अपने जीवन के पहले आठ वर्ष मैंने हरियाणा के हिसार में बिताए. मुझे याद है, वहां मैं अपने माता-पिता को हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के फैकल्टी क्लब में बैडमिंटन खेलते देखती. तब मैं इतनी छोटी थी कि मुझे बैडमिंटन क्या, किसी चीज का होश नहीं था. बाद में मैंने पाया कि वहां लोग बच्चियों के प्रति खास तौर से उदासीन भाव रखते हैं.
मुझे जब यह बताया गया कि मेरी दादी मेरे जन्म लेने के बाद एक महीने तक मुझे देखने नहीं आई थीं तो मुझे आश्चर्य हुआ था. वे पोते के जन्म की बड़ी आस लगाए बैठी थीं. जाट परिवार में मेरा जन्म मेरी एकमात्र बहन के सात साल बाद हुआ था. सो, मेरे जन्म से उन्हें भारी निराशा हुई थी. बहरहाल, इसमें मेरे लिए एक बहुत बड़ा संदेश था, जिसे मैं अब बहुत अच्छी तरह समझती हूं. यह संदेश था बेटियों के प्रति भेदभाव का.
सौभाग्य से हम हैदराबाद चले आए, जहां कई खेलों का विकास दूसरे कई राज्यों के मुकाबले काफी हुआ है. इसने मुझे अपना कॅरियर सफलतापूर्वक बनाने में मदद की. मुझे 14 साल की उम्र में ही भारत पेट्रोलियम और अब डेक्कन क्रॉनिकल जैसे ह्ढायोजक मिले. हम उस अपार्टमेंट में रहते हैं जिसे मुझे मिले पुरस्कारों की रकम से खरीदा गया है. मेरे माता-पिता ने इसे मेरे नाम से खरीदा है.
कई हरियाणवी खिलाड़ी, खासकर महिला खिलाड़ी उतने भाग्यशाली नहीं हैं. उन्हें शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद प्रायोजक नहीं मिलते. पिछले दो वर्षों में हरियाणा सरकार ने खिलाड़ियों को कई प्रोत्साहन दिए हैं.
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वालों के लिए अब तक की अधिकतम पुरस्कार राशि और कार भी. किसी दूसरी राज्य सरकार ने अब तक ऐसी पेशकश नहीं की है. हरियाणा सरकार की यह पेशकश स्वागतयोग्य है. वे सब मेरे बहुत करीब हैं क्योंकि उनमें से अधिकतर जाट हैं. कुछ ने तो मुझसे यह तक कहा कि बच्चियों के प्रति पारंपरिक सोच और लड़कियों के प्रति खाप पंचायतों के व्यवहार के मद्देनजर मात्र 20 वर्ष की उम्र मैं उनके लिए एक प्रेरणास्त्रोत हूं.{mospagebreak}
अपने अभिभावकों और नियोक्ता-हरियाणा पुलिस- से मिले प्रोत्साहन के कारण इन महिला खिलाड़ियों ने इतना साहसिक प्रदर्शन किया है. उन्हें खास तरह का काम दिया जाता है और पहले के मुकाबले अब उनकी बेहतर देखभाल की जाती है.
ग्रामीण हरियाणा में पुरुषों का ही वर्चस्व है और इसका असर खेलों पर भी दिखता है. लेकिन इस बात से जरूर फर्क पड़ेगा कि राज्य में आए 29 पदकों में से अधिकतर महिला खिलाड़ियों ने जीते हैं. अभिभावकों को ज्यादा समझ्दारी और खुले दिमाग से काम करना चाहिए.
मेरे ताऊ और रिश्तेदार लड़कियों को खेलों के लिए तो क्या, किसी चीज के लिए घर से बाहर निकलने देने के पक्ष में नहीं हैं. उनके साथ मेरी बातचीत शायद ही होती है. मेरे माता-पिता ज्यादा खुले विचारों के हैं. उन्होंने मुझे काफी प्रोत्साहित किया है. मेरी बहन ने अपनी पसंद से शादी की, जिसे उन्होंने मान लिया. अगर अभिभावकों से ज्यादा समर्थन और प्रोत्साहन मिले तो ज्यादा लड़कियां बाहर निकलेंगी और उनका जीवन बेहतर बनेगा. लड़कियों को अपने अधिकार लड़कर लेने होंगे. खेलों में ज्यादा अवसर निकालकर हम अच्छी शुरुआत कर सकते हैं. ज्यादा ह्ढायोजकों को भी आगे आने की जरूरत है. यह खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन से ही संभव हो पाएगा.
मेरी ख्वाहिश तो यह है कि हरियाणा में रैकेट से खेले जाने वाले खेलों को ज्यादा लोकह्ढिय बनाया जाए क्योंकि इनमें कॅरियर लंबा होता है. इससे वहां महिलाओं की स्थिति भी बेहतर होगी. राज्य सरकार बैडमिंटन और टेनिस जैसे इन खेलों के लिए वहां अकादमी की स्थापना करके शुरुआत कर सकती है.
मैं खेलों पर इसलिए जोर दे रही हूं क्योंकि इनमें मेहनत करने वालों के लिए शुरू में ही अवसरों के दरवाजे खुल जाते हैं. इसके लिए रोजाना नौ-दस घंटे का कड़ा प्रशिक्षण चाहिए. यह काफी शारीरिक श्रम की मांग करता है. खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर भी काफी मजबूत बनना होगा, खासकर लड़कियों को क्योंकि आम तौर पर उनमें यह कमजोरी होती है. इसके लिए औपचारिक शिक्षा का त्याग करना पड़ेगा. खेल और शिक्षा, दोनों साथ-साथ चलाना मुश्किल होता है. अगर कोई दोनों को साध ले तो बात ही क्या!
हम सेरेना विलियम्स जैसी शक्तिशाली खिलाड़ी से अपनी तुलना किसी तरह नहीं कर सकते. हम लड़कियों को कई खेलों में विश्व का नंबर वन बनना होगा. यह कोई असंभव बात नहीं है. यह केवल अपने दिमाग को तैयार करने की बात है. मेरी कोम ने अपनी प्रतिबद्धता से हमें रास्ता दिखाया है. अगर सात-आठ की उम्र में ही प्रतिभाओं को चुन लिया जाए तो हम लड़कियों को 18-20 की उम्र तक विश्व चैंपियन बना सकते हैं. हम बेशक कामयाब हो सकते हैं.
सायना नेहवाल विश्व की नंबर दो महिला बैडमिंटन खिलाड़ी हैं