जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने सेना की कमान संभाल ली है. बैटन बदलते ही जनरल दलबीर सिंह सुहाग दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना के प्रमुख बन गए. जनरल सुगाह के पिता रामफल सिंह भी सैनिक थे लेकिन सुहाग आज भारतीय सेना के शिखर पर हैं.
सफर की शुरूआत राजधानी दिल्ली से महज 65 किलोमीटर दूर हरियाणा के एक छोटे से गांव विसाहन से होती है. झज्जर जिले का ये गांव बेहद ही छोटा है लेकिन इसकी फिजा में जोश, जूनून और जज्बा है. गांव का शायद ही कोई घर हो जहां का बेटा देश पर कुर्बान होने का हौसला नहीं रखता है. यहां औसतन हर घर से दो बेटे सेना में हैं.
सेहत है बिल्कुल दुरुस्त
जब 'आज तक' की टीम जनरल सुहाग के गांव में पहुंची तो चौपाल पर सिर्फ और सिर्फ उन्हीं की चर्चा थी. कोई उनके बचपन की बात कर रहा था, तो कोई उनकी फिटनेस की. छरहरी काया वाले जनरल सुहाग 59 की उम्र में भी काफी फिट हैं. बॉडी मास इंडेक्स के हिसाब से 6 फुट का उनका शरीद बिल्कुल फिट है. उनका वजह 75 किलो है. सुहाग हर रोज कम से कम 10 किलोमीटर दौड़ते हैं और 200 से ज्यादा पुश-अप करते हैं. उन्हें घुड़सवारी और गोल्फ का शौक है.
भैंस का दूध है पसंद
जनरल सुहाग को भी देश सेवा का जज्बा विरासत में मिला. दादा-परदादा सभी सेना अपनी जिंदगी सेना के हवाले कर चुके थे. पिता रामफल सिंह 18 कैवलरी रेजिमेंट से सूबेदार मेजर बनकर रिटायर हुए. बस पिता की यही ख्वाहिश रही कि बेटा सेना में अफसर बने. आज उन्हें फक्र है कि उनका बेटा सेना में सबसे बड़ा अधिकारी है. जनरल सुहाग के पिता रामफल सिंह कहते हैं, मुझे अपने बेटे पर बहुत गर्व है. यह गर्व की बात है. 84 साल के पिता के चेहरे पर रौनक आ जाती है, जब ये बताते है कि बचपन में ही एक बाबा ने बता दिया था कि उनका बड़ा बेटा बहुत बड़ा आदमी बनेगा. माता इश्री देवी बेटे पर निहाल हुई जा रही हैं. वो गर्व से बताती हैं कि जनरल सुहाग को आज भी भैंस का दूध और चूरमा पसंद है.
NDA से हुई पढ़ाई
सुहाग की शुरुआती पढ़ाई राजकीय माध्यमिक विद्यालय विसाहन में हुई. चौथी क्लास तक की पढाई में ही उन्होंने वो छाप छोड़ दी थी कि परिवार से अब कोई बड़ा अफसर बनेगा. इसकी तस्दीक उनके क्लास मेट ने भी की. चौथी की पढ़ाई के बाद जनरल सुहाग ने विसाहन गांव छोड़ दिया. आगे की पढ़ाई के लिए वो सैनिक स्कूल चितौड़गढ़ चले गए. सैनिक स्कूल में जनरल सुहाग एक होनहार विद्यार्थी थे. 1970 में उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी की परीक्षा पास की. उसके बाद दलबीर सिंह सुहाग ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
सेना प्रमुख के पद पर नियुक्ति को लेकर उपजे विवाद के अलावा जनरल सुहाग के सामने बड़े सवाल हैं. सरकार भी नई है, सेनाध्यक्ष भी नए हैं. ऐसे में क्या सेना के अच्छे दिन आएंगे? लंबे समय से भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की मांग हो रही है, तो क्या 30 महीने के कार्यकाल में जनरल सुहाग कुछ ऐतिहासिक करेंगे?