अपने वक्त को समझना है तो सिनेमा देखिए. कई चीजें जो सीधी आंखों से नहीं दिखतीं, कई हसरतें जो बयान नहीं हो पातीं. सिनेमा में घुमा फिराकर आ जाती हैं. चाहे नेता को पीटता मजदूर हो या फिर सेठ की लड़की के साथ भागता मिडिल क्लास नौजवान. और अगर सिनेमा को भी समझना हो तो. सबसे सही जरिया है इससे जुड़े लोगों के किस्से सुनना.
पिछले पांच दशक से बॉलीवुड में सक्रिय प्रेम चोपड़ा की बायोग्राफी पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे घर की दहलीज पर बैठा कोई बुजुर्ग अपनी गीली भारी आवाज में परी देश के वाकये सुना रहा है. उन्होंने अभिनय की शुरुआत साठ के दशक में की थी. मनोज कुमार, राजेंद्र कुमार, दिलीप कुमार और देव आनंद से सितारों के संग. और अंत...उसके बारे में क्या कहने आप बस ये एक किस्सा सुन लें.
प्रेम चोपड़ा शायद इकलौते ऐसे कलाकार होंगे, जिन्होंने बॉलीवुड के सबसे मशहूर कपूर खानदान के हर एक्टर के साथ फिल्में की हैं. इस सिलसिले की शुरुआत पृथ्वीराज कपूर साहब के साथ सिकंदर ए आजम से हुई. उनके तीनों बेटे राज, शम्मी और शशि कपूर प्रेम चोपड़ा के खलनायकी तेवरों से दो चार हुए. फिर अगली पीढ़ी के ऋषि कपूर तो प्रेम की टोली का ही हिस्सा बने. राजीव कपूर, रणधीर कपूर वगैरह ने भी प्रेम के साथ फिल्में कीं.
अगली पीढ़ी में करिश्मा की पहली फिल्म में प्रेम चोपड़ा उनके पिता बने. और अभी दो बरस पहले आई फिल्म एजेंट विनोद के जरिए प्रेम चोपड़ा ने करीना कपूर के साथ भी काम कर लिया. उससे पहले रणबीर के साथ रॉकेट सिंह सेल्समैन ऑफ द ईयर की थी उन्होंने. तब प्रेम ने रणबीर से कहा था. तुम देखना. मैं तुम्हारे बच्चों के साथ भी काम करूंगा.
ये एक किस्सा काफी है प्रेम चोपड़ा नाम के व्यक्ति और संस्था के बारे में बताने के लिए. वो शख्स जो दिखता तो हैंडसम था, मगर जिसके इरादे बेहद बदसूरत होते थे. वह शख्स, जो अपने होठों को कुछ गोल घुमाकर, आंखों में कौंध लाकर जब बोलता, तो हमारी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ जाती. हम परदे के किनारे निगाहें जमा लेते कि शायद अब हीरो आएगा और बचाएगा.
प्रेम चोपड़ा की बायोग्राफी लिखी है उनकी बेटी रकिता नंदा ने. रकिता मशहूर उपन्यासकार गुलशन नंदा की बहू हैं और मास कम्युनिकेशन में डिग्री हासिल कर वेब डिजाइनिंग का काम कर रही हैं. उन्होंने इस बायोग्राफी के लिए बढ़िया तरीका चुना. अपने पापा के फिल्म दर फिल्म लंबे इंटरव्यू लिए. फिर उन्हें संगी साथी कलाकारों के मुताबिक अलग अलग चैप्टरों में बांटा. जब मुमकिन हुआ तो उन एक्टर्स से भी बात की. उनकी मम्मी यानी प्रेम जी की पत्नी उमा की इकट्ठा की हुई प्रेस क्लिपिंग ने भी इस मैराथन काम में मदद की. फिर जब कहानी का फाइनल ड्राफ्ट सुनाने का वक्त आया, तो रकिता को लगा कि इसे फर्स्टपर्सन में ही सुनाना चाहिए. इससे पूरी बायोग्राफी दरअसल ऑटोबायोग्राफी सी बन गई है.
प्रेम चोपड़ा के पिता मुल्क के उस हिस्से में रहते थे, जो लकीर खिंचने के बाद पाकिस्तान कहलाया. पिता समय रहते लाहौर छोड़कर यहां आ गए और सरकारी नौकरी पाकर शिमला में बस गए. प्रेम कॉलेज तक यहीं रहे. थिएटर की शुरुआत की और फिर एक दिन सबसे लड़ झगड़ बॉम्बे पहुंच गए हीरो बनने. मगर किस्मत को कुछ और मंजूर था. कामयाब नहीं हुए तो वापस लौट गए. फिर आए और इस बार एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार में नौकरी भी पकड़ ली. ये नौकरी कई हिट फिल्मों में विलेन का रोल करने के बाद छूटी.
प्रेम ने शुरुआत में हिंदी ही नहीं पंजाबी फिल्मों में भी काम किया. उनके फिल्मी करियर का फुल सर्किल पिछले बरस पूरा हुआ. जब उन्होंने पंजाबी फिल्म धरती में काम किया. बहरहाल, यहां मामला बॉलीवुड के सफर का है.
प्रेम चोपड़ा को के. आसिफ हीरो बनाना चाहते थे. उन्होंने वायदा किया था. मगर तबीयत दुरुस्त नहीं रहती थी और प्रेम कब तक इंतजार करते. सो उन्होंने निगेटिव किरदार निभाने शुरू कर दिए. प्रेम चोपड़ा ने जब भी हीरो के या पॉजिटिव रोल किए, फिल्में बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरीं. एक अपवाद है इसमें. मनोज कुमार की फिल्म शहीद. इसमें प्रेम ने सुखदेव का रोल निभाया था. फिल्म की ज्यादातर शूटिंग लुधियाना की रियल लोकेशन पर हुई थी.
धीमे धीमे प्रेम चोपड़ा ने इंडस्ट्री में अपना मुकाम हासिल किया. तब तक प्राण साहब विलेन के बजाय कैरेक्टर आर्टिस्ट की भूमिका में आ चुके थे. उपकार फिल्म इस लिहाज से माइलस्टोन कही जा सकती है. इसमें बीते जमाने के विलेन प्राण सकारात्मक रोल में थे, जबकि प्रेम चोपड़ा विलेन अवतार में.
प्रेम चोपड़ा ने तकरीबन हर निर्माता निर्देशक के साथ काम किया. उन सबके साथ अपने अनुभव उन्होंने साझा किए.
जितेंद्र और प्रेम ने कमोबेश एक ही वक्त करियर शुरू किया. दोनों अगल-बगल ही रहते. अपनी अपनी कारों से स्टूडियो के चक्कर लगाते. ऊपर ये यह दिखाते गोया बड़े मसरूफ हों. फिर एक दिन प्रेम ने जीतू जी को बोल ही दिया. इसके बाद दोनों कार पूल करने लगे. बाद में तो खैर जिगरी यार बन ही गए. प्रेम चोपड़ा की इस करीबी मित्र मंडली में एक्टर डायरेक्टर राकेश रोशन, जितेंद्र, सुजीत कुमार के अलावा ऋषि कपूर भी शामिल थे. इन सबसे जुड़े सैकड़ों किस्से रोचक मगर सरल ढंग से किताब में बयान हैं.
इस किताब के जरिए प्रेम चोपड़ा ने हिंदी फिल्मों में विलेन के पीछे के दर्शन पर भी तफसील से बात की है. पहले लेखक किस तरह से इस पर मेहनत करते थे. फिर उसे भोंडा बना दिया गया. विलेन है तो रेप करेगा ही. वैंप के साथ कैबरे करेगा ही. उसका आगा पीछा क्या है. क्यों वो बुरा आदमी बना, इस पर कोई मेहनत नहीं करेगा. नब्बे के दशक में जब हीरो के भी ग्रे शेड्स हो गए, तब इस चलन में कुछ बदलाव आया. प्रेम चोपड़ा ने फिल्मों में रेप सींस के दौरान आने वाली दुश्वारियां को भी बयान किया.
प्रेम चोपड़ा की इस किताब में प्रकट तौर पर तो उनकी अपनी कहानी है. मगर इसे बयान किया गया है दूसरे एक्टर्स के साथ हुए वाकयों के जरिए. इससे हमें सिर्फ प्रेम चोपड़ा ही नहीं, मनोज कुमार, दिलीप कुमार, राज कपूर, अमिताभ बच्चन समेत कई और नामी लोगों के बारे में जानने को मिलता है. भाषा सरल है. हिंदी फिल्मों से प्यार है तो इस किताब को पढ़ सकते हैं.
आखिर में बस एक किस्सा. किताब के नाम का. प्रेम के सबसे मशहूर डायलॉग का. प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा. ये डायलॉग है राज कपूर की फिल्म बॉबी का. इसके जरिए ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया ने डेब्यू किया था. फिल्म में प्रेम चोपड़ा के हिस्से गेस्ट अपीयरेंस और ये इकलौता डायलॉग आया था. जब राज जी ने प्रेम को ये रोल सुनाया, तो वह हिचक गए. उस वक्त इंडस्ट्री में बतौर विलेन वह सबसे बड़ा नाम बन चुके थे. ऐसे में राज कपूर और प्रेम चोपड़ा, दोनों के ही रिश्तेदार प्रेम नाथ ने प्रेम को समझाया. राज कपूर पर भऱोसा रखो. ये इकलौता डायलॉग काम कर सकता है. और फिर यही हुआ.
ये डायलॉग इतना पॉपुलर हुआ कि हर स्टेज शो में प्रेम चोपड़ा को अपने एक्ट की शुरुआत इसी से करनी पड़ती. बाद में कई फिल्मों में इसे दूसरे एक्टर्स ने दोहराया.प्रेम नाम है इस शख्स का, जिससे पूरी इंडस्ट्री बेशुमार प्यार करती है. जो खुद अपने परिवार से, सिनेमा से मरते दम तक मुहब्बत करता है और यही सब बातें इस किताब को मस्ट रीड बना देती हैं.