पर्यावरण के साथ हमारा शाश्वत रिश्ता रहा है. जीवन और पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक हैं. पर्यावरण के बगैर जीवन असम्भव है. शुद्ध पानी, पृथ्वी, हवा हमारे स्वस्थ जीवन की प्राथमिक शर्तें हैं. सहअस्तित्व का ऐसा उदाहरण दूसरा कोई नहीं है. लेकिन अफसोस कि आज दोनों का अस्तित्व संकट में है. यह संकट हमारे बीच के रिश्तों में आए असंतुलन का कुपरिणाम है, और इसी कारण आज हमें पृथ्वी दिवस और पर्यावरण दिवस जैसे अंतरराष्ट्रीय त्योहारों को मनाने की जरूरत आ पड़ी है.
दुनिया के सबसे बड़े इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने भी अपने होम पेज पर पृथ्वी दिवस का डूडल लगाया है. गूगल पर पृथ्वी के डूडल को प्ले किया जा सकता है, जो दिन-रात और बारिश दर्शाता है.
बहरहाल, पृथ्वी दिवस की शुरुआत का श्रेय अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन को जाता है. अमेरिका में 1970 के दशक में जहां एक तरफ वियतनाम युद्ध को लेकर विद्यार्थियों का आंदोलन जोर पकड़ रहा था. वहीं दूसरी ओर एक तबके में पर्यावरण संरक्षण को लेकर चेतना जाग रही थी.
इसी बीच कैलीफोर्निया के सांता बारबरा में 29 जनवरी 1969 को एक बड़ी दुर्घटना घटी. एक तेल कुएं में विस्फोट हो गया और बड़ी मात्रा में तेल और प्राकृतिक गैस सतह पर आ गया. इस भयानक तेल रिसाव ने सबकी आंखें खोल दी थी. ऐसे में नेल्सन के दिमाग में आया कि यदि विद्यार्थियों की शक्ति को पर्यावरण चेतना के साथ जोड़ दिया जाए तो पर्यावरण का मुद्दा राष्ट्रीय एजेंडे में शामिल हो जाएगा.
इसी क्रम में नेल्शन ने मीडिया में पर्यावरण पर राष्ट्रीय शिक्षण के विचार की घोषणा कर दी. उन्होंने कांग्रेस में संरक्षणवादी सोच रखने वाले रिपब्लिकन प्रतिनिधि, पीट मैक्लोस्की को अपने साथ काम करने के लिए तैयार किया, और डेनिस हायेस को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया. हायेस ने देश भर में इस आयोजन के प्रसार के लिए 85 कर्मचारियों की नियुक्ति की.
इसका परिणाम यह हुआ कि 22 अप्रैल को दो करोड़ अमेरिकियों ने सड़कों, उद्यानों और सभाकक्षों में पहुंच कर स्वस्थ, टिकाऊ पर्यावरण के लिए अपनी आवाज बुलंद की. हजारों कॉलेजों व विश्वविद्यालयों ने पर्यावरण के बिगड़ते हालात के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किए.
1970 के इस पृथ्वी दिवस को अनूठा राजनीतिक समर्थन मिला. रिपब्लिकन और डेमोक्रेट, गरीब और अमीर, शहरी और ग्रामीण किसान, अधिकारी और श्रमिक नेता सभी ने इस आयोजन को अपना समर्थन दिया. इस आयोजन ने संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के गठन का मार्ग प्रशस्त किया.
21 मार्च, 1971 को संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थैंट ने पृथ्वी दिवस को अंतरराष्ट्रीय समारोह घोषित कर दिया. वर्ष 1990 में पहली बार आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाया गया. पर्यावरण संरक्षण के लिए आयोजित समारोहों में दुनियाभर के 141 देशों में लगभग 20 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया.
वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ. बाद में पृथ्वी दिवस की स्थापना के लिए राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने सीनेटर नेल्सन को प्रेसीडेंट मेडल ऑफ फ्रीडम-1995 प्रदान किया.
पर्यावरण संरक्षण के आधुनिक आंदोलन की यह वर्षगांठ अब हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाई जाती है. सरकारी-गैरसरकारी तरह-तरह के आयोजन होते हैं. हम धरती व पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेते हैं. वृक्षारोपड़ से लेकर नदियों, तालाबों व अपने आसपास की साफ-सफाई जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. जनजागरुकता अभियान, सभा, संगोष्ठियां व सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं.
भारत में त्योहार की परम्परा रची-बसी हुई है. राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, आंचलिक सभी स्तर के त्योहार हैं और अब हमारे साथ अंतरराष्ट्रीय त्योहार भी आ जुड़े हैं. हमारे सभी त्योहार प्रकृति एवं पर्यावरण के लिहाज से बने हुए हैं. हमारे यहां हमेशा से पेड़ों, नदियों, तालाबों, व पृथ्वी की पूजा होती रही है और आज भी होती है. लेकिन थोड़ा पढ़-लिख चुके आधुनिक समाज ने इन परम्पराओं को रुढ़िवादिता कह कर कूड़ेदान में फेंक दिया और आज अपना कूड़ा-कचरा ही हम पर भारी पड़ रहा है.
यही पढ़ा-लिखा तबका ऐसे अंतरराष्ट्रीय त्योहारों की अगुआई कर रहा है. लेकिन यदि हमें सही मायने में पृथ्वी और पर्यावरण को बचाना है, खुद को बचाना है तो फिर से अपनी परम्पराओं को, शाश्वत चेतना को जगाना होगा. अन्यथा एक दिन का अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं होगा.