हिंदुस्तानी फिल्मों के हरफनमौला सितारे किशोर कुमार की आवाज और अंदाज निराला था और उनके कॉलेज जीवन की मजेदार यादों को इंदौर के लोगों ने अब भी संजो रखा है यह वह दौर था, जब एक छोटे शहर से पढ़ने के लिये बड़े शहर आये नौजवान किशोर को अपनी जिंदगी का असल लक्ष्य साफ नजर आने लगा था.
चार अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश (तब मध्य प्रांत) के खंडवा में पैदा हुए किशोर का वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था. वह मैट्रिक पास करके इंटरमीडिएट में पहुंचे तो पिता कुंजलाल गांगुली ने उनके भविष्य की फिक्र करते हुए उनका दाखिला इंदौर के प्रतिष्ठित क्रिश्चियन कॉलेज में करा दिया. यह अलग बात है कि किशोर को उनका कॉलेज खासकर उनकी शरारतों के लिये ही याद रखता है, जिनकी झलक बाद में उनकी फिल्मों में भी दिखायी दी.
क्रिश्चियन कॉलेज में इतिहास पढ़ाने वाले स्वरूप वाजपेयी ने बताया, ‘किशोर वर्ष 1946 से लेकर वर्ष 1948 तक हमारे कॉलेज में पढ़े और फिर मुंबई (तब बंबई) चले गये. लेकिन उन पर कैंटीन वाले काका के पांच रुपये बारह आने बकाया रह गये.’ उन्होंने कहा कि यह बात कुछ साल बाद किशोर को मालूम पड़ी. माना जाता है कि उधारी की इस रकम से ‘प्रेरित’ होकर उन्होंने अपनी फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ (वर्ष 1958) के मशहूर गीत ‘पांच रुपैया बारह आना’ का मुखड़ा रचा. {mospagebreak}
क्रिश्चियन कॉलेज में खड़ा इमली का पेड़ मानो आज भी अपनी बांहें फैलाकर किशोर की राह ताक रहा है. वाजपेयी के मुताबिक नौजवान किशोर के लिये यह पेड़ ‘बोधि वृक्ष’ की तरह था. वह कॉलेज में पीरियड बंक करने के लिये ‘कुख्यात’ थे और इस पेड़ के नीचे यार दोस्तों के लिये गाने की महफिल जमाने के लिये भी. इस दौरान वह ‘यॉडलिंग’ (गायन की एक शैली) भी करते थे.
उन्होंने कहा, ‘किशोर एक बार कक्षा में टेबल को तबले की तरह बजा रहे थे. नागरिक शास्त्र का पीरियड था. प्रोफेसर ने उन्हें फटकार लगाते हुए पढ़ाई पर ध्यान देने की हिदायत दी और कहा कि यह गाना बजाना जिंदगी में कुछ काम नहीं आयेगा.’ जवाब में किशोर ने मुस्कुराते हुए कहा कि ‘सर, इसी गाने बजाने से अपनी जिंदगी का गुजारा होना है.’
मुंबई पहुंचने के बाद किशोर ने अपनी इस बात को सच साबित कर दिया और अपने शानदार कॅरियर में कोई 3 हजार गाने गाये. लेकिन यह बात शायद कम ही लोग जानते होंगे कि यहां अपने कॉलेज जीवन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान गायन के वक्त किशोर मंच पर पैर रखने में बुरी तरह झिझकते थे. क्रिश्चियन कॉलेज के प्राचार्य अमित डेविड ने बताया, ‘कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में किशोर गाना तो गाते थे.
लेकिन परदे के पीछे से.’ डेविड ने कहा, ‘उनकी शरारतों के किस्से हालांकि हमारे कॉलेज में अब भी चटखारे लेकर सुनाये जाते हैं. लेकिन पता नहीं क्यों, वह तब गाते वक्त मंच से श्रोताओं का सामना करने में झिझकते थे.’ किशोर क्रिश्चियन कॉलेज के ओल्ड हॉस्टल में रहते थे. इस हॉस्टल की इमारत हालांकि जीर्ण-शीर्ण हो गयी है. लेकिन कॉलेज परिसर में यहां वहां किशोर की यादें आज भी ताजा हैं, जिन पर वक्त की धूल शायद कभी नहीं चढ़ सकेगी.