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इंडिया टुडे ग्रुप सर्वे: नरेंद्र मोदी से ज्यादा ईमानदार हैं अरविंद केजरीवाल, AAP को लोकसभा में 10 सीट

आम चुनाव से पहले कराए गए इंडिया टुडे ग्रुप/सी वोटर सर्वे के मुताबिक आम आदमी पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में 10 सीटें मिल सकती हैं. सर्वे के मुताबिक पार्टी को कुल वोट शेयर का आठ फीसदी मिलने का अनुमान है.

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बीते दिसंबर में दिल्‍ली में हुए विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित कामयाबी हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी की नजर अब आगामी लोकसभा चुनाव पर है. दिल्‍ली विधानसभा से संसद की दूरी महज सात किलोमीटर है लेकिन यह सफर अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए इतना आसान भी नहीं है.

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आम चुनाव से पहले कराए गए इंडिया टुडे ग्रुप/सी वोटर सर्वे के मुताबिक आम आदमी पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव में 10 सीटें मिल सकती हैं. सर्वे के मुताबिक पार्टी को कुल वोट शेयर का आठ फीसदी मिलने का अनुमान है. इस तरह वोट शेयर के हिसाब से आम आदमी पार्टी देश में तीसरे नंबर की पार्टी बन सकती है.

हालांकि, अभी आम चुनाव होने में काफी वक्‍त बाकी है. अधिकतर राज्‍यों में आम आदमी पार्टी का सांगठनिक ढांचा भी नहीं है. यहां तक कि कई क्षेत्रों में पार्टी ने अपना अभियान भी शुरू नहीं किया है. ऐसे में अगले कुछ महीने में पार्टी के वोट शेयर में सुधार होने का अनुमान है. माना जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनों में वोट शेयर के प्रतिशत में पांच फीसदी का सुधार होगा और इस तरह पार्टी को 30 सीटें मिल सकती हैं. ऐसा हुआ तो आम आदमी पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है. अगर पार्टी थोड़ा और जोर लगाती है तो यह आंकड़ा 50 के आसपास पहुंच सकता है. ऐसी स्थिति में केजरीवाल 'किंग' तो नहीं लेकिन 'किंगमेकर' जरूर बन सकते हैं.

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अगर आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 25 फीसदी से अधिक रहा तो पार्टी को 300 से अधिक सीटें मिल सकती हैं और ऐसी स्थिति में केजरीवाल की पार्टी अपने बूते केंद्र में सरकार बना सकती है. ऐसा होना असंभव भी नहीं है क्‍योंकि सर्वे में शामिल लोगों में से 70 फीसदी का मानना है कि आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में भी दिल्‍ली विधानसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन करने में सक्षम होगी.

अरविंद केजरीवाल ने अपने पहले के स्‍टैंड से यू-टर्न लेते हुए 18 जनवरी को एक टीवी इंटरव्यू में कहा, 'अगर मेरे पार्टी के लोग चाहते हैं तो मैं लोकसभा चुनाव लड़ूंगा.' केजरीवाल के आत्‍मविश्‍वास की वजहें भी हैं. सर्वे में शामिल लोगों में से 37 फीसदी की नजर में केजरीवाल सबसे ज्‍यादा पसंद किए जाने वाले गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार हैं. गौरतलब है कि करीब छह महीने पहले बीते साल अगस्‍त में कराए गए ऐसे ही एक सर्वे के मुताबिक केवल एक फीसदी लोगों ने उन्‍हें इस श्रेणी में सबसे पसंदीदा पीएम उम्‍मीदवार माना था. गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी पीएम पद के उम्‍मीदवार के तौर पर मायावती की लोकप्रियता में कोई बदलाव नहीं हुआ है. अगस्‍त में हुए सर्वे में भी सात फीसदी लोग मायावती को अपनी पहली पसंद मानते थे और आज भी यही हाल है. इस तरह मायावती इस लिस्‍ट में दूसरे पायदान पर बरकरार हैं.

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केजरीवाल के लिए इससे बड़ी खुशी की बात यह है कि दिल्‍ली का सीएम बनने के एक महीने के भीतर ही उन्‍होंने गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी से 'बेस्‍ट सीएम' का ताज छीन लिया है. सर्वे में शामिल 25 फीसदी लोगों का मानना है कि केजरीवाल देश के सबसे ईमानदार राजनेता हैं.

हालांकि, आलोचक इस बात से सहमत नहीं दिख रहे हैं कि आम आदमी पार्टी अगले आम चुनाव में शानदार प्रदर्शन करेगी. इनका कहना है कि राष्‍ट्रीय स्‍तर पर चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के पास मजबूत संगठन की कमी है. इसके अलावा, चुनाव अभियान के लिए फंड जुटाने या विज्ञापन/पीआर एजेंट को हायर करने के लिए भी कम वक्‍त बचा है. लेकिन, पार्टी एक बार फिर अपने तरीके से राजनीति की परिपाटी बदलने में जुट गई है.

आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्‍छुक लोगों से फॉर्म भरवा रही है और बड़े जोर-शोर से सदस्‍यता अभियान चला रही है. पार्टी के ये कदम अगले आम चुनाव में फायदा पहुंचा सकते हैं. उम्‍मीद है कि कुछ हफ्तों में करीब 20 लाख लोग या तो ऑनलाइन या 'मैं भी आम आदमी' अभियान के तहत पार्टी से जुड़ जाएंगे.

अगर देश में गैर कांग्रेसी, गैर बीजेपी सरकार बनती है तो प्रधानमंत्री के रूप में आपकी पहली पसंद कौन होगा?

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अगस्‍त 2013

जनवरी 2014

अरविंद केजरीवाल

1

37

मायावती

7

7

जे जयललिता

4

5

एन चंद्राबाबू नायडू

6

4

मुलायम सिंह यादव

7

3

ममता बनर्जी

4

2

जगन मोहन रेड्डी

2

2

लालू प्रसाद यादव

2

1

अखिलेश यादव

2

1

नीतीश कुमार

5

1

नवीन पटनायक

3

1

इनमें से कोई नहीं

12

4

अन्‍य

19

5

कह नहीं सकते/पता नहीं

26   

27

 

इन आंकड़ों से उत्‍साहित 'आप' नेता प्रशांत भूषण को 15 जनवरी को यह ऐलान करना पड़ा कि उनकी पार्टी लोकसभा की 400 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. उन्‍होंने कहा, 'यह एक राजनीतिक क्रांति है जिसके हम गवाह बने हैं.'लेकिन 'आप' के इस सफर में कई रुकावटें भी हैं. पार्टी का सपोर्ट बेस अब भी बेहद लोकलाइज्‍ड है जो दिल्‍ली, हरियाणा, पंजाब और उत्‍तराखंड जैसे चंद राज्‍यों तक सीमित है. इन राज्‍यों में अगर पार्टी का वोट शेयर बहुत ज्‍यादा रहेगा तो दक्षिण और पूरब के राज्‍यों में पार्टी को कुछ नहीं मिलने वाला है. हालांकि, 'आप' ने उत्‍तर भारत के अहम राज्‍यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्‍थान और हरियाणा में बड़े पैमाने पर तैयारी शुरू कर दी है.

'आप' के एक सीनियर नेता के मुताबिक पार्टी अब महाराष्‍ट्र और मध्‍य प्रदेश जैसे राज्‍यों पर फोकस करेगी जहां पार्टी का संगठन पहले से ही तैयार है. अकेले महाराष्‍ट्र में 3 लाख से अधिक लोग पार्टी से जुड़े चुके हैं और इसने राज्‍य में 34 जिलों में दफ्तर खोले हैं.

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आम आदमी पार्टी के सीनियर नेताओं में योगेंद्र यादव हरियाणा से, मयंक गांधी और अंजलि दमानिया महाराष्‍ट्र से जबकि संजय सिंह और कुमार विश्‍वास यूपी से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं. गुजरात, उत्‍तर प्रदेश और कर्नाटक की पार्टी यूनिट ने भी संकेत दिए हैं कि वो लोकसभा चुनाव के लिए तैयार हैं.

दक्षिण के राज्‍यों में अपनी पकड़ बनाने की राह में आने वाली चुनौतियों का सामना करने और चंदा जुटाने व उम्‍मीदवारों के चुनाव जैसे मसलों से निपटने के लिए आम आदमी पार्टी ने तीन सदस्‍यीय राष्‍ट्रीय प्रचार समन्‍वय समिति बनाई है जिसमें योगेंद्र यादव, संजय सिंह और पंकज गुप्‍ता जैसे सीनियर नेता शामिल हैं. इस सम‍िति को अब तक 200 से अधिक उम्‍मीदवारों के आवेदन मिल चुके हैं, इनमें अधिकतर बिहार और हरियाणा जैसे राज्‍यों से हैं.

संजय सिंह ने 'इंडिया टुडे' से बातचीत में कहा, 'दक्षिण के राज्‍यों में हमारे अभियान की गति थोड़ी धीमी है लेकिन हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं. कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में बड़े पैमाने पर सदस्‍यता अभियान चलाया जा रहा है.' पार्टी की योजना है कि हर राज्‍य में 50 फीसदी से अधिक जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली जाए.

'आप' के सीनियर नेताओं का कहना है कि पार्टी आम चुनाव में भी वही रणनीति अपनाएगी जो दिल्‍ली विधानसभा चुनावों में अपनाई गई थी. हर जिले के लिए मसले और पार्टी के संदेश तय किए जाएंगे. पार्टी के कार्यकर्ताओं की फौज ये संदेश घर-घर जाकर लोगों तक पहुंचाएगी. पार्टी के आईटी सेल के मुताबिक डिजिटल मार्केटिंग स्‍ट्रेटजी इस तरह होगी कि हर जिले के लिए फेसबुक पर पेज बनाए जाएंगे जहां स्‍थानीय निवासी अपने समस्‍याओं पर चर्चा कर सकते हैं.

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लेकिन, पार्टी के पास अब भी कोई व्‍यापक राष्‍ट्रीय नीति नहीं है. केजरीवाल कहते हैं, 'स्‍वराज हमारा लक्ष्‍य है.' उनके मुताबिक आम चुनाव से पहले 'आप' की आर्थिक और विदेश नीति देश के सामने रखी जाएगी. पार्टी की आर्थिक नीति तैयार करने के लिए सात सदस्‍यीय क‍मेटी का गठन हुआ है जिसमें रॉयल बैंक ऑफ स्‍कॉटलैंड की पूर्व चेयरपर्सन (इंडिया) मीरा सान्‍याल, पर्यावरण अर्थशास्‍त्री असीम श्रीवास्‍तव, अर्थशास्‍त्री लवीश भंडारी और आइडिया सेल्‍युलर के पूर्व सीईओ संजीव आगा शामिल हैं.

दिल्‍ली सरकार के फैसलों और इसके काम करने के तरीकों को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर असंतोष पनप रहा है. हाल में पार्टी का हिस्‍सा बने एयर डेक्‍कन के संस्‍थापक कैप्‍टन गोपीनाथ ने रिटेल में एफडीआई की इजाजत नहीं दिए जाने के केजरीवाल सरकार के फैसले पर सवाल उठाए तो पार्टी को शर्मिंदा होना पड़ा. गर्वनेंस के बजाय सड़क की राजनीति के प्रति केजरीवाल कैबिनेट के झुकाव पर सवाल उठ रहे हैं. जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा के मुताबिक पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर केजरीवाल के धरने से पार्टी की उम्‍मीदों पर तगड़ा झटका लगेगा. गुहा कहते हैं, 'दिल्‍ली में जो कुछ हो रहा है इसका देशभर में गलत असर पड़ेगा. केजरीवाल और उनकी सरकार को फिर से विचार करने की जरूरत है और शायद उन्‍हें केवल दिल्‍ली के गवर्नेंस पर फोकस करना चाहिए.'

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