इस खराब दौर के बीच वह एक अच्छा दिन था उमर अब्दुल्ला के लिए. तब तक कोई मौत नहीं हुई थी, और सैयद अली शाह गीलानी ने शांति बनाए रखने के लिए अपील की थी. उन्होंने गुपकर रोड स्थित अपने घर जी1 के अपने कामचलाऊ दफ्तर में मैनेजिंग एडीटर कावेरी बामजई से बातचीत की. मुख्यमंत्री को मालूम है कि करीने से सजाए गए अपने गुलाब के बाग का आनंद उठाना है तो ऐसे और दिनों की जरूरत होगी. उनसे बातचीत का अंशः
पिछले दो महीनों में आपने क्या सबक सीखे हैं?
राजनीतिक, प्रशासनिक और निजी मोर्चे पर कई सबक सीखे. मेरे सबसे बड़े सवालों में से एक यह है कि 2008 अमरनाथ भूमि विवाद का स्पष्ट स्रोत थाः ढांचा तैयार करने के लिए भूमि का आवंटन. लेकिन इस बार साफ तौर पर कोई भड़काऊ घटना नहीं थी. इसकी शुरुआत छिटपुट घटनाओं से हुई जिनका एक-दूसरे से कोई वास्ता नहीं था. तुफैल मट्टू की मौत आंसू गैस के गोले की वजह से हुई, जिसके बाद जावेद मल्ला और फिर रफीक बांगरू की मौत हुई. लेकिन उसके बाद श्रीनगर को शांत करा दिया गया. लेकिन उसके बाद सोपोर में प्रदर्शन शुरू हो गया, वह इसलिए भड़क गया क्योंकि वहां एक मुठभेड़ में स्थानीय उग्रवादी मारा गया था. लोग घर से बाहर आ गए, उन्होंने सीआरपीएफ को निशाना बनाया और दूसरी तरफ से गोलियां चलीं और लोग मारे गए. फिर चीजें अनंतनाग की ओर बढ़ चलीं, जहां कोई उकसाऊ घटना नहीं हुई थी.
एक स्पष्ट सबक यह है कि हम मुगालते में खामोशी के साथ नहीं बैठ सकते कि कश्मीर में कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसके समाधान की जरूरत है. भले ही माहौल शांत लग रहा है लेकिन अगर आप लोगों के बीच जाएं तो उनमें गुस्से और प्रतिशोध की भावनाएं दिखेंगी.
हमने 2008 विधानसभा चुनाव को इस बात का संकेत मानने की गलती की कि यहां कोई समस्या नहीं है. जम्मू और कश्मीर राजनीतिक मुद्दा है. इसे राजनीतिक ढंग से सुलझने की जरूरत है.
इसका मतलब है स्वायत्तता...
नहीं. स्वायत्तता का प्रस्ताव मेरी पार्टी ने रखा है. दूसरी पार्टियों का रवैया अलग है. मूलतः इसका मतलब यह है कि मुख्यधारा के साथ ही अलगाववादियों के साथ निरंतर राजनीतिक संवाद शुरू हो.{mospagebreak}
और पाकिस्तान के साथ वार्ता के बारे में क्या ख्याल है?
मैं हमेशा से पाकिस्तान के साथ निरंतर बातचीत की पैरवी महज इसलिए करता रहा हूं कि लोगों को अलग करना राज्य के लिए हमेशा हानिकारक रहा है. जब परवेज मुशर्रफ ने अटल बिहारी वाजपेयी और फिर डॉ. मनमोहन सिंह से बातचीत की तो हमारे लिए अच्छा रहा. हमारे लिए सबसे खराब वक्त वह रहा जब हमने करगिल, संसद पर हमले या मुंबई में 26/11 के हमले के बाद बातचीत बंद कर दी. मैं इसे अपने राज्य की संकीर्ण दृष्टि से देखता हूं लेकिन बातचीत से ही राष्ट्रीय हित भी सबसे बढ़िया ढंग से सधते हैं. मैं बाधाओं को समझता हूं-पाकिस्तान पर हुकूमत के मामले में या उनके रवैये पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है- लेकिन हमें इन बातों को ध्यान में रखना होगा.
क्या आप मानते हैं कि कश्मीर में हाल में हुई घटनाओं के पीछे कोई पाकिस्तानी हाथ था?
किसी तरह का दोष लगाने के लिए यह बहुत जल्दबाजी होगी. इसकी वजह से हमारी परेशानियां और भी पेचीदा हो जाएंगी. अगर मैं सीमा पार की ओर उंगली दिखाना शुरू करूंगा तो यहां के लोग मानने लगेंगे कि मैं अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहा हूं.
क्या आपकी धारणा और कार्रवाई के बीच कोई अंतर है?
मैं खुद ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन हूं. मैंने लोगों को यह बताने की पर्याप्त कोशिश नहीं की कि हम क्या कर रहे हैं. हम अभी तक ऐसी मानसिकता के लिए तैयार नहीं हैं जिसमें मेहनत ही सब कुछ है और हम भावना के बारे में बाद में चिंता करेंगे.{mospagebreak}
लेकिन क्या आप मानते हैं कि आपने जो किया वह पर्याप्त है?
अभी काफी कुछ करने की जरूरत है. आज राज्य में छह लाख बेरोजगार युवक हैं. मुझे काफी कुछ करने की जरूरत है, और मुझे उनकी मदद की जरूरत है. मेरे यहां पहले से ही पांच लाख सरकारी कर्मचारी हैं. एक ओर जहां मुझे सरकार के भीतर ही कई अवसरों को तलाशना है, वहीं मुझे गैर-सरकारी अवसरों की भी जरूरत है और इसके लिए राज्य में स्थिति सामान्य होना जरूरी है.
क्या आपको लगता है कि केंद्र ने आपका पर्याप्त समर्थन किया है?
मुझे भारत सरकार, मेरे गठबंधन के साझीदार और यूपीए का पूरा समर्थन हासिल है. अब मेरी और मेरे सहयोगियों की बारी है कि उनके समर्थन और विश्वास पर खरे उतरें. उन्होंने मुझ पर उसी तरह विश्वास जताया है जैसे मेरे राज्य ने मुझ पर विश्वास किया है. इसके लिए मैं उन सभी लोगों का आभारी हूं जिन्होंने इस मुश्किल घड़ी में अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप उतरने के लिए मेरा साथ दिया.
लेकिन आपको फौरी तौर पर क्या करने की जरूरत है?
हालात सामान्य बनाने की जरूरत है. ऐसे हालात बनाने की कोशिश करनी है जिसमें हम कर्फ्यू में ढील दे सकें. 30 जुलाई को फिर से प्रदर्शन शुरू होने से पहले मैंने तहसील स्तर की नागरिक बैठकों, अवामी मुलाकात की व्यवस्था शुरू कर दी थी. इन बैठकों को फिर से शुरू करने और व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है. मुझे श्रीनगर में अपने निजी दफ्तर को सक्रिय करने की जरूरत है. मैं एक रेडियो फोन-इन ह्ढोग्राम शुरू करने की उम्मीद कर रहा हूं जिसमें लोग अपने आग्रह के साथ कॉल कर सकते हैं. ज्यादा जन संपर्क के साथ ही इन प्रयासों का नतीजा ज्यादा सक्षम प्रशासन के रूप में निकलेगा.{mospagebreak}
लेकिन जितनी तेजी से प्रदर्शन के तरीके बदल रहे हैं क्या उतनी ही तेजी से प्रशासन की प्रतिक्रिया भी बदल रही है?
मैं ऐसे सुरक्षा बल का नेतृत्व कर रहा हूं जिसने पिछले 18 या 19 साल से खुद को अलगाववाद से निबटने के लिए तैयार किया है. आज यह उनकी कोई खास समस्या नहीं है. अब यह कानून और व्यवस्था की समस्या है. अब हमें अपने सिद्धांत और प्रक्रियाओं को बदलने की जरूरत है. मैं आपको एक मिसाल देता हूं. हमारी भारतीय रिजर्व पुलिस बटालियनों को उग्रवाद से लड़ने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाने वाला है. लेकिन अब हमने फैसला किया है कि वे रैपिड ऐक्शन फोर्स की तर्ज पर प्रशिक्षण लेंगे ताकि वे घातक हथियारों का इस्तेमाल किए बगैर भीड़ से निबट सकें. अगर आप इन घटनाओं के पैमाने, आकार और विस्तार पर गौर करें और फिर उनमें हताहतों की संख्या देखें तो मुझे लगता है कि ऐसा कोई सुरक्षा बल नहीं है जो उससे ज्यादा संयम बरत सकता था.
आप अपने पिता को गुप्त हथियार के रूप में क्यों नहीं नियुक्त करते?
क्योंकि मेरे वालिद मेरी किसी बात को छिपा नहीं सकते. वे नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं. लेकिन वे लोगों के बीच जाएं, इसके लिए एक हद तक स्थिति सामान्य होना जरूरी है. सरकार को उन्हें संसद से छुट्टी देनी होगी.
क्या अलगाववादियों के बीच फूट से आपको बढ़त नहीं मिलनी चाहिए?
इसके उलट, वे इस प्रयास में सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं कि कोई नाहक न मारा जाए. विभाजित, अलग-थलग, एक-दूसरे से कटा अलगाववादी नेतृत्व भी हमारे हित में नहीं है. इसका सामना कीजिए, ऐसे लोग भी हैं जिनकी आकांक्षाओं का वे प्रतिनिधित्व करते हैं.