माकपा महासचिव प्रकाश करात पर हल्ला बोलते हुए पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा है कि वर्तमान नेतृत्व की ‘पथभ्रष्ट’ कार्रवाइयों और ‘विनाशकारी’ नीतियों की वजह से पार्टी की 2009 में पराजय हुई.
10 बार सांसद रहे 81 साल के चटर्जी को जुलाई 2008 में पार्टी ने लोकसभा अध्यक्ष पद छोउ़ने का निर्देश दिया था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था. चटर्जी ने कहा कि बिना कारण बताओ नोटिस दिए निकाला जाना करात की ‘अज्ञानता’ और ‘असहिष्णुता’ को दिखाता है.
माकपा नेतृत्व ने भारत अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर संप्रग सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद चटर्जी को लोकसभा अध्यक्ष पद छोड़ने को कहा था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था.
दिग्गज मार्क्सवादी नेता ने माकपा के हाल पर अपनी नाराजगी की चर्चा अपनी किताब ‘किपिंग द फेथ: मेमोआएर्स ऑफ ए पार्लियामेंटेरियन’ में की है जो इस महीने रिलीज होनी है.
किताब के मुताबिक, ‘‘वर्तमान नेतृत्व की विनाशकारी नीतियों और पथभ्रष्ट कार्रवाइयों ने देश में वाम आंदोलन को लगभग अप्रासंगिक बना दिया है.’’ चटर्जी कहते हैं कि उनके निष्कासन के संदर्भ में करात का जिक्र किताब में हल्का सा ही है.{mospagebreak}
सोमनाथ चटर्जी ने कहा, ‘‘यह मेरी आत्मकथा नहीं है. इसमें मेरे संसद के दिनों की यादें हैं जो 1971 में शुरू हुई और 14वीं लोकसभा तक चली.’’ उन्होंने कहा, ‘‘किताब में मैंने इस दौरान विभिन्न सरकारों और पार्टियों के साथ अपने अनुभवों को लिखा है.’’ साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘कृपया किताब के रिलीज होने का इंतजार कीजिए.’’ चटर्जी ने उस वक्त की बात की है जब प्रधानमंत्री और संप्रग के अन्य वरिष्ठ नेता करात और वाम मोर्चे के अन्य नेताओं से ‘हर प्रस्तावित कार्रवाई’ के लिए मिलते थे.
किताब के मुख्य अंशों के मुताबिक, उन्होंने कहा कि वाम नेता ‘असली प्राधिकार’ रख रहे थे और करात तथा वर्धन जैसे नेताओं ने हैसियत से ज्यादा कद और प्रभाव पाया था.
चटर्जी ने कहा कि प्रधानमंत्री और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ बहुत अधिक नजदीकी होने से वाम नेताओं को लगता था कि उनका फैसला अंतिम शब्द होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘वे सदन में अपनी संख्या भूल गए ओर चाहने लगे कि उनके फैसलों को अंतिम माना जाए.’ 2004 में माकपा ने 44 लोकसभा सीटें जीती थीं लेकिन 2009 के चुनाव में यह 16 तक सिमट कर रह गई.
चटर्जी ने कहा कि माकपा के वयोवृद्ध नेता ज्योति बसु ने 12 जुलाई 2008 की एक बैठक में उन्हें लोकसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं देने की सलाह दी थी.{mospagebreak}
चटर्जी ने लिखा है, ‘‘जैसे कि उन्होंने या फिर मैंने भी महसूस किया कि मेरा इस्तीफा इस बात को दर्शाएगा कि मैंने लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर अपने पद से समझौता किया और मेरी कार्रवाइयां मेरे पार्टी से नियंत्रित होती हैं जोकि पूरी तरह अनैतिक होता.’’
सोमनाथ ने याद किया कि जब बसु की राय के बारे में बताया गया तो वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी 15..16 जुलाई 2008 को उनके आवास पर मिलने आए. दो दिन बाद उन्हें निष्कासन का नोटिस मिला जिसमें कहा गया था कि माकपा पोलितब्यूरो ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया था. सोमानाथ ने हालांकि इस बात का जिक्र किया कि 17 सदस्यीय पोलितब्यूरो में केवल पांच सदस्यों ने उस बैठक में हिस्सा लिया था.
उन्होंने कहा, ‘‘जब मैंने पार्टी के आदेश को मानने से इंकार कर दिया तो करात ने अपने गुस्से का इजहार करने के लिए मुझे निकाल दिया.’ अपने निष्कासन को पूरी तरह अलोकतांत्रिक बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘माता पिता के गुजरने के बाद वह मेरी जिंदगी का सबसे दुखद दिन था.’