ये एक ऐसा शहर है, जो समंदर किनारे बसा है. यहां बड़ी बड़ी इमारतें, गोल्फ कोर्स, वॉटर पार्क, ऑफिस, बार और रेस्टोरेंट समेत तमाम तरह की सुविधाएं विकसित की गईं. हरियाली के बीच 1370 हेक्टेयर एरिया में आलीशान इमारतें खड़ी की गईं. यहां 10 लाख लोगों के रहने का इंतजाम हो रहा था. इस प्रोजेक्ट का नाम फॉरेस्ट सिटी रखा गया. लेकिन आज यहां कोई नहीं रहता. पूरा का पूरा शहर वीरान पड़ा है. इसका नाम ही घोस्ट टाउन यानी 'भूतिया शहर' रख दिया गया है.
मलेशिया का ये शहर आज चीन की वजह से उस गुनाह की सजा भुगत रहा है, जो उसने कभी किया ही नहीं. चीन ने मलेशिया को एक खूबसूरत शहर का सपना दिखाया था, लेकिन आठ साल बीतने के बावजूद ये वीरान पड़ा है. चीन ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत 2016 में की थी. इसका काम देश की बड़ी कंपनी कंट्री गार्डन को दिया गया. कंपनी को 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक का काम मिला. 2016 में ही देश के क्लुआंग जोहोन में इस पर काम शुरू हो गया था. लेकिन तीन साल बाद कोरोना वायरस आ गया.
इसके बाद यहां का काम अटक गया. कोरोना वायरस जब तक गया, तब तक कंपनी की आर्थिक हालत खराब हो गई थी. उस पर 16 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. आज इस प्रोजेक्ट को शुरू हुए 8 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. लेकिन केवल 15 फीसदी काम ही पूरा हो सका है. कहां 10 लाख लोगों के लिए घर बनाए गए थे लेकिन केवल एक फीसदी लोग ही रह रहे हैं. बाकी घर खाली पड़े हैं. न तो पार्क में कोई दिखता है, न ही मॉल में.
चीनी सरकार ने आधिकारिक तौर पर कहा था कि यहां कोई भी घर खरीद सकता है. लेकिन असल में उसकी मंशा ये थी कि चीन के मध्य और अमीर वर्ग के लोग यहां पैसा लगाकर निवेश कर सकें, यानी घर खरीद सकें. वहीं मलेशिया के लोग यहां इसलिए रहने नहीं आते क्योंकि ये शहर वीरान है. यहां रहने से नकारात्मकता महसूस होती है.