां रहा.

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विश्व बौद्धिक संपदा अधिकार संगठन (वाइपो) ने इस संबंध में नये आंकड़े जारी किये हैं. जिनेवा स्थित इस संगठन ने हाल में विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक 2009 आंकड़ें जारी किये उसके अनुसार 2009 में पेटेंट के लिए कुल 28940 पेटेंट दाखिल किये गये. इनमें से 7539 पेटेंट को मंजूरी दी गयी जबकि सबसे अधिक जापान में एक लाख 64 हजार से अधिक पेटेंट को मंजूरी दी गयी. दूसरे स्थान पर अमेरिका रहा, जहां एक लाख 57 हजार से अधिक पेटेंट मंजूर किये गये. गौरतलब है कि इस अवधि में हम मेक्सिको और कोरिया जैसे देशों से भी पीछे रहे. चीन और कोरिया में बीते 10 वर्षों में या उससे अधिक समय में पेटेंट के लिए आवेदनों की संख्या में अच्छी खासी प्रगति हुई है.

सिंघल ने कहा, ‘विज्ञान विषयों में पढ़ाई महंगी है और कैरियर का जो व्यापक विकल्प अन्य विषयों में है प्रौद्योगिकी सृजन के कार्य में लगे लोगों को भी उपलब्ध कराना होगा.’ पश्चिमी देशों में तो हर स्तर पर व्यावहारिक कार्यों के लिए विज्ञान प्रयोगशालाएं हैं. भारत में भी पाठ्यक्रम के स्तर पर बदलाव कर आविष्कारोन्मुख प्रतिभाओं को सशक्त करना संभव होगा. सिंघल ने कहा, ‘विज्ञान के प्रति उच्चतर शिक्षा में उदासीनता का यही हाल रहा तो आने वाले समय में वैज्ञानिकों का सूखा पड़ जाएगा, जिससे इतने कम समय में निपट पाना काफी कठिन होगा.’

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अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन एक घोषणा पर हस्ताक्षर कर 1983 में 11 फरवरी को राष्ट्रीय आविष्कारक दिवस घोषित किया था. संयोग से फरवरी में इसी दिन महान आविष्कारक और वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन का जन्मदिन भी है. एडिसन के नाम 1000 हजार से भी अधिक पेटेंट कराने का कीर्तिमान है. वह अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरुक थे. आविष्कारक दिवस भी इसी की प्रेरणा देता है. राघव महतो (24) जैसे लोग ऐसे ही उत्साही हैं जिनके उत्साह को समर्थन देने की जरूरत है.

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