राजनीतिक पार्टियां अब समझ गईं हैं अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने का सबसे बेहतरीन जरिया सोशल मीडिया है. बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही इन सोशल मीडिया के जरिए चुनावी रणनीति तैयार कर रहे हैं. राजनेता भी अब ये मानने लगे हैं कि वर्तमान में लोगों तक पहुंचने का सबसे अच्छा जरिया सोशल मीडिया है. यही नहीं सोशल मीडिया के जरिये ये पार्टियां किसी भी वक्त सुर्खियों में बन सकती है. इनके द्वारा किया हुआ ट्वीट तुरंत खबर बन जाता है. यही वजह है कि अब राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया के लिए विशेष यूनिट तैयार कर लिए हैं. इसमें बाकायदा लोग काम करते हैं, पूरी रणनीति तैयार करते हैं और पार्टी की पल-पल की जानकारी की अपडेट देते हैं.
हाल ही में बीजेपी दफ्तर में सोशल मीडिया की खास उपस्थिति देखने का मिली. नजारा कुछ यूं था, दोपहर का वक्त, बीजेपी के 11 अशोका रोड के दफ्तर के बड़े हॉल में मीडियाकर्मियों का जमावड़ा चारों ओर कैमरा, ट्राईपॉड, आईपॉड और माइक, पत्रकार आपस में बात करते हुए. इन्हीं में से एक कैमरा हॉल के आखिर में लगा हुआ था और बीजेपी के सूचना और तकनीकी विभाग के सदस्य 22 वर्षीय एमसीए के छात्र ऑपरेट कर रहे थे. हीरेंद्र अपने लैपटाप से बीजेपी की पूरी प्रेस कांफ्रेंस पार्टी के इंटरनेट टीवी चैनल 'युवा' पर दिखा रहे थे.
मुश्किल से 20 मीटर की दूरी पर बीजेपी मुख्यालय के भीतर ही बने एक कोने पर 'युवा' चैनल पर दिखाया जा रहा लाइव टेलीकास्ट को हीरेंद्र मेहता के सहयोगी नवरंग एसबी मॉनीटर कर रहे थे. यहां से रविशंकर प्रसाद द्वारा दी जा रही सूचना के मुख्य बिंदुओं को उठाकर ट्विटर और फेसबुक पर अपडेट किया जा रहा था. पूरी कांफ्रेस के मुख्य बातें सोशल मीडिया पर रीडर के लिए उपलब्ध था.
मेहता और नवरंग बीजेपी के 100 मजबूत विभागों के सदस्य हैं. यह विभाग सोशल नेटवर्किंग साइट में पार्टी की गतिविधियों का ब्यौरा रखते हैं. वर्तमान में सोशल नेटवर्किंग साइट के महत्व को देखते हुए बीजेपी ने दस सदस्यीय संचार और प्रचार समिति का गठन किया है. इस समिति के प्रमुख दिग्विजय सिंह है और उनके साथ मनीष तिवारी, अंबिका सोनी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंदर हुडा, राजीव शुक्ला, भक्त चरण दास, आनंद अदकोली, संजय झा और विश्वजीत सिंह है. बीजेपी ने 2014 के चुनावों के लिए सोशल मीडिया को अपनी चुनावी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है. दिग्विजय सिंह कहते हैं, 'सोशल मीडया के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.'
इस समूह का मुख्य उद्देश्य देशभर से युवा कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संगठन से वॉलेंटीयर जुटाना है. हाल ही में सोशल मीडिया का रंग 8 जनवरी को हुए अकबरुद्दीन आवैसी की गिरफ्तारी में देखने को मिला. आवैसी का भड़काऊ भाषण यूट्यूब पर बहुत तेजी से फैला. अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन वर्ष 2011 में ट्विटर पर सबसे अधिक चला. इसी तरह 2012 में दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी सोशल मीडिया में खूब बना रहा. केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी कहते हैं, 'इस बदलाव को अब स्वीकार कर लिया गया है. हम अब मान चुके हैं कि फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को राजनीतिक माध्यम बनाया जा सकता है.' कांग्रेस कहती है, सोशल मीडिया राजनीति की उपस्थिति 2014 के चुनाव और उसके बाद के लिए एक सोची समझी राजनीति है. तिवारी ने 2011 में दो बार अपना ट्विटर अकाउंट बंद किया है क्योंकि उसमें अभद्र बातें पोस्ट की जाती हैं. लेकिन इसके बाद भी तिवारी का कहना है कि जैसे सोशल मीडिया का नकारात्मक पहलु है जैसा सकारात्मक पहलु भी है.
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 137 मीलियन लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, 68 मीलियन लोगों का फेसबुक में एकाउंट हैं और 18 मिलियन लोग ट्विटर पर हैं. यह आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. राजनीतिक क्षेत्र में सोशल नेटवर्किंग साइट का महत्व इसलिए भी जरूरी हो गया है पहला इससे भारत का मध्यम वर्ग जुड़ गया है और दूसरा इसमें कोई राजनीतिक सूचना देने से पहले किसी एडिटर, न्यूज एंकर से नहीं गुजरना पड़ता. आप खुद लोगों से सीधे जुड़ते हैं, तो इसके फायदे बहुत हैं.
इसके अलावा इसका एक और फायदा है कि राजनीतिक पार्टी अपना एजेंडा मीडिया तक इसी के जरिए आसानी से पहुंचा देती है. जैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की बैठक की एक तस्वीर पोस्ट कर दी गई जिसके बाद मीडिया ने इस खबर को उठा लिया. अब बीजेपी और कांग्रेस की सोशल मीडिया में सक्रिय रहने वाली टीम का काम ट्विटर, यूट्यूब, इंटरनेट, टीवी फीड, मोबाइल एप्लीकेशन, ब्लॉग को अच्छी तरह संभालना है. इससे सूचनाओं का प्रवाह ठीक बना रहता है, पार्टी जनता के साथ सीधा जुड़ती है और मीडिया को भी खबर की सूचना यहां से मिल जाती है.
बीजेपी का मानना है कि इंटरनेट पर मिलने वाली लोकप्रियता 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों में वोट बैंक को बढ़ाएगी. राजनीतिक पार्टी का सोशल मीडिया संभालने वाला समूह इसके आंकड़ों का भी पूर ब्यौरा रखता है.
कोलकाता में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पहली ऐसी क्षेत्रीय पार्टी है जो सोशल मीडिया से जुड़ी. इस टीम में तीन स्तर के लोग थे, आईटी से जुड़े लोग, पार्टी के सदस्य और वॉलेंटीयर. इसका पूरा यूनिट डेरेक ओ ब्रेन ने तैयार किया था और इसे तृणमूल युवा नेता और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी चलाते थे.
कांग्रेस नेता इस बात से इंकार करते हैं कि बीजेपी को इस बात का फायदा मिलेगा कि वह सबसे पहले सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े. 'सोशल मीडिया की खास बात है कि इसकी पहुंच दूर तक है. मनीष तिवारी कहते हैं, इससे आपको हर एक शक्स से जुड़ने की जरूरत नहीं होती, आपकी सूचना सीधा 2000 लोगों तक पहुंचती है.' या फिर शशि थरूर जैसे मामले में सूचना 1.6 मीलियन लोगों तक आपकी बात पहुंच जाती है.
शशि थरूर सोशल मीडिया में बहुत सक्रिय रहने वाले राजनेताओं में से एक है. लेकिन सोशल मीडिया में सक्रियता इनके लिए कई बार परेशानी का सबब भी बना है. अपने ट्वीट को लेकर थरूर कई बार विवादों में पड़े हैं. लेकिन कुल मिलाकर राजनीति से जुड़े लोग समझ गए हैं कि आज के दौर में युवाओं, शहरी लोगों के बीच जगह बनाने के लिए सोशल मीडिया का खासा महत्व है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.