शिमला की पहाड़ियां एक बार फिर से अंग्रेजों के जमाने के स्टीम रेल इंजन की छुक-छुक से गुंजायमान होंगी. विश्व धरोहर घोषित हो चुका कालका से शिमला रेल ट्रैक पिछले 6 वर्षों में पहली बार फिर से शुरू किया जाएगा.
अधिकारियों का कहना है कि तीन चार्टर्ड कोचों वाली 48 यात्रियों (विदेशी नागरिकों) से भरी ट्रेन को 1903 में निर्मित एक स्टीम इंजन शिमाल से काठलीघाट तक ले जाने में सफल रही.
शिमला-कालका रेल लाइन पर 22 किमी. की दूरी पर दो स्टेशनों के बीच के ट्रैक को यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया है. इस दूरी को तय करने में एक घंटे का समय लगता है. स्टीम इंजन की सहायता से चलने वाली इस ट्रेन का संचालन आईआरसीटीसी करेगी तथा अब रोज यह ट्रेन इन दोनों स्टेशनों के बीच एक-एक चक्कर लगाएगी.
इस ट्रेन की सवारी करने वाले एक विदेशी पर्यटक आरोन केली कहते हैं, 'इस ट्रैक पर यात्रा करना हमेशा से प्रफुल्लित करने वाला रहा है, खासकर तब जब आपका कोच एक भाप से चलने वाली इंजन खींचकर ले जाए.'
आईआरसीटीसी अधिकारियों ने कहा, 'योजनानुसार कोई भी कंपनी या व्यक्ति तीन कोच वाले इस ट्रेन को बुक करा सकता है. इसमें 50 यात्रियों के बैठने की सुविधा है तथा मार्ग में भोजन की भी व्यवस्था है.'
कालका-शिमला रेल ट्रैक का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में 1903 में हुआ था. इस रेल मार्ग में 102 सुरंग पड़ते हैं.