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Buxar: हुमायूं की जान बचाने वाला मामूली भिस्ती कैसे बना था दिल्ली का बादशाह, पूरी कहानी

6 जून 1539 के युद्ध में हुमायूं की बुरी तरह से हार हुई, वो जान बचाने के लिये गंगा में कूद पड़ा. हुमायूं तैरते हुए थक गया, उसे लगा कि वो अब डूब जाएगा, तभी उसकी नजर एक नाविक पर पड़ी. हुमायूं ने नाविक से मदद की गुहार लगाई. नाविक निजाम नामक एक भिस्ती था. नाविक ने हुमायूं की जान बचा ली, जिसके बाद हुमायूं ने जान बचाने वाले नाविक निजाम को एक दिन का राजा बनाने का वादा किया और चला गया.

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जानिये किस तरह हुमायूं की जान बचाने वाला मामूली भिस्ती बना दिल्ली का बादशाह.
जानिये किस तरह हुमायूं की जान बचाने वाला मामूली भिस्ती बना दिल्ली का बादशाह.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • एक दिन के राजा बने भिस्ती ने चलाए चमड़े की सिक्के
  • शेरशाह से मिली हार के बाद भिस्ती ने बचाई थी हुमायूं की जान
  • हुमायूं ने नाविक से किया था एक दिन का राजा बनाने का वादा

भारतीय इतिहास अपने आप में कई रहस्य और कहानियों को समेटे हुए हैं, जिसमें से एक है बक्सर के चौसा में मुगल बादशाह हुमायूं और अफगानी शासक शेरशाह के बीच हुआ युद्ध. 1539 में हुए इस युद्ध में हुमायूं की हार हुई, लेकिन इस युद्ध के बाद एक मामूली भिस्ती को दिल्ली की गद्दी पर एक दिन के लिए बैठने का मौका जरूर मिला.

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मुगल शासक बाबर की मौत के बाद हुमायूं के कंधों पर मुगल सम्राज्य को स्थापित करने की एक बड़ी जिम्मेवारी थी. क्योंकि बहलूल खान लोधी की हार के बाद भी अफगानों का दबदबा हिंदुस्तान में बना हुआ था. ऐसे में हुमायूं इस दबदबे को खत्म करने के लिए अफगानों की ओर बढ़ चला. 1531 में देवरा का युद्ध जीतने के बाद हुमायूं की सेना अफगानी शासक शेरशाह की तरफ बढ़ी. शेरशाह एक कुशल योद्धा था. चूंकि वो जानता था कि हुमायूं के पास विशाल सेना है, ऐसे में उसे ऐसी जगह रोकना है, जहां भौगोलिक फायदा मिले.

ऐसे में उसने शेरशाह को हराने के लिए बिहार के बक्सर जिले के चौसा में गंगा किनारे अपना डेरा डाल दिया. शेरशाह ये अच्छी तरह जानता था कि कब गंगा खतरनाक हो जाती है. शेरशाह सूरी ने वक्त का इंतजार किया. बरसात शुरू हुई और गंगा का पानी बढ़ने लगा, तो शेरशाह 26 जून 1539 को हुमायूं की सेना पर आक्रमण कर दिया. हुमायूं की इस युद्ध में बुरी तरह हार हुई और वह जान बचाने के लिये गंगा में कूद गया. 

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भिस्ती से इस तरह मिला हुमायूं

हुमायूं तैरते हुए थक गया, उसे लगा कि वह अब डूब जाएगा, तभी उसकी नजर एक नाविक पर पड़ी. हुमायूं ने नाविक से मदद की गुहार लगाई. नाविक निजाम नामक एक भिस्ती था. नाविक ने हुमायूं की जान बचा ली, जिसके बाद हुमायूं ने जान बचाने वाले नाविक निजाम को एक दिन का राजा बनाने का वादा किया और चला गया. जानकार अजय मिश्रा बताते हैं कि सरहिंद के युद्ध मे शेरशाह सूरी के बेटे सिकंदर सूरी को हराने के बाद जब हुमायूं ने फिर से मुगलिया सल्तनत को संभाला, तो उसने अपनी शाही सवारी बक्सर के चौसा में भेजी और नाविक निजाम को आगरा बुलाया.

बनाया एक दिन का राजा 

आगरा की गलियों में इस बात की चर्चा थी कि आखिर हुमायूं कैसे अपने वादों को पूरा करेंगे. सवाल बड़ा था. ऐसे में इस्लाम के जानकारों को बुलाया गया. उस समय आगरा में बड़ी मस्जिद के सूफी संत शेख मुहमद गौस के कहने पर हुमायूं ने 14 दिसंबर 1555 को भिस्ती को एक दिन का राजा बना दिया. जानकर अजय मिश्रा बताते हैं कि आगरा संग्रहालय में आज भी इस घटना की कहानियां रखी गई हैं.

सूफी संत शेख मोहम्मद गौस ने अपनी किताब सूफी हुमायूं में लिखा है कि कैसे मस्जिद में ताज को एक दिन के लिए रखा गया और उस निजाम भिस्ती को एक दिन का राजा बनाया गया. किताब के अनुसार एक दिन के राजा भिस्ती को एक ही आदेश लागू करने का अधिकार दिया गया, ऐसे में उसने चमड़े के सिक्के राज्य में चलाने का आदेश पारित किया. लखनऊ के संग्रहालय में आज भी निजाम के द्वारा चलाए गए चमड़े के सिक्कों का वर्णन है. बहरहाल निजाम का नाम भरतीय इतिहास में कहीं मिले या नहीं, लेकिन बक्सर चौंसा की लड़ाई स्थल पर आज भी निजाम की बातों को स्तंभ पर उकेरा गया है. 

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बदहाल है चौसा का स्थल

हांलाकि ऐतिहासिक रूप से समृद्ध बक्सर जिले में पुरातन स्थलों की स्थिति काफी जर्जर है. रख रखाव के अभाव में इतिहास बनाने वाला ये स्थल अब गोबर डालने और उपले बनाने के काम आ रहा है. जिला प्रशासन ने किसी जमाने में लाखों खर्च किए होंगे, लेकिन वर्तमान में यहां का हाल बेहद बुरा है.

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