अब प्याज के बाद गेंहूं की बारी हो सकती है. 8 फरवरी को खाद्य एवं कृषि संगठन ने चीन की गेंहूं की फसल को खासा नुकसान होने पर विशेष चेतावनी जारी की, जिससे आने वाले महीनों में दुनिया भर में इसके दाम बढ़ सकते हैं.
भारत में सरकार को उपभोक्ता पर होने वाले इसके असर को थामना है. उसे दुनिया में इसके बढ़ते दामों का फायदा उठाने के लिए गेंहूं के निर्यात पर प्रतिबंध उठाने की किसानों की मांग से भी निबटना होगा. समस्या यह है कि ये दोनों चीजें अक्सर एकदूसरे के प्रतिकूल हैं.
जुलाई 2010 और फरवरी 2011 के बीच विश्व में गेंहूं के दाम करीब दोगुने हो गए हैं. प्रथम झटका अगस्त में रूस में फसल की बर्बादी से लगा. दिसंबर में ऑस्ट्रेलिया में आई बाढ़ में वहां गेंहूं की कुछ फसल तबाह हुई तो दाम और चढ़े.
भारतीय उपभोक्ता पर इसका असर अभी तक न्यूनतम हुआ है. कृषि लागत एवं दाम आयोग के पूर्व अध्यक्ष एस. महेंद्र देव कहतेहैं, ''आयात के रास्ते इससे हम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि हम गेंहूं आयात नहीं कर रहे हैं. और फिर, हमारे पास पर्याप्त भंडार भी है. 2010-11 के उत्पादन वर्ष में सरकार को 8.40 करोड़ टन की भारी फसल होने की उम्मीद है.'' {mospagebreak}
पर देव दो दूसरे रास्तों की चेतावनी देते हैं, जिनसे गेंहूं के दाम उछल सकते हैं. एक तो उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है. वे कहते हैं, ''एमएसपी को तय करने वाली एक वजह विश्व के दाम हैं. वे अधिक हों तो किसान एमएसपी में वृद्धि की मांग करते हैं. इसको छोड़ भी दें तो उपभोक्ता दामों में वृद्धि हो सकती है क्योंकि दुनिया में ज्यादा कीमतें होते ही उम्मीद की जाने लगती है कि महंगाई बढ़ेगी ही.''
एमएसपी और दुनिया में दामों के बीच बढ़ते अंतर को लेकर किसान पहले ही आंदोलित हैं. किसानों के अराजनैतिक संगठन भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ कहते हैं, ''गेंहूं का एमएसपी मात्र 11.20 रु. प्रति किलो है, जो दुनिया की औसत कीमत के आधे से भी कम है.
विश्व बाजार में चर्चाएं हैं कि चीन में गेंहूं की पैदावार 2 करोड़टन कम होगी. इसके चलते संभावना है कि गेंहूं के अंतरराष्ट्रीय दाम 33 रु. प्रति किलो को भी पार कर जाएंगे, जो भारतीय किसानों को मिलने वाले दामों से कोई तीन गुना ज्यादा होंगे.''
अगर सरकार एमएसपी नहीं बढ़ाएगी तो उसे गेंहूं के निर्यात पर 2007 से लगा. प्रतिबंध हटाना होगा. चीन में संकट भारतीय किसानों के लिए अवसर पैदा कर सकता है. कृषि अर्थशास्त्री योगिंदर अलघ कहते हैं, ''शरद पवार ठीक कह रहे हैं. गेंहूं समेत प्रमुख कृषि वस्तुओं का निर्यात खोल दिया जाए.''{mospagebreak}
जाखड़ कहते हैं कि गेंहूं की घरेलू उपलब्धता को लेकर चिंता अधिक ही जताई जाती है. उनके अनुसार, ''भारत के पास 1.60 करोड़ टन का अतिरिक्त भंडार है, जो सामान्य से चार गुना ज्यादा है. बहरहाल, सरकार दाम कम बनाए रखने और शहरी उपभोक्ताओं को रियायत देने की खातिर किसानों को मजबूर करना बंद करे.'' कृषि और वाणिज्य मंत्रालय भी निर्यात प्रतिबंध को उठाने की वकालत कर रहे हैं.
अंतिम निर्णय के लिए एक महीना और इंतजार करना पड़ सकता है. अलघ कहते हैं, ''हालांकि बुआई शानदार हुई है, पर संभावना हमेशा रहती है कि मार्च के पहले अर्द्धांश में बेमौसमी बारिश या ओले फसल को बर्बाद कर दें.'' ऐसे हालात में सरकार निर्यात प्रतिबंध पर अंतिम निर्णय टाल सकती है. हां, उसे पक्का हो कि मौसम खराबी नहीं करेगा तो बात दीगर है.