गेरुआ कपड़े पहने कैमरा स्टैंड में अपना मोबाइल कसे हुए एक सन्यासी रेलवे स्टेशन पहुंच कर युवाओं से सीधे संवाद करने लगता है. वह धर्म पर चर्चा करता है. ये सन्यासी खुद ही युवाओं से रुबरू होने वाले अपने प्रवचन को फेसबुक पर लाइव भी करता है.
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कभी थियेटर में करते थे काम
देश-विदेश में बैठे उसके अनुयायी इस संवाद को देखकर खुश ही नहीं होते अपनी राय भी देते हैं. उनके प्रवचन सुनने के लिए जहां युवा स्टेशन पर जमा होते हैं तो वहीं सैंकड़ों लोग ऑनलाइन उनके विचार सुनते हैं. ये युवा सन्यासी जो कभी थियेटर में अभिनय किया करते थे. आज स्वामी राम शंकर दास के नाम से जाने जाते हैं. वह कहते हैं कि धर्म, अध्यात्म और ज्ञान तीनों बिक रहे हैं. इन तीनों को भी कॉर्पोरेट तरीके से बेचा जा रहा है.
युवाओं के बीच हो रहे हैं फेमस
धर्म और आध्यात्म के मार्ग पर मिले ज्ञान की कोई कीमत नहीं है. इस लिए वह धर्म के असली मर्म को युवाओं तक सीधे पहुंचाना चाहते हैं. साधु को किसी मठ या मंदिर में बंधने की जरुरत नहीं. उनका कहना है कि साधु को किसी मठ या मंदिर में बंधने की जरुरत नहीं. साधु को भी सड़कों पर उतर लोगों से सीधे संवाद करना होगा. तभी धर्म के साथ-साथ संस्कारों को बचाया जा सकता है. इस युवा सन्यासी की बातें सुनने के लिए स्टेशन पर सैंकड़ों युवा
जमा होते हैं.
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कालवा गुरुकुल से ली संस्कृत की शिक्षा
राम शंकर बताते हैं कि कालवा गुरुकुल में रह कर उन्होंने संस्कृत की शिक्षा हासिल की. इसी दौरान योग गुरु स्वामी राम देव के साथ कुछ समय रहे भी हैं. बी. कॉम की शिक्षा प्राप्त करने के बाद हिमाचल के कांगड़ा जिला में
स्थित चिन्मय मिशन के द्वारा संचालित गुरुकुल संदीपनी हिमालय में प्रवेश प्राप्त कर स्वामी गंगेशानन्द सरस्वती के निर्देशन में तीन वर्ष तक रह कर वेदांत उपनिषद्, भगवद्गीता, रामायण आदि सनातन धर्म के शास्त्रो का अध्ययन
कर चुके हैं. बिहार स्कूल ऑफ़ योगा मुंगेर (रिखिआ पीठ) में फरवरी 2013 से मई 2013 तक साधना की. कैवल्य धाम योग विद्यालय लोनावला पुणे में पतंजलि योग सूत्र, हठप्रदीपिका, घेरण्ड संहिता आदि प्रमुख शास्त्रों का
अध्ययन कर चुके हैं.
अपने संस्कारों से युवाओं को जोड़ने की पहल
राम शंकर बताते हैं उनका विजन है कि भारत के जो विभिन्न प्रांत हैं, वहां पर जाकर युवाओं से मिलकर ये जानने का प्रयास करें कि जीवन मूल्यों के
बारे में उनका क्या सोचना है. जो हमारी परंपराएं हैं युवा उसके बारे में क्या सोचते हैं. साधू लोगों के जीवन के बारे में युवाओं को कितनी समझ है. उनके अनुभव को केवल मैं ही नहीं बल्कि देशभर के लोग जानें इसलिए
मैं फेसबुक पर लाइव आता हूं. युवाओं को भारतीय परंपरा और मूल्यों से अवगत कराना ही मेरा उपद्देश्य है.