मधुबनी बिहार का शहर हो या देहात, अगर आप किसी भी खुशी के मौके पर कहीं गए हों तो आमतौर पर शराब की व्यवस्था जरूर की जाती है, परंतु बिहार के मधुबनी जिले का एक ऐसा भी गांव है जहां अगर कोई भी बाराती शराब पीकर वहां पहुंच जाए तो पूरे बारातियों का स्वागत करने से इंकार कर दिया जाता है.
गांव वालों का मानना है कि कन्यादान के मौके पर नशामुक्त बाराती ले जाने का संकल्प लिया जा रहा है. मधुबनी के राजनगर प्रखंड के परिहारपुर गांव में ऐसा संभव हो सका है एक शिक्षक रवींद्र झा की बदौलत, जो नेक विचार, ईमानदार प्रयास और अटूट विश्वास के साथ गांधीगीरी से लोगों को शराब छुड़ाने की पहल कर रहे हैं.
ग्रामीण महेश झा बताते हैं कि करीब 10 हजार की आबादी वाले इस गांव में एक साल पहले तक सर्वाजनिक स्थल हो या खेत और खलिहान हों, प्रत्येक जगह पर शराबियों का जमघट लगा रहता था, लेकिन अब वही शराबी उत्साह के साथ नशामुक्ति अभियान चला रहे हैं.
करीब पांच साल पहले रवींद्र झारखंड के जमशेदपुर से आकर पंचायत शिक्षक के पद पर एक विद्यालय में बच्चों को शिक्षा देने का कार्य प्रारंभ किया था. उन्हें यहां के नशापान को देखकर वह इस गांव से वापस लौटने की योजना बना ली थी, परंतु कुछ बुजुर्गों के कहने पर वह रुक गए और गांव से नशाखोरी समाप्त करने की ठान ली.
अटूट विश्वास और इस काम से पीछे नहीं हटने की कसम खाकर रवींद्र ने इस नेक काम की शुरुआत शराबियों के घर से की. रवींद्र ने बताया कि वह सबसे पहले गांव के सबसे बड़े पियक्क्ड़, पर प्रतिभावान ग्रामीण के घर पहुंचे और उनसे हाथ जोड़कर शराब छोड़ देने का अनुरोध किया. इसके लिए उन्होंने रवींद्र से कुछ दिन का समय मांगा.
दिए गए समय के उपरांत शिक्षक रवींद्र फिर उनके घर पहुंच गए. यह नीति रंग लाई और वह योग्यतावान पियक्कड़ रवींद्र की गांधीगीरी के सामने झुककर न केवल शराब छोड़ दी, बल्कि वह इस अभियान में शामिल हो गए.
इसके बाद वे दोनों घूम-घूमकर शराबियों के घर जा-जाकर उनसे शराब छोड़ने का अनुरोध करने लगे. शिक्षक की यह नीति कारगर साबित होती गई और लोग इस अभियान में जुड़ते चले गए. रवींद्र कहते हैं कि शराब पीने वाले नाई, दुकानदार, सब्जी बेचने वाले से ग्रामीणों ने खरीददारी तक बंद कर दी.
इसके बाद शराब बेचने वालों से मिलकर अनुरोध कर उनके शराब बेचने को धंधे को बंद कराया गया. इस अभियान के लिए गांवों में मशाल जुलूस, साइकिल रैली निकाली गई और ग्रामीणों की बैठकें भी की गई. रवींद्र कहते हैं कि अब इस गांव में तो शराब पूरी तरह बंद हो गया है.
आसपास के गांव वाले भी इस अभियान को अपने गांवों में प्रारंभ कर चुके हैं. गांव वालों के निर्णय के बाद शराब पीकर आने वाले अतिथियों का स्वागत भी नहीं किया जाता है. ग्रामीण सुजीत झा कहते हैं कि आज गांव में आने वाले बाराती भी शराब पीकर नहीं आते और न ही यहां के युवा शराब को हाथ लगाते हैं.