हर महीने पांच हजार से अधिक लोगों को खाना खिलाने पर GST में छूट दिए जाने का छत्तीसगढ़ में जमकर विरोध हो रहा है. राज्य की कई संस्थाओं ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि अगर वे महीने में पांच हजार से कम लोगों को मुफ्त में भोजन करवाएं तो क्या यह मानव सेवा के दायरे में नहीं आएगा. इन संस्थाओं ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसने मानव सेवा का भी मीटर बना लिया है.
दरअसल हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रति माह 5 हजार से अधिक लोगों को मुफ्त खाना खिलाने वाली धार्मिक संस्थाओं को GST में राहत दी है. ऐसी संस्थाओं को लंगर और प्रसाद में लगने वाला GST रिफंड किया जाएगा. पिछले साल जुलाई में जब धार्मिक संस्थाओं को भी GST के दायरे में लाया गया था, तब अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर से जुड़े पदाधिकारियों ने मांग की थी कि वे रोजाना हजारों श्रद्धालुओं को मुफ्त भोजन कराते हैं. लिहाजा इस धार्मिक कार्य के लये उन्हें GST से बाहर रखा जाए.
यही मांग और भी कई धार्मिक संस्थाओं ने उठाई थी. फिलहाल यह योजना दो साल के लिए लागू की गयी है. केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने सेवा भोज योजना के तहत GST लागू होने के दस माह बाद धार्मिक स्थलों में लंगर पर लगाई जाने वाली GST रिफंड करने का फैसला किया है.
मानव सेवा का ये कैसा पैरामीटर
श्री राम मंदिर ट्रस्ट रायपुर के सचिव अजय मिश्रा की दलील है कि, आखिर किस आधार पर मोदी सरकार ने मानव सेवा का पैरामीटर बना लिया. उनके मुताबिक यदि वे हर माह 5 हजार से कम लोगों को भोजन करवाएं तो क्या ये मानव सेवा नहीं है. उन्होंने मांग की है कि सभी धार्मिक संस्थाओं पर मुफ्त भोजन और प्रसाद को GST के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए. बंगाली समाज के पंडित सुनीत मुखर्जी के मुताबिक देश में ज्यादातर धार्मिक संस्थाओं में पांच हजार से कम लोगों को हर माह भोजन कराया जाता है.
उन्होंने कहा कि कुछ विशेष स्थानों में ही 5 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं को भोजन कराया जाता है. ऐसे में भोजन कराने को लेकर सरकार भेदभाव की नीति पर काम कर रही है. सुनीत मुखर्जी के मुताबिक धार्मिक क्रियाकलापों और जरुरतमंदों को भोजन कराने वाली किसी भी धार्मिक संस्था को GST के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए.
छत्तीसगढ़ की दो दर्जन से ज्यादा सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं ने सरकार के फैसले का विरोध किया है. इन संस्थाओं के प्रमुखों ने सवाल उठाया है कि एक व्यक्ति को भी भोजन करवाना मानव सेवा है. ऐसे में टैक्स स्लैब में भेदभाव कर केंद्र सरकार धार्मिक संस्थाओं के साथ अन्याय कर रही है. धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों ने दलील दी है कि, बड़े मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चैरिटेबल ट्रस्ट ही सेवा भोज योजना का लाभ उठाएंगे. जबकि देश भर में कई ऐसी भी संस्थाएं हैं जो यह कार्य छोटे स्तर पर कर रहे है.
वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल 2018 से GST वापस लेने के लिए क्लेम किया जाना शुरू हो गया है. जानकारों के मुताबिक सेवा भोज योजना के तहत वही टैक्स वापस होगा जो एक अप्रैल के बाद भुगतान किया गया होगा. इसके पहले अदा किए गए GST की वापसी को लेकर सरकार ने अभी कोई सूचना जारी नहीं की है. GST के जानकार ऋतुराज वैष्णव के मुताबिक इस योजना के तहत जब भी लंगर भोज के लिए रसद खरीदी जाएगी तो संबंधित धार्मिक संस्था अथवा ट्रस्ट को रसद का हिसाब और GST भरना होगा. इस पर दिए गए CGST की रकम केंद्र सरकार इस योजना के तहत वापस करेगी. उन्होंने बताया कि ऐसी संस्थाएं दर्पण पोर्टल में पंजीयन के बाद ही छूट का लाभ उठा सकेंगी.