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भारतीय हॉकी: अगली मंजिल लंदन ही है

एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की शानदार जीत की वजह से ओलंपिक मुकाबलों में कोई पदक जीतने की उम्मीद बन गई है.

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एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी विजेता
एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी विजेता

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तनाव स्पष्ट दिख रहा था. चीन के ऑर्डोस में 11 सितंबर को भारत-पाकिस्तान के बीच एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में 70 मिनट के खेल के आखिरी 58 सेकंड रह गए थे.

पाकिस्तानी कप्तान मुहम्मद इमरान के पास गेंद थी. भारतीय टीम के फारवर्ड सेंटर लाइन पर शतरंज के मोहरों की तरह खड़े थे. पिछले मैच में मलेशिया ने अंतिम 7 सेकंड में गोल करके जापान की कांस्य पदक जीतने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था.

अंतिम 39 सेकंड थे कि इमरान ने गेंद अपने  लेफ्ट हॉफ की ओर सरका दी, जिसने वह वापस इमरान की ओर बढ़ा दी. पाकिस्तानी कप्तान ने घड़ी पर निगाह डाली. उस वक्त तक भारत को पता था कि उसका पलड़ा भारी है. पाकिस्तान गेंद  को अपने ही क्षेत्र में आगे-पीछे कर रहा था और भारतीय क्षेत्र में जाने से घबरा रहा था. जंग तो मनोवैज्ञानिक रूप से जीती जा चुकी थी.

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फिर 15 मिनट के अतिरिक्त समय में दोनों टीमों ने जरूरत से ज्‍यादा रक्षात्मक रुख अपनाए रखा, जिससे उन्होंने गोल करने के कई सुनहरे मौके गंवा दिए. इसके बाद शूट-आउट में कप्तान राजपाल सिंह, दानिश मुज्‍तबा, युवराज वाल्मीकि और सरवनजीत सिंह पाकिस्तानी गोलरक्षक इमरान शाह को चकमा देने में सफल रहे, जबकि गुरविंदर सिंह चांडी इसमें नाकाम रहे.

उधर, मुहम्मद रिजवान और वसीम अहमद ने  पाकिस्तान की ओर से कामयाबी हासिल की, लेकिन भारतीय गोलरक्षक एस. श्रीजेश ने दो शानदार बचाव किए. जिस टीम के पांचवें और छठे स्थान पर रहने की उम्मीद की जा रही थी, वह एकाएक चैंपियन बन गई.

चाइना एअर की उड़ान संख्या सीए 947 पर भारतीय कोच माइकल नॉब्स के चेहरे पर मुस्कान थी, जो अपने युवा खिलाड़ियों को हंसते-खेलते देखकर खुश थे. बियर की कुछ बोतलें उछाली गईं. कोई भी एथलीट जान सकता था कि यह जीतने वाली टीम है.

पेनॉल्टी कॉर्नर के रिकॉर्ड किए दृश्यों को देखने के बाद अपना आइपैड, बंद करते हुए नॉब्स बोले, ''मैं नहीं समझ्ता कि इसमें कोई शक है. मैं मानता हूं कि मुझे इन लड़कों से ऑर्डोस में जीतने की उम्मीद नहीं थी. मैं शायद कुछ महीने बाद इस तरह की कामयाबी की उम्मीद कर रहा था. मैं खुश हूं और मुझे सुखद आश्चर्य भी है. अगले कुछ महीनों में हम और बड़ी सफलताएं हासिल कर सकते हैं.''

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इस टीम ने एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी के लिए चार-छह हफ्ते की तैयारी की थी. पर 23 अगस्त को जब दो खिलाड़ी संदीप सिंह और सरदारा सिंह परिवार और टीम को लेकर अपनी समस्याएं बताते हुए अलग हो गए तो उसे बड़ा झटका लगा. टीम प्रबंधन भले ही खुलेआम ऐसा न कहे, पर यह एक बड़ा मोड़ था. अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर टीम के एक अधिकारी ने कहा, ''अगर वे दोनों टीम में होते, तो मुझे नहीं लगता कि हम जीत हासिल कर पाते.''

यह प्रसन्नचित्त टीम है, जो अपनी  सफलता का मजा ले रही है. गोलरक्षक श्रीजेश ने फाइनल में वह खेल खेला जो अक्सर देखने को नहीं मिलता. उन्होंने पाकिस्तान के फारवर्ड  खिलाड़ी पर चुटकी काटी और कहा, ''देखता हूं, तुम कैसे जीतते हो.'' टीम में पहली बार जगह पाने वाले रक्षा पंक्ति के खिलाड़ी मंजीत कुल्लू ने पूरे आत्मविश्वास के साथ ऐसा खेल दिखाया, जो दुनिया के किसी भी स्ट्राइकर को विचलित कर सकता है.

दोबारा टीम में जगह बनाने वाले वी. रघुनाथ पूरे टूर्नामेंट में ऐसे खेले जैसे हर मैच उनके लिए फाइनल हो. वाल्मीकि, सरवनजीत, चांडी और मुज्‍तबा विपक्षी टीम के घेरे में मंडराते रहे, जैसे वही उनकी जगह हो. पराजय नाम का शब्द तो इस टीम के शब्दकोश में ही नहीं है.

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लेकिन उसे अब भी बहुत-से क्षेत्रों में मेहनत करनी है. नॉब्स कहते हैं, ''इस दिशा में काम चल रहा है.'' 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रह चुके और अब नॉब्स की मदद कर रहे मुहम्मद रियाज कहते हैं कि भारत को मध्य पंक्ति में एक अच्छे खिलाड़ी की जरूरत है.

उनके मुताबिक, ''आओ, हम यह जीत भुला दें, हम जीत चुके हैं, बस. महत्वपूर्ण यह है कि हम जीतते रहें और अपना स्तर ऊंचा उठाएं. हमें मध्य पंक्ति के एक अच्छे खिलाड़ी की जरूरत है. अभी हमारे पास ऐसा कोई नहीं है. लेकिन कुल्लू जैसे खिलाड़ी या मौजूदा फारवर्डों के बारे में कौन जानता था. अगर हम कॉलेज या यूनिवर्सिटी की हॉकी में खोजें तो हमें सेंटर-मिडफील्डर मिल सकता है.''

नॉब्स कहते हैं, ''इन लड़कों के साथ 2-3 साल मेहनत की जाए तो हम विश्व की चार बेहतरीन टीमों में से हो सकते हैं और 2016 के ओलंपिक में पदक जीत सकते हैं.'' ऑस्ट्रेलिया के इस पूर्व ओलंपिक खिलाड़ी को उम्मीद है कि भारत 2012 के लंदन ओलंपिक के लिए चुन लिया जाएगा. वे कहते हैं, ''यह बहुत मुश्किल है और मैं जानता हूं कि एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद हर कोई हमसे यही उम्मीद कर रहा है. हम अपना पूरा प्रयास करेंगे.''

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लंदन ओलंपिक के लिए चुना जाना भारत के लिए ज्‍यादा मुश्किल हो गया है, क्योंकि अंतर-राष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन ने दिसंबर में आयोजित हो रही चैंपियंस ट्रॉफी को भारत से हटाकर न्यूजीलैंड ले जाकर हॉकी में सरकार के दखल पर नाखुशी जाहिर की है.

नॉब्स कहते  हैं, ''हमें मजबूत टीमों के साथ खेलने की जरूरत है ताकि हमें पता चल सके कि हमारी कमजोरी कहां है. जीतने पर तो हर कोई खुश होता है. लेकिन हारने पर ही आपको अपनी कमियों का एहसास होता है.''

नॉब्स मानते हैं कि भारत अपनी पारंपरिक शैली को अपनाकर चोटी तक पहुंच सकता है. वे कहते  हैं, ''यह विश्व में सबसे अच्छी शैली है. ऑस्ट्रेलिया इसी शैली में खेलता है. पहले भारत को इसमें महारत हासिल थी. हमें हमला करने और गोल करने की जरूरत है.''

ऑर्डोस में दक्षिण कोरिया के खिलाफ मैच में नया रवैया साफ दिखा, जहां भारत ने शुरू के सात मिनट में तीन गोल ठोक दिए. दक्षिण कोरिया के पूर्व कोच किम सांग युल भी, जिन्होंने अपनी टीम को 2000 के सिडनी ओलंपिक में रजत पदक दिलवाया था और इस समय चीन की महिला टीम के कोच हैं, नाब्स की राय से सहमत हैं. वे कहते हैं, ''अब आप भारत की तरह खेल रहे हैं, न कि किसी दूसरे की शैली की नकल कर रहे हैं.''

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भारतीय खिलाड़ी अपनी सफलता का कुछ श्रेय शरीरविज्ञानी डेविड जॉन को भी देते हैं, जो कोच नॉब्स के सपोर्ट स्टाफ का हिस्सा हैं. उन पर खिलाड़ियों को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने की जिम्मेदारी है. खिलाड़ी उन पर पूरा भरोसा रखते हैं. भारतीय कप्तान राजपाल सिंह का कहना है, ''जॉन ने फिट रहने की धारणा ही बदल दी है.''

टीम जब दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरी और टर्मिनल-3 से बाहर आई तो प्रशंसकों ने जमकर खिलाड़ियों का स्वागत किया. इसे देखकर नॉब्स भी गदगद हो उठे. वे मुस्कराते हैं और कहते हैं. ''इस पर लड़कों का हक है.''

 

सफलता की राह पर

भारतीय टीम को चीन में मिली सफलता को बनाए रखना होगा.
*जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड और इंग्लैंड जैसी टीमों की बराबरी पर आने के लिए फिटनेस का स्तर बढ़ाना होगा.
*इस साल दिसंबर में ऑकलैंड में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई मुकाबलों में जाने से पहले कम से कम 20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने चाहिए.
*23 अगस्त को पारिवारिक कारणों का हवाला देकर राष्ट्रीय कैंप छोड़ने पर दो साल का प्रतिबंध झेलने वाले सरदारा सिंह और संदीप सिंह को वापस लाना चाहिए.
*टीम के फिटनेस ट्रेनर ऑस्ट्रेलिया के डेविड जॉन को और सपोर्ट स्टाफ मुहैया कराया जाए, जो मनोचिकित्सक होना चाहिए.
*खिलाड़ियों को खेलने के अच्छा सामान उपलब्ध कराया जाए. उनके पास इस समय सिर्फ एक ही जोड़ी जूते हैं.
*भारत के कोच माइकल नॉब्स को राष्ट्रीय चयन समिति में वोटिंग सदस्य बनाया जाए.

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