भारत-चीन रिश्तों को बेहतर बनाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन जैसे राजनेता साबित हो सकते हैं. एक प्रमुख चीनी अंग्रेजी अखबार ने शुक्रवार को यह बात लिखी.
अखबार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीतिक समझ और व्यवहार कुशलता की तारीफ की है. अखबार ने हालांकि इस बात के लिए सतर्क भी किया है कि कहीं चीन पर दबाव बनाने के लिए भारत का लाभ अमेरिका और जापान न उठाएं.
इसी अखबार ने की थी मोदी की आलोचना
अखबार ग्लोबल टाइम्स ने शुक्रवार को अपने संपादकीय आलेख में कहा है, 'मोदी को रणनीतिक समझ वाला नेता माना जाता है.' आलेख में लिखा गया है, 'अपनी व्यवहार कुशलता तथा चीन-भारत के बीच प्रमुख मुद्दों को सुलझाने की उनकी क्षमता के कारण वह निक्सन की तरह के नेता बन सकते हैं.'
मोदी की चीन यात्रा से कुछ दिन पहले मोदी की कटु आलोचना करने वाले एक आलेख में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था, 'सत्ता में आते ही मोदी ने देश में अवसंरचना विकास और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए जापान, अमेरिका और यूरोप से रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. लेकिन पिछले वर्ष की इस कूटनीतिक गतिविधियों से यही पता चलता है कि वे व्यावहारिकता अपना रहे हैं और उनमें दूरर्शिता नहीं है.'
पिछले लेख में जहां व्यावहारिक शब्द का उपयोग नकारात्मक तरीके से किया गया था, वहीं शुक्रवार को प्रकाशित 'मोदी की निक्सन जैसी व्यावहारिकता से रिश्ते में नई ताजगी' शीर्षक से लेख छापा गया है. इसमें 'व्यावहारिकता' का सकारात्मक इस्तेमाल किया गया. यह लेख लियु जोग्यी ने लिखा है.
अखबार का डैमेज कंट्रोल तो नहीं?
शुक्रवार के आलेख में कहा गया है, 'पिछले एक साल से मोदी के शासन काल में भारत विश्व मंच पर एक सितारा बन कर उभरा है.' आलेख में हालांकि यह आशंका जताई गई है कि दूसरे देश चीन पर दबाव बनाने में भारत का उपयोग कर सकते हैं.
लियु ने आलेख में कहा है, 'पिछले साल चुनाव में मोदी की जीत से भारत के आर्थिक विकास को लेकर काफी भरोसा बढ़ा है, लेकिन इससे अमेरिका, जापान और अन्य देशों में यह उम्मीद भी बढ़ी है कि वह चीन पर दबाव बनाने में नई दिल्ली का इस्तेमाल कर सकते हैं.'
आलेख में चीन के पूर्व नेता देंग जियाओपिंग के हवाले से कहा गया है कि 21वीं सदी तभी बन सकती है, जब भारत और चीन मिलकर काम करें. आलेख में कहा गया है, 'साझा विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए एक स्थिर और शांत माहौल जरूरी है.' आलेख में कहा गया है, 'सीमा विवाद दोनों देशों के आपसी रिश्तों में बाधा बन रहा है.'
इसमें कहा गया है, 'अगर उनका जल्द समाधान न हो सके, तो दोनों पक्षों को पहले से स्वीकृत हो चुकी आचार संहिता का पालन करना चाहिए.' आलेख में कहा गया है कि चीन के कार्यक्रमों को लेकर भारत का रुख स्पष्ट नहीं है.
'चीन को एकछत्र नेता नहीं मानता भारत'
आलेख के मुताबिक, 'चीन के वन बेल्ट वन रोड कार्यक्रम पर भारत का स्पष्ट रुख नहीं है.' इसमें आगे कहा गया है, 'भारत हालांकि एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक से संस्थापक सदस्य के तौर पर जुड़ा हुआ है, लेकिन कुछ भारतीय जानकार मानते हैं कि बैंक चीन की विदेश और रणनीतिक नीतियों को लागू करने का एक उपकरण साबित होगा.'
आलेख के मुताबिक, 'भारत एशिया का आर्थिक एकीकरण चाहता है, लेकिन वह खुलकर चीन को क्षेत्र का एकछत्र नेता नहीं मानता और इसमें खुद भी साझेदारी करना चाहता है.' आलेख में आगे कहा गया है, 'लंबे समय से दोनों पक्षों को आपस में रणनीतिक भरोसा स्थापित करने की जरूरत है और शक्तिशाली नेताओं की राजनीतिक इच्छाशक्ति से यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी.'
(इनपुट: IANS)