दुनियाभर में बुधवार को इंटरनेट स्लो डाउन हो गया और सिक्युरिटी एक्सपर्ट की माने तो इस तरह का ये इतिहास का सबसे बड़ा साइबर हमला है. इस हमले की वजह से दुनिया भर में इंटरनेट की रफ्तार बेहद धीमी हो गई है.
स्पैम से लड़ने वाले ऑर्गनाइजेशन की एक वेबसाइट चलाने वाली कंपनी के साथ मतभेद हो गया. इसकी प्रतिक्रिया में इंटरनेट की मौलिक सुविधाओं पर लगातार हमले होने लगे. विशेषज्ञों को चिंता है कि यदि इस हमले को रोका नहीं गया तो बैंकिंग और ईमेल सुविधाओं पर भी खतरनाक असर पड़ सकता है.
फिलहाल इसका असर 'नेटफ्लिक्स' पर देखने को मिल रहा है. 5 देशों की साइबर पुलिस इन हमलों की पड़ताल में जुट गई है. हमलावरों ने जिस टेक्नीक का इस्तेमाल किया है उसे 'डिस्ट्रिब्यूटिड डिनायल ऑफ सर्विस' कहते हैं. इसमें 'टारगेट' को काफी तादाद में ट्रैफिक भेजा जाता है ताकि वह पहुंच के बाहर हो जाए.
इस हमले में लंदन और जेनेवा में स्थित एक एनजीओ 'स्पैमहौस' के 'डोमेन नेम सिस्टम सर्वर' को निशाना बनाया गया. ये सर्वर वे होते हैं जो डोमेन नामों को वेबसाइट के इंटरनेट प्रोटोकॉल अड्रेस से जोड़ता है.
स्पैमहौस के चीफ एक्जिक्यूटिव ऑफिसर स्टीव लिनफोर्ड ने इसे अप्रत्याशित हमला करार दिया है. उन्होंने कहा कि, 'इसका निशाना अगर ब्रिटेन सरकार हो तो इसमें इतनी ताकत है कि उनका सारा काम ठप हो जाए और इंटरनेट से बिल्कुल कट जाए.'