भारत दुनिया में अवैध सिगरेट की छठी बड़ी मंडी बन गया है. एक अनुमान के मुताबिक देश में इसका करीब 2000 करोड़ रुपये का कारोबार होता है.
एसोचैम द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि अवैध सिगरेट के कारोबार से जहां एक तरफ सरकार को राजस्व की क्षति होती है, वहीं करीब 50 लाख तंबाकू उत्पादक किसानों की रोजी-रोटी प्रभावित होती है. अध्ययन में संदेह जताया गया है कि इस कारोबार से होने वाली आय का इस्तेमाल आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने में भी किया जाता है.
नामी अनुसंधान संगठन यूरोमॉनिटर ने हाल ही में किए गए अपने अध्ययन में कहा है कि ऐसे सिगरेट उत्पाद कर, वैट, सीमा शुल्क या अन्य करों का भुगतान नहीं करते, इसलिए सस्ते और आकर्षक मूल्य पर उपलब्ध होते हैं.
वर्ष 2006-7 में 109 अरब सिगरेट का उत्पादन हुआ था. 2010-11 में यह संख्या घटकर करीब 101 अरब रह गई. यूरोमॉनिटर ने भारत में अवैध सिगरेट कारोबार का आकार और बढ़ने का अनुमान जाहिर किया है.
अध्ययन के मुताबिक भारत में अवैध सिगरेट का प्रतिवर्ष करीब 2000 रुपए का करोबार होता है. ऐसी सिगरेट में भारत में उत्पादित तंबाकू का इस्तेमाल नहीं होता है जिससे पहले से ही विपरीत परिस्थितियों की मार झेल रहे देश के तंबाकू किसानों की रोजीरोटी पर खतरा मंडराने लगा है. अवैध सिगरेट की समस्या खास तौर से शहरी क्षेत्र में गंभीर है, लेकिन पूरा देश इसकी जद में आ चुका है.
सबसे खास यह है कि तस्करी के जरिए आने वाले सिगरेट पर सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) के तहत अनिवार्य रूप से दी जाने वाली आरेख चेतावनी भी नहीं होती है, जिससे सरकार की तंबाकू नियंत्रण नीति भी खटाई में पड़ती दिखाई देती है.
ऐसी सिगरेट के डिब्बों पर खुदरा बिक्री मूल्य नहीं होने से तस्करों और बाजार में इसका करोबार करने वालों को अच्छी आमदनी होती है. भारतीय बाजार में ऐसी सिगरेट चीन, म्यामार, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, खाड़ी देशों, दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और यहां तक कि यूरोपीय देशों से तस्करी होती है.