क्रिकेट के मक्का लॉर्ड्स में जब महेन्द्र सिंह धोनी की टीम ने शानदार जीत हासिल की तो लगा कि अब इंग्लैंड के खिलाफ इस सीरीज को जीतकर ही टीम लौटेगी. इस उम्मीद और विश्वास के साथ जब वे तीसरे टेस्ट में उतरे तो लगा कि कुछ होकर रहेगा लेकिन निराशाजनक गेंदबाजी और उससे भी ज्यादा बेकार बल्लेबाजी ने उन्हें पराजय का रास्ता दिखा दिया. इंग्लैंड ने साउथैम्टन में उन्हें धूल चटा दी. यह धोनी की ही नहीं पूरी टीम की विफलता है और इसके लिए लगभग सभी खिलाड़ी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं. हम इंग्लैंड से हर विभाग में पिछड़ गए.
हमने महत्वपूर्ण समय पर कैच छोड़े, निराशाजनक गेंदबाजी की और उससे भी बढ़कर घटिया बल्लेबाजी की. भारतीय टीम के सबसे होनहार खिलाड़ी विराट कोहली ने सबसे ज्यादा निराश किया. यह पहले से माना जा रहा था कि इंग्लैंड में विराट की अग्नि परीक्षा होगी और हुई भी जिसमें वे पूरी तरह असफल हुए. वहां वे विकेट से बाहर जाती गेंदों पर खेलकर आउट हुए ही, साधारण गेंदों पर भी आउट हुए. उनका अप्रोच कहीं से पेशेवर नहीं था. लगता था कि वे अब तक अपनी पिछली सफलता के खुमार से दूर नहीं हो पाए हैं.
यही हाल चेतेश्वर पुजारा का रहा जिन्हें द्रविड़ का विकल्प माना जाता है. लेकिन एंडरसन की तेज और स्विंग करती गेंदों पर वे लाचार दिखे. मोईन अली जैसे साधारण स्पिनर की गेंद पर जिस तरह से वे आउट हुए उससे तो लगा कि वे स्पिन गेंदों को खेलने में बिल्कुल अनाड़ी हैं.
ओपनर शिखर धवन की बल्लेबाजी कहीं से संपूर्ण नहीं है और उनकी तकनीक में खोट है. जिस तरह से वह कामचलाऊ स्पिनर जो रूट की गेंद पर आउट हुए उससे तो चयनकर्ताओं का विश्वास हिल गया होगा.
मुरली विजय बेशक बेहतर खेल रहे हैं लेकिन उनमें वह ऊर्जा नहीं दिख रही है जो हर टेस्ट मैच के साथ बढ़ती जानी चाहिए. रोहित शर्मा तो बिल्कुल अनाड़ी की तरह खेल रहे हैं और उनसे आगे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है. अजिंक्या रहाणे अकेले भारतीय बल्लेबाज हैं जो अपनी प्रतिभा और दिखा रहे हैं, हालांकि पहली पारी में वे भी कहीं बेहतर खेल सकते थे.
महेन्द्र सिंह धोनी भी बल्लेबाजी में निराश करते दिख रहे हैं. अगर दूसरी पारी में वे टिके रहते तो शायद यह मैच लंबा खिंच जाता. धोनी को अपनी बल्लेबाजी में और मेहनत करनी होगी तभी अगला टेस्ट मैच हम जीत पाएंगे जो सीरीज बराबर करने के लिए जरूरी है.
बल्लेबाजों के साथ-साथ गेंदबाजों ने भी पूरी तरह निराश किया. कोई भी गेंदबाज जलवा नहीं दिखा सका. ईशांत शर्मा की कमी का असर साफ दिखा. शमी, भुवनेश्वर कुमार और पंकज सिंह ने पूरी तरह निराश किया. उनकी गेंदों में न तो गति थी और न ही स्विंग. जडेजा एक कामचलाऊ किस्म के गेंदबाज से ज्यादा कुछ नहीं थे. अब निगाहें ओल्ड ट्रैफर्ड पर हैं जहां भारतीय स्पिनर अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं. लेकिन हमारी समस्या है कि अब हमारे पास वर्ल्ड क्लास स्पिनर भी नहीं हैं. आर अश्विन कुल मिलाकर भारतीय पिचों के ही स्पिनर हैं. अगले टेस्ट में हम उनसे ही उम्मीद कर सकते हैं कि वह कुछ करें.
यहां पर यह जिक्र करना अनुचित नहीं होगा कि इंग्लैंड के साधारण से स्पिन गेदबाज मोईन अली ने भारत के बेहतरीन बल्लोबाजों के छक्के छुड़ा दिए और पूरी टीम को हार के रास्ते पर भेज दिया तो हमारे स्पिनर क्यों नहीं ऐसा कर पाए? ऐसे कई सवाल इस टेस्ट मैच से उठ रहे हैं जिनके जवाब अगले टेस्ट में मिलने चाहिए. लॉर्ड्स में जीत के बाद अगर हम सीरीज नहीं बचा पाए तो यह बेहद निराशाजनक होगा.