मुंबई हमलों की एक साल तक चली सुनवाई के दौरान अजमल आमिर कसाब का मिजाज लगातार बदलता रहा कभी वह अपना अपराध स्वीकार करते दिखा तो कभी इससे बिल्कूल पलट गया और कभी तो उसकी बात को अदालत में मौजूद कोई भी व्यक्ति समझ नहीं सका.
इस दौरान वह कभी वह चिल्लाया तो कभी वह हंसा जिसकी वजह से उसे न्यायाधीश की डांट भी खानी पड़ी. प्रांरभिक स्तर पर मई 2009 में सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के दौरान कसाब करीब प्रतिदिन न्यायाधीश को प्रणाम करता था.
अदालत में जब कोई गवाह उसकी पहचान करता तो वह मुस्कराता था. सुनवाई के दौरान कसाब उस समय बड़ा बेचैन हो जाता था जब कोई गवाह यह बताता कि पाकिस्तानी आतंकवादी ने ही विभिन्न जगहों पर आतंकवादी हमले किये थे.
हालांकि कसाब प्रतिक्रिया में एक भी शब्द नहीं बोलता था और सुनवाई प्रक्रिया को बड़े ध्यान से सुनता था. जैसे-जैसे सुनवाई प्रक्रिया आगे बढ़ी कसाब की निराशा बढ़ती गई और वह अदालत तथा जेल में अपनी झल्लाहट व्यक्त करने लगा.
कसाब अपने सेल में खाना फेंक देता था तथा बिरयानी और मटन की मांग करता था. उसने कहानी की किताब और परफ्यूम दिये जाने का अनुरोध कर लोगों को आश्चर्य में डाल देता था.
वह ऐसी मांगे मीडिया या न्यायाधीश एम एल टाहिलियानी की उपस्थिति में करता था ताकि उनका ध्यान आकृष्ट किया जा सके. इसीलिये टाहिलियानी पत्रकारों को उसकी मांगों के बजाय सुनवाई पर ध्यान देने के लिये कहते थे.
एक बार उसने अपने द्वारा किये गये हमले के रिकार्डिंग की सीडी देखने मांग की थी लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया. उसने मक्का के लिये एक पत्र लिखने की अनुमति मांगी थी लेकिन उसने यह नहीं बताया कि पत्र किसे भेजना है.
कसाब ने अपने सेल से बाहर घुमने की अनुमति मांगी थी लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक कसाब के कमरे में लगे सीसीटीवी कैमरे से पता चला कि वह अखबार भी खा जाता था.
इस बीच कसाब के वकील के पी पवार ने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कसाब ने अपनी निराशा प्रदर्शित की हो. पवार ने बताया कि उन्हें कसाब से बात करने के लिये प्रतिदिन 10 से 15 मिनट मिलते थे.
उन्होंने कहा, ‘इस दौरान भी सुरक्षाकर्मी उपस्थित रहते थे इसलिये हम केवल मामले पर भी बात करते थे.’