आम जनता भले ही रोज बढ रही महंगाई से त्रस्त हो मगर संसद भवन की कैंटीन में परोसे जा रहे भोजन की कीमत पर इसका कोई असर नजर नहीं आया है और सांसदों तथा अन्य लोगों को भारी सब्सिडी के सहारे तर माल कौड़ियों के भाव परोसा जा रहा है.
रेल मंत्रालय द्वारा संसद भवन परिसर में संचालित चार कैंटीनों में दाल, दो सब्जी, चार चपाती, चावल, दही तथा सलाद वाली शाकाहारी थाली मात्र साढ़े 12 रुपये में उपलब्ध है. इसके अलावा मांसाहारी थाली 22 रुपये में, दही-चावल 11 रुपये, वेज बिरयानी आठ रुपये, फिश करी और चावल 13 रुपये, राजमा चावल सात रुपये, टोमेटो राइस सात रुपये, फिश फ्राई 17 रुपये, चिकन करी साढे 20 रुपये, चिकन मसाला साढ़े 24 रुपये तथा बटर चिकन 27 रुपये तो चिकन बिरयानी 34 रुपये में उपलब्ध है.
दाल की कीमतों को लेकर जहां पूरे देश में हाय तौबा मच रही है, वहीं संसद भवन में एक कटोरी दाल मात्र डेढ़ रुपये में उपलब्ध है. इसी प्रकार एक कटोरी खीर साढ़े पांच रुपये, फ्रूट क्रीम सलाद सात रुपये तथा छोटा फ्रूट केक का स्वाद मात्र साढ़े नौ रुपये में चखा जा सकता है.{mospagebreak}
सांसदों, मीडिया कर्मियों, संसद भवन के कर्मचारियों तथा परिसर में आने वाले मेहमानों सहित रोज़ाना औसतन चार से पांच हजार लोग इस सस्ते खाने का लुत्फ उठाते हैं. जाहिर है, इस सस्ते खाने का भार आम करदाताओं को वहन करना पडता है.
इसी प्रकार डोसा चार रुपये और गर्मागर्म चाय की प्याली महज़ एक रुपये में उपलब्ध है. चीजों के दाम इतने कम हैं कि ये व्यंजन कुछ ज्यादा ही स्वादिष्ट लगते हैं. अक्तूबर 2009 में जनता दल यू के डा. रंजन प्रसाद यादव की अध्यक्षता में एक 15 सदस्यीय संयुक्त संसदीय खाद्य प्रबंधन समिति का गठन किया गया था और सदस्यों से भोजन की कीमत, प्रबंधन तथा अन्य पहलुओं पर अपने अपने सुझाव देने को कहा गया था.
समिति के करीबी सूत्रों ने बताया कि समिति का गठन हुए छह महीने से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक किसी सदस्य की ओर से कोई सुझाव नहीं आया है. उन्होंने बताया कि कैंटीन में साफ सफाई, कीमतें, सर्विस आदि मुद्दे समिति के सामने हैं जिन पर फैसला किया जाना है.
लेकिन यह पूछे जाने पर कि कहीं मौजूदा समिति का हश्र भी नायडू समिति की तरह तो नहीं होगा जिसने अपना कार्यकाल समाप्त होने तक कोई रिपोर्ट ही नहीं दी, शीर्ष अधिकारी ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
सूत्रों ने बताया कि संसद भवन परिसर में स्वागत कक्ष, मुख्य भवन तथा संसद भवन पुस्तकालय में रेलवे द्वारा कई कैंटीनें संचालित की जा रही है.
उन्होंने बताया कि एक अनुमान के अनुसार संसद सत्र के दौरान संसद भवन परिसर में सांसदों, विभिन्न मंत्रालयों के कर्मचारियों, मीडिया, लोकसभा टीवी, संसद संग्रहालय तथा आगंतुकों को मिलाकर व्यस्तम घंटों में छह से सात हजार व्यक्ति मौजूद रहते हैं और इनमें से चार से पांच हजार के करीब कैंटीन की सेवाओं का लाभ उठाते हैं. {mospagebreak}
वर्ष 2002-03 में तेलुगू देशम पार्टी के के येरन नायडू की अध्यक्षता में एक 15 सदस्यीय संयुक्त संसदीय खाद्य समिति का गठन किया गया था और उससे कीमतों में बदलाव करने को कहा गया था. लेकिन इस समिति ने कीमतों में बदलाव को लेकर कोई सिफारिश नहीं की और न ही कोई रिपोर्ट सौंपी. इसीलिए कीमतें ज्यों की त्यों बनी हुई हैं. प्रो. यादव की मौजूदा समिति में लोकसभा के दस तथा राज्यसभा के पांच सदस्य शामिल हैं जिनमें हरेन पाठक, डा. पी वेणुगोपाल, कनिमोझी, डी राजा, राजीव प्रताप रूड़ी और राजीव शुक्ला प्रमुख हैं.
यह सस्ता खाना संसद भवन परिसर आने वाले लोगों की जेब पर तो हल्का रहता है लेकिन सरकारी खजाने पर बहुत भारी पड़ता है. करदाताओं की जेब से निकाल कर सब्सिडी दी जाती है. सूत्रों ने बताया कि इस वर्ष कैंटीन के लिए 5.3 करोड़ रूपये का बजट उपलब्ध कराया गया है जिसमें से 3.55 करोड़ लोकसभा तथा राज्यसभा 1.77 करोड़ रूपये से उपर का भुगतान करेगी.