एक तरह से नोटिस चस्पां हो गया है फिल्म उद्योग के दरवाजे पर. दर्शकों ने बड़े सितारों वाली, थकी हुई उबाऊ फिल्मों से किनारा करके ऐसी मस्त फिल्मों की राह पकड़ ली है, जो गुदगुदाती, उत्तेजित करती, कभी-कभी आहत तक करती हैं.
'काइट्स' और 'रावण' को 'तेरे बिन लादेन' और 'उड़ान' ने उड़ा दिया और जल्द ही बेढब किस्म की 'पीपली लाइव' उन्हें दफन कर देगी. ऐसे में क्या यह कोई हैरत की बात है कि हमारे सर्वेक्षण ने बीते दिनों के चमकते चेहरों से किनारा करके नए चेहरों को मौका दिया है?
तभी तो कान उत्सव की चहेती ऐश्वर्य रॉय बच्चन ठिकाने लग गई हैं. ऊपर आ पहुंची हैं कैटरीना कैफ-विदेश की, रहस्यमय मूल वाली, बोलने का अटकता हुआ पाश्चात्य लहजा और हमेशा एक तरोताजा-सी उपस्थिति. मितभाषी पर कठिन परिश्रमी, अपनी फिल्मों के प्रचार के लिए ही जनता के सामने प्रकट होती हैं. उनके बरअक्स रखिए जरा उनकी प्यारी प्रतिद्वंद्वियों कोः खानदानी अभिनेत्री और प्रिंस की प्यारी करीना कपूर तथा हर मिनट ट्वीट करने वाली प्रियंका चोपड़ा को. {mospagebreak}
कैफ के पास कहने को भले ही इनसे कम हो लेकिन सच तो यही है कि इस कमी को उन्होंने बुद्धिमत्ता से एक गुण में बदल लिया है. पुरुषों में एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन, जिन्होंने बड़े सलीके से उद्योग के बड़े अगुआ बुजुर्गों में अपनी जगह बना ली, परदे पर मौजूदगी के लिहाज से काफी नीचे सरक गए हैं. वैचारिक अगुआ के रूप में उनका रुतबा कायम है.
वैसे, लोग उनके लिए एक नया रोल लिखना चाह रहे हैं पर उनकी जगह खान तिकड़ी ने ले ली है, जो कि पिछले दो दशकों से हमारे भरोसेमंद दोस्त बने हुए हैं. उनमें से किसी के बाल झड़ने लगे, किसी ने बीवी बदल ली, कोई तो दार्शनिक हो गया, पर हम अब भी उनसे ऊबे नहीं हैं.
यह उनकी जिजीविषा और उनके प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है. उभरते सितारे रणबीर कपूर ही हैं, जिनमें तिकड़ी के जटिल समीकरण को बिगाड़ने की कुव्वत है. ऐसे में लोकप्रियता के चार्ट में उनका नं. 4 पर होना बहुत स्वाभाविक बात है.