कितना कुछ लिखना है
बहुतों के लिए बहुत कुछ लिखना है
कुछ लिखना है मुझे पैसे के लिए
कुछ लिखना है खुद के लिए
लेकिन कुछ नहीं लिख पाता
जिंदगी से लड़ते झगड़ते
बिजली से नियंत्रित बिछावन पर
लेटे बाबूजी को देखकर
शब्द भी अब चुप्पी साधने लगा है
गरम हवा वाले बिछावन पर वे लेटे हैं
घाव शरीर में फैल चुका है
वे लड़ रहे हैं
खुद की लड़ाई, खुद से
ठीक वैसे ही जैसे मैं
अक्सर लिखता हूं
केवल खुद के लिए..
मेरी अपनी लड़ाई शब्द से है
बाबूजी को बिछावन पर लेटे देखते हुए ही जाना
कि लिखना और जीना
दोनों ही बहुत अलग चीज है
जो लिख देते हैं
वो सच में बड़ी खूबसूरत दुनिया देखते हैं
और जो लिख नहीं पाते
वो देखते हैं..भोगते हैं
जीवन के उतार-चढाव को...
जीवन का व्याकरण
सचमुच में बड़ा जटिल है
अब जान गया कि
जीवन एक लंबी कविता है
जिसमें कहानी का अंश है
उपन्यास की आड़ी-तिरछी रेखा है..
मेरे लिए तो फिलहाल
जीवन की कहानी
और कुछ नहीं
बस अमीर खुसरो का एक पद है
जिसमें वे कहते हैं
न नींद नैना
न अंग चैना ..
ये कविता बिहार के पूर्णिया में रहने वाले गिरीन्द्र नाथ झा ने लिखी है.