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गायब होते जा रहे हैं रिश्‍तों में गर्माहट लाने वाले स्‍वेटर

एक समय था, जब जाड़े के दिनों में किसी को उपहार देने की सबसे अच्छी चीज हाथ से बुने हुए स्वेटर माने जाते थे. पर आज हाथ से बुने हुए स्वेटरों का चलन काफी कम हो गया है.

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हाथों से बुने स्‍वेटरों की बात ही कुछ और है...
हाथों से बुने स्‍वेटरों की बात ही कुछ और है...

एक समय था, जब जाड़े के दिनों में किसी को उपहार देने की सबसे अच्छी चीज हाथ से बुने हुए स्वेटर माने जाते थे. बच्चों के लिए उनकी माएं ठंड आने से पहले से ही उनके लिए स्वेटर बुनना शुरू कर देती थीं. गांव से शहरों तक महिलाओं और लड़कियों को स्वेटर बुनने की ट्रेनिंग देने के लिए संस्थान खुले होते थे. पर आज हाथ से बुने हुए स्वेटरों का चलन काफी कम हो गया है.

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ठंड के दिनों में अब लोग रेडीमेड स्वेटर या जैकेट पहनना ज्यादा पसंद करते हैं. अब कम ही महिलाएं ऊन खरीदकर स्वेटर बुनती देखी जाती हैं. इसकी वजह समय की कमी माना जाए या महिलाओं की स्वेटर बुनने में रुचि कम होना माना जाए, लेकिन आजकल बच्चे हों या बूढ़े, सभी को रेडीमेड स्वेटर ही पसंद आ रहे हैं.

घरों में स्वेटर बुने जाने का चलन उठते जाने के कारण ऊन बेचने वाले व्यापारियों का बिजनेस भी मंदा पड़ गया है. पटना सिटी में एक ऊन बेचने वाले दुकानदार अमित साह कहते हैं, 'तीन-चार साल पहले तक यहां ऊन की बिक्री काफी अच्छी होती थी, लेकिन अब तो ऊन खरीदने वाले लोगों की संख्या दो-चार होती है.' ऊन के बजाय अब उन्हें दुकान में रेडीमेड स्वेटर रखना पड़ रहा है.

अमित भी मानते हैं कि पहले महिलाएं अपने परिजनों के अलावा रिश्तेदारों के लिए भी स्वेटर बुनती थीं, लेकिन अब इसका चलन खत्म हो गया है.

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एक अन्य दुकानदार कहते हैं, 'पहले ठंड का मौसम शुरू होने से पहले ही ऊन खरीदने वालों का तांता लग जाता था, मगर अब उनकी संख्या कम होती जा रही है. पहले तो सरकारी स्कूलों में महिला टीचर और ऑफिसों में भी मौका मिलते ही महिला कर्मचारी स्वेटर बुनने लगती थीं.'

महिलाएं भी मानती हैं कि स्वेटर बुनने के प्रचलन में कमी आई है. वैसे कुछ महिलाएं आज भी अपने परिजनों को बुने स्वेटर पहनाना पसंद करती हैं. बोरिंग रोड की रहने वाली गृहिणी ममता कहती हैं, 'बुने हुए स्वेटर न केवल रिश्तों में गर्माहट का अहसास कराती हैं, बल्कि यह अपनापन जताने का बहुत ही आकर्षक जरिया भी है.' आज भी वे अपने पति और बच्चों को अपने हाथ से बुना हुए स्वेटर पहनाती हैं.

ममता ने आगे कहा, 'स्वेटर बुनने में समय तो लगता है, पर इसके तैयार हो जाने के बाद एक सुखद अहसास होता है. यह अपनों के लिए प्यार दिखाता है.'

हालांकि एक अन्य महिला का मानना है, 'रेडीमेड स्वेटरों की बात ही अलग है. सभी तरह के रंग और डिजाइन के स्वेटर बाजार में हैं, जो सभी को पसंद भी आ रहे हैं. अगर बिना मेहनत के ही पसंदीदा डिजाइन और फैशन के अनुसार स्वेटर पहनने को मिल जाए, तो फिर स्वेटर बुनने के लिए समय क्यों बर्बाद किया जाए?'

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हाथ के बुने हुए स्वेटरों की मांग कम होने के कारण ऐसे लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जो कुछ पैसा लेकर दूसरों का स्वेटर बुन देते हैं और अपने परिवार के थोड़ा-बहुत कमा भी लेते हैं.

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