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भाजपा-कांग्रेस ‘पेड न्यूज’ पर खुलासा करने के लिए तैयार

भाजपा और कांग्रेस ने कहा है कि अगर चुनाव आयोग कहे तो वे उन मीडिया घरानों के नाम बताने को तैयार है, जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान धन के बदले खबर छापने या प्रसारित करने (पेड न्यूज़) की उनकी पर्टियों से पेशकश की थी.

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भाजपा और कांग्रेस ने कहा है कि अगर चुनाव आयोग कहे तो वे उन मीडिया घरानों के नाम बताने को तैयार है, जिन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान धन के बदले खबर छापने या प्रसारित करने (पेड न्यूज़) की उनकी पर्टियों से पेशकश की थी.

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एडिटर्स गिल्ड और महिला प्रेस क्लब द्वारा ‘पेड न्यूज़’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यह पेशकश की.

सुषमा ने कहा, ‘हम उनका नाम बताने को तैयार हैं. अगर चुनाव आयोग हमसे कहे तो हम इस बारे में सुबूत भी देने को तैयार हैं.’ तिवारी ने कहा कि चुनाव आयोग ने अगर ऐसा करने को कहा तो वह व्यक्तिगत रूप से इस बारे में उसे विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराएंगे.

चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि कई राजनीतिक दलों ने ‘पेड न्यूज़’ के प्रचलन की आयोग से शिकायत की है, लेकिन किसी ने औपचारिक शिकायत नहीं की. उन्होंने टिप्पणी की, ‘हम उसी समय तक के शेर हैं जब चुनाव का समय होता है.’ माकपा के महासचिव प्रकाश कारत ने कहा कि उनका दल पेड न्यूज के बारे में चुनाव आयोग को बता चुका है. उन्होंने मज़ाक में कहा, ‘हमारी पार्टी के पास ये पेशकश लेकर कोई नहीं आया, क्योंकि वे (प्रकाशक) जानते हैं कि धन देने की हमारी औकात नहीं है.’

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सुषमा ने बताया कि विदिशा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव प्रचार के समय एक मीडिया संस्थान की ओर से उनके पक्ष में समाचार और फोटो छापने के लिए उन्हें एक करोड़ रूपए के पैकेज की पेशकश की गई थी. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय में पेड न्यूज ने संस्थागत रूप ले लिया है और राजनीति दल इसका शिकार हो रहे हैं.

कुरैशी ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए आयोग अपनी मशीनरी का विस्तार करेगा, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरत इस बात की है कि मीडिया आत्म नियमन करे.

राज्यसभा सदस्य शाहिद सिद्दीकी ने अलग राय रखते हुए कहा कि चुनाव के दौरान दीवारों पर लिखने से लेकर पोस्टर चस्पा करने तक को प्रतिबंधित कर दिए जाने से मतदाताओं तक पहुंचने के राजनीतिक दलों के विकल्प कम हो गए हैं.

प्रसार भारती की अध्यक्ष मृणाल पांडे ने कहा कि अखबारों में क्या छप रहा है, इसके लिए केवल संपादकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि वे विभिन्न क्षेत्रों से छपने वाले हर संस्करण पर नजर नहीं रख सकते हैं.

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