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आइएसआइ को किया भारत ने माफ

हालांकि मुंबई में 26/11 के हमलों की साजिश और उनके लिए मदद देने के मामले में पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ की भूमिका को लेकर लगातार सबूत मिले हैं लेकिन भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू करने की तैयारी कर रहा है.

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हालांकि मुंबई में 26/11 के हमलों की साजिश और उनके लिए मदद देने के मामले में पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ की भूमिका को लेकर लगातार सबूत मिले हैं लेकिन भारत पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू करने की तैयारी कर रहा है.

सियाचिन ग्लेशियर के विवादास्पद मुद्दे पर बातचीत के लिए भारत के रक्षा सचिव प्रदीप कुमार के नेतृत्व में रक्षा मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल मई के अंत में इस्लामाबाद जाएगा. प्रदीप कुमार की यात्रा दोनों पक्षों के बीच सचिव स्तर की वार्ता का तीसरा चरण है और समग्र बातचीत दोबारा शुरू करने की एक कोशिश है जिसे 26/11 हमलों के बाद रोक दिया गया था. इससे पहले हुई बातचीत में दोनों पक्षों के गृह और विदेश मंत्री शामिल हुए.

26/11 की साजिश में शामिल एक ओर आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा ने अमेरिका की एक जिला अदालत के सामने हाल में खुलासा किया कि उसने पाकिस्तान की आइएसआइ की तरफ  से काम किया था. पाकिस्तानी कनाडाई मूल का राणा भी इन हमलों के लिए आरोपित है, जिनमें 168 लोग मारे गए थे. उसने यह भी कहा कि आइएसआइ को अपने राष्ट्रीय हित की रक्षा के लिए भारत में काम करने का अधिकार है.

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राणा ने यह दलील देकर छूट मांगनी चाही कि वह एक देश के हित की खातिर दूसरे देश के खिलाफ  काम कर रहा था. इलिनॉय कोर्ट ने उसकी दलील यह कहते हुए ठुकरा दी कि उसने अमेरिकी सरकार के आदेश पर यह काम नहीं किया था. राणा ने यह खुलासा ऐसे समय पर किया है जब भारत और पाकिस्तान आतंकवादी हमलों के बाद अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.

थिंपू में पिछले साल अप्रैल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के साथ तनाव कम करने की कोशिश की थी. यह मुलाकात पिछले महीने मोहाली में भारतपाकिस्तान के बीच सेमीफाइनल के जरिए क्रिकेट कूटनीति में तब्दील हो गई.

ऐसा इस तथ्य केबावजूद हुआ कि पाकिस्तान ने अपने यहां से फैल रहे आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए कुछ नहीं किया है, जबकि 26/11 हमलों के बाद रोकी गई समग्र वार्ता को दोबारा शुरू कराने के लिए यह जरूरी शर्त है.

पाकिस्तान ने हमलों के बाद से भारत के गृह मंत्रालय के भेजे कई दस्तावेजों का कोई जवाब नहीं दिया. और न ही उसने एलईटी नेताओं हाफिज मोहम्मद सईद, .जरर शाह और अबू अल कामा की आवाज के नमूने दिए (भारत 26/11 के आत्मघाती आतंकवादियों को उकसाने वाली आवाजों से इन आवाजों को मिला सकता था).

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भारत लश्कर-ए-तय्यबा के नाम का उल्लेख कर एक अनुरोध पत्र (एक अदालत की ओर से विदेश की एक अदालत को भेजा गया औपचारिक अनुरोध) भेजने के विकल्प का भी पता लगा रहा है. अनुरोध पत्र पाकिस्तान की रावलपिंडी की अदियाला जेल में आतंकवाद निरोधक अदालत को भेजा जाएगा, जहां 26/11 के सातों संदिग्धों पर मुकदमा चलाया जा रहा है. इनमें जकी उर रहमान लखवी भी शामिल है.

मुकदमे की कार्रवाई 2009 में शुरू कर दी गई थी लेकिन इसमें कई अड़चनें आईं. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मार्कटोनर ने मीडिया को बताया, ''अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी की जिम्मेदारी है कि अपराध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई में सहयोग करें और खासतौर से पाकिस्तान की जिम्मेदारी है कि वह इस काम में पारदर्शिता बरते और तेजी लाए.''

पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त जी. पार्थसारथि कहते हैं, ''लगता है, प्रधानमंत्री को पाकिस्तान से वार्ता की सनक सवार है और वे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की अनदेखी करने के लिए भी तैयार हैं. पाकिस्तान के सामने ऐसे आत्मसमर्पण करना मुंबई आतंकवादी हमलों में मारे गए लोगों के साथ विश्वासघात है.''

यह एक पहेली है जिससे सुरक्षा एजेंसियां 2001 में संसद में हुए हमले के साथ ही भारत के अंदरूनी हिस्सों में आतंकवादी हमलों के बाद एक दशक से जूझ रही हैं. एक खुफिया अधिकारी का कहना है, ''हम पाकिस्तान से बात करते हैं तो हमला होता है, बातचीत न करें तब भी हमला होता है. दोनों ही हाल में वे हिंसा फैलाते हैं.'' सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के साथ बातचीत करके भारत अपना ही पक्ष कमजोर कर रहा है. सेंटर फॉर पॉलिसीरिसर्च में सामरिक रणनीति अध्ययन के प्रोफव्सर ब्रह्म चेलानी कहते हैं, '' पाकिस्तान मुंबई में आतंकवादी हमलों का दोषी है, हम उसे यूं ही छोड़ देने के दोषी हैं.''

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16 मई को इलिनॉय में जब राणा का मुकदमा शुरू होगा तब पाकिस्तानी सत्तातंत्र की भूमिका के बारे में कई अप्रिय खुलासे होंगे. राणा का शिकागो में इमिग्रेशन का व्यवसाय था. उस पर विदेशी आतंकवादी संगठनों को साजोसामान देने के कई आरोप है. इनमें 26/11 के हमलों के में एलईटी की सहायता करने और जाइलैंड्‌स पोस्टन अखबार की इमारत पर हमले की साजिश के आरोप शामिल हैं. डेनमार्क के इस अखबार में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून प्रकाशित हुआ था. इस मामले में एफबीआइ का प्रमुख गवाह डेविड कोलमन हेडली उर्फ  दाऊद गिलानी है जो अपने पूर्व साथी राणा के खिलाफ  गवाही देगा.

राणा ने इलिनॉय जिला अदालत को जितनी बातें बताईं, उनमें भारतीय जांचकर्ताओं के लिए कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं था. पिछले साल जून में हेडली ने नेशनल इनवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआइए) के अधिकारियों को बताया था कि आइएसआइ की ''पूरी सहायता'' से ही 26/11 काहमला मुमकिन हुआ. हेडली ने बेहद सावधान और व्यवस्थित तरीके से पांचों जगहों की टोह ली, जो 26/11 के हमलों को अंजाम देने के लिए जरूरी थी.

पिछले साल जून में न्यूयॉर्क में हफ्ता भर चली 34 घंटे की पूछताछ में हेडली ने खुलासा किया कि लश्कर की हर बड़ी कार्रवाई की निगरानी आइएसआइ करती थी. हेडली ने भारत में अपने टोही मिशन के लिए जिस रकम का इस्तेमाल किया वह आइएसआइ के मेजर इकबाल ने दी. उसने मुंबई में फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज नाम से एक कार्यालय खोला.

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हेडली के अनुसार एलईटी के हरेक प्रमुख सदस्य की जिम्मेदारी आइएसआइ के एक या अधिक सदस्यों ने ले रखी थी (उसकी जिम्मेदारी मेजर इकबाल और मेजर समीर अली की थी). 26/11 के बाद आइएसआइ के प्रमुख ले.जनरल शुजा पाशा ने पूरी साजिश को समझ्ने के लिए लखवी से मुलाकात की.

छिप कर काम करने के लिए हेडली 2006 में मुंबई आ गया और उसने भारत के नौ चक्कर लगाए. एलईटी के वरिष्ठ नेताओं से मिलने के लिए वह पाकिस्तान जाता रहा. राणा 26/11 से पांच दिन पहले मुंबई आया. अंततः हेडली को एफबीआइ ने 3 अक्तूबर'09 कोगिरफ्तार कर लिया. राणा दो हफ्ते बाद गिरफ्तार किया गया.

यह एक और अदालती मामला है जिसकी वजह से पाकिस्तान को परेशानी हो रही है. पिछले साल नवंबर में न्यूयॉर्क की एक अदालत ने पाशा और एलईटी प्रमुख हाफिज सईद को बुलाया. अदालत रब्बी गेव्रिएल नोआ होल्.जबर्ग और उनकी पत्नी रिवका के रिश्तेदारों के दायर किए मुकदमे की सुनवाई कर रही थी. पतिपत्नी मुंबई हमलों के दौरान नरीमन हाउस को घेरने वाले आतंकवादियों के हाथों मारे गए थे.

शिकागो में चल रहे मुकदमे के उलट, जिसमें सिर्फ  हेडली और राणा का नाम था, इस याचिका में पाकिस्तान सरकार की एजेंसियों और लोगों के सीधे तौर पर शामिल होने की बात कही गई है. 26 पन्नों के मुकदमे में आइएसआइ पर आतंकवादी हमलों के लिए मदद देने और उन्हें उकसाने तथा एलईटी को हर तरह का साजोसामान देने का आरोप लगाया गया है.

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पाकिस्तान ने आइएसआइ को बचाने की कसम खा रखी है. पिछले साल दिसंबर में गिलानी ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कहा, ''आइएसआइ के अधिकारी को उसकी मर्जी के खिलाफ अमेरिकी अदालत में हाजिरहोने के लिए कोई भी मजबूर नहीं कर सकता.'' सितंबर 2008 में आइएसआइ के महानिदेशक का पद संभालने वाले पाशा के अलावा अदालत ने उनके वारिस ले.जनरल नदीम ताज, मेजर इकबाल और मेजर अली तथा एलईटी के आजम चीमा को भी समन जारी किया.

पार्थसारथि का कहना है, ''यह काफी दिलचस्प रहेगा कि हेडली और राणा के दिए सबूत का मृतकों के रिश्तेदार कैसे इस्तेमाल करते हैं.'' मुंबई हमलों का भूत पाकिस्तान को अमेरिकी अदालतों में सताता रहेगा.

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