लेह में बादल फटने की घटना में कई इमारतें जरूर धराशायी हो गयीं लेकिन किसी भी प्राचीन बौद्ध मठ पर इसका असर नहीं पडा.
जम्मू-कश्मीर के लेह में पिछले दिनों बादल फटने से जान माल का बडे पैमाने पर नुकसान हुआ. इस घटना में केवल पिछले 15 से 30 साल के दौरान बनी इमारतें धराशायी या क्षतिग्रस्त हुइ’ जबकि प्राचीन बौद्ध मठों पर इसका कोई असर नहीं पडा.
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘आपने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया तो आपको ऐसा नतीजा देखने को मिला जबकि बौद्ध भिक्षुओं को प्रकृति के बारे में इतनी अच्छी जानकारी है कि उन्होंने मठों का निर्माण इस तरह किया कि इस तरह की किसी भी प्राकृतिक आपदा में भी वे सुरक्षित रहें.’
अधिकारी ने तंजौर स्थित मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि उसका वास्तुशिल्प इस तरह से तैयार किया गया है कि बीच से खोखली इमारत भी भूकंप के बडे से बडे झटके झेल लेती है.
उन्होंने दावा किया कि किसी भी बौद्ध मठ पर कोई असर नहीं पडा है. केवल उन्हीं इमारतों पर बादल फटने का असर हुआ है जो 15, 20 या 30 साल पुरानी हैं.
अधिकारी ने कहा कि बौद्ध भिक्षुओं को प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में होने वाले नुकसान का अंदाजा था, सो उन्होंने उसी के अनुसार मठों का निर्माण किया.
उन्होंने कहा कि अब पुननिर्माण की प्रक्रिया में इमारतों का निर्माण प्रकृति से खिलवाड किये बिना इस तरह होना चाहिए कि बादल फटने की कोई अन्य घटना न होने पाये.
इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल लेह के हालात का जायजा लेने जा रहे हैं. उनके साथ अधिकारियों का एक उच्चस्तरीय दल भी जा रहा है.
गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि लेह में बादल फटने की घटना से संचार, परिवहन तथा जल एवं बिजली आपूर्ति काफी प्रभावित हुई है.
उन्होंने बताया कि इस आपदा में छह विदेशियों सहित 179 लोगों की जान गई और लगभग 400 लोग घायल हुए.