महात्मा गांधी की हत्या के बाद पारिवारिक मित्र द्वारा संरक्षित कर रखी गयी उनकी अस्थियों को 62 वर्ष बाद आज अंतत:दक्षिण अफ्रीका के तट पर हिन्द महासागर में विसर्जित कर दिया गया.
विसर्जन के कार्यक्रम की अगुवाई करने वाली महत्मा गांधी की पौत्री इला गांधी ने कहा, ‘‘ इस कार्यक्रम में 200 से अधिक लोगों ने भाग लिया.’’ उन्होंने कहा कि हिन्द महासागर को पवित्र कार्यक्रम के लिए चुना गया, क्योंकि यह दोनों देशों को जोड़ता है. गांधीजी ने दोनों देशों पर व्यापक प्रभाव डाला था. इला ने कहा कि 30 जनवरी का दिन इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के लिए इसलिए चुना गया कि यह महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है.
महात्मा गांधी की 1948 में हत्या के बाद उनकी अस्थियों को परिजनों, मित्रों एवं अनुयायियों को वितरित किया गया था. मौजूदा अस्थियों को महात्मा गांधी के एक पारिवारिक मित्र को सौंपा गया था, जो उनके अंतिम संस्कार के बाद इसे दक्षिण अफ्रीका ले आया था और तब से वह उसके पास सुरक्षित रखी थीं. स्थानीय कारोबारी और गांधीवादी छगन छोटू ठाकुर भोला, 85 ने स्मरण करते हुए बताया कि वे गांधी की अस्थिकलश को किस तरह मुंबई से दक्षिण अफ्रीका लाये थे.
डरबन के प्रमुख भारतीय व्यापारी भोला ने याद करते हुए बताया कि वे 1948 में मणि से शादी करने और गांधी के अंतिम संस्कार में भाग लेने भारत गये थे. भोला ने कहा, ‘‘ मेरे नजदीकी मित्र सोराबजी रुस्तमजी मेरे साथ भारत गये. गांधी के अंतिम संस्कारण के कुछ ही समय बात भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनका (गांधी का) अस्थिकलश हमें सौंपा था.’’ प्राय: अस्थियों को नदियों या सागर में विसर्जित कर दिया जाता है लेकिन गांधी की अस्थियों को कई कलशों में रखा गया और भारत एवं दुनिया में बसे उनके विभिन्न अनुयायियों को सौंप दिया गया ताकि वे उनके स्मृति अवशेष रख सकें.
भोला ने बताया कि वे लोग आठ जून 1948 को नौका से रवाना हुए और उन्होंने मोम्बासा तक की यात्रा की जहां राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम हुआ था. उन्होंने कहा, ‘‘हमने उसके बाद नैरोबी सहित विभिन्न अफ्रीकी देशों का दौरा किया जहां कुछ स्थानों में नदियों और झीलों में गांधी की अस्थियां विसर्जित की गयी.’’ भोला ने बताया कि 28 दिन बाद वे डरबन लौट आये और कलश को इनाडा में फोनिस्क बस्ती के सर्वोदय में रख दिया गया.