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'सपेरों के देश' से विज्ञान का नोबेल जीतने वाले रमन का जन्मदिन आज

'आसमां है नीला क्यों' जब आपका फिल्मी रॉकस्टार ये गा रहा था तो भले आप झूम रहे हो, लेकिन कोई भी समझदार आदमी उसे थोड़ा पढ़ लेने की सलाह देगा. क्योंकि इस सवाल का जवाब एक महान भारतीय ने इस फिल्म से ठीक 80 साल पहले दे दिया था. इस जवाब को दुनिया 'रमन इफेक्ट' के नाम से जानती है और उस महान भारतीय को चंद्रशेखर वेंकट रमन के नाम से.

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रमन पर जारी डाक टिकट
रमन पर जारी डाक टिकट

'आसमां है नीला क्यों' जब आपका फिल्मी रॉकस्टार ये गा रहा था तो भले आप झूम रहे हो लेकिन कोई भी समझदार आदमी उसे थोड़ा पढ़ लेने की सलाह देगा. क्योंकि इस सवाल का जवाब एक महान भारतीय ने इस फिल्म से ठीक 80 साल पहले दे दिया था. इस जवाब को दुनिया 'रमन इफेक्ट' के नाम से जानती है और उस महान भारतीय को चंद्रशेखर वेंकट रमन के नाम से.

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रमन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था. जब उनके पिता तिरुचिरापल्ली से विशाखापट्टनम में आकर बस गये तो उनका स्कूल समुद्र के तट पर था. उन्हें अपनी कक्षा की खिड़की से अनंत तक फैला समुंद्री नीलापन दिखाई देता था. इस दृश्य ने इस छोटे से लड़के की कल्पना को पंख लगा दिए. बाद में समुद्र का यही नीलापन उनकी वैज्ञानिक खोज का विषय बना. जब भारत को दुनिया बिच्छू, सपेरों और भुखमरी के लिए जानती थी, रमन विज्ञान के एक महान खोज में व्यस्त थे.

'रमन इफेक्ट' की खोज 28 फरवरी 1928 को हुई थी. इस महान खोज की याद में 28 फरवरी का दिन हम 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस' के रूप में मनाते हैं. 1928 में इसी दिन देश में सस्ते उपकरणों का प्रयोग करके विज्ञान की एक मुख्य खोज की गई थी. तब पूरे विश्व को पता चला था कि ब्रिटिशों का गुलाम और पिछड़ा हुआ भारत भी आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में अपना मौलिक योगदान दे सकता है. यह खोज केवल भारत के वैज्ञानिक इतिहास में ही नहीं बल्कि विज्ञान की प्रगति के लिए भी एक मील का पत्थर प्रमाणित हुई. इसी खोज के लिए इसके खोजकर्ता को 'नोबल पुरस्कार' मिला. 1954 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत रत्न' से नवाजा.

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आज जब विज्ञान की शिक्षा पाने वाला हर दूसरा भारतीय विदेश जाने को लालायित है उसे रमन से सबक लेना चाहिए. देश में रहते हुए अपने शोध से उन्होंने दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार जीता.

पढ़िए नोबेल जीतने के बाद क्या कहा रमन ने, 'जब नोबेल पुरस्‍कार की घोषणा की गई थी तो मैंने इसे अपनी व्‍यक्तिगत विजय माना, मेरे लिए और मेरे सहयोगियों के लिए एक उपलब्धि कि एक अत्‍यंत असाधारण खोज को मान्‍यता दी गई है, उस लक्ष्‍य तक पहुंचने के लिए जिसके लिए मैंने सात वर्षों से काम किया है. लेकिन जब मैंने देखा कि उस खचाखच भरे हॉल में मेरे इर्द-गिर्द सिर्फ पश्चिमी चेहरों का जनसैलाब है और मैं, केवल एक ही भारतीय, अपनी पगड़ी और बन्‍द गले के कोट में वहां मौजूद था, तो मुझे लगा कि मैं वास्‍तव में अपने लोगों और अपने देश का प्रतिनिधित्‍व कर रहा हूं. जब किंग गुस्‍टाव ने मुझे पुरस्‍कार दिया तो मैंने अपने आपको वास्‍तव में विनम्र महसूस किया, यह भावुक करने वाला पल था लेकिन मैं अपने ऊपर नियंत्रण रखने में सफल रहा. जब मैं मंच से उतर रहा था तो मैंने ऊपर ब्रिटिश यूनियन जैक देखा जिसके नीचे मैं बैठा रहा था और तब मैंने महसूस किया कि मेरे गरीब देश, भारत का अपना ध्वज भी नहीं है.'

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