गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह माओवादियों की मदद ले रही है. बकौल मोदी जो लोग नक्सलियों के साथ जुड़े हैं, उन्हें कभी प्लानिंग कमीशन, तो कभी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में भर्ती किया जा रहा है. मोदी ने इसके अलावा भी आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर केंद्र के ढुलमुल रवैये की धज्जियां उड़ाईं. ये सब बातें उन्होंने आतंरिक सुरक्षा के मसले पर मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन के बाद पत्रकारों से बात करते हुए कहीं. यहां आप पढ़ सकते हैं, नरेंद्र मोदी का पूरा का पूरा बयान, ज्यों का त्यों...
कांग्रेस का तो अब बहुत बुरा हाल है. गुजरात में दो लोकसभा सीटें हैं, जिन पर बीजेपी की भव्य विजय हुई, ये 2014 के चुनावों के लिए कांग्रेस को संदेश है. जनता की नाराजगी का संदेश, जो दिल्ली की सरकार के लिए अल्टीमेटम है, मैं भव्य विजय के लिए गुजरात का धन्यवाद करता हूं.
आज यहां दिल्ली में इंटरनल सिक्युरिटी के संबंध में मीटिंग थी. मैंने पहले भी कहा कि ये यूपीए सरकार की शायद आखिरी मीटिंग हो. मैंने मीटिंग में कहा कि पीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व में पहले भी ऐसी मीटिंग हुई. दस साल में भारत सरकार ने क्या किया, मीटिंग हुई, सीएम आए, उन्होंने सुझाव दिए, उन पर केंद्र सरकार ने क्या एक्शन लिया, इस बारे में देश के सामने एक व्हाइट पेपर पेश किया जाना चाहिए. ये मीटिंग एक रस्म बन गई है बस, सीएम सुझाव देते हैं, पीएम सुन लेते हैं, मगर उन पर क्या ऐक्शन लिया गया, यह देश जानना चाहता है. आखिर इसमें सबकी इतनी शक्ति और सामर्थ लग रहा है.
और इसलिए मैंने पीएम से यह मांग की है. मैंने यह भी कहा कि इस इंटरनल सिक्युरिटी की मीटिंग से मजबूत मैसेज जाना चाहिए. पूरा देश छत्तीसगढ़ के साथ है, रमण सिंह के साथ है. देश माओवाद के आतंक को न तो स्वीकार करेगा, न उसकी शरण में जाएगा. देश लड़ेगा, पूरी ताकत से लड़ेगा. पशुपति से तिरुपति तक पूरा रेड कॉरिडोर माओवादियों ने रक्तरंजित कर दिया है.
पीएम से मैंने मीटिंग में आग्रह किया है कि माओवाद से निपटने के लिए दो तरफा रणनीति होनी चाहिए. दो तरह के इलाके हैं, पहले, जो नक्सल प्रभावित एरिया हैं, दूसरे जहां पर माओवाद की नजरें टिकी हुई हैं. 2012 में पीएम ने पार्लियामेंट में जवाब दिया था, छह बड़े शहर और मुंबई से अहमदाबाद तक का हिस्सा उनके निशाने पर है. अब माओवादी ग्रामीण के बजाय शहरी बेस तैयार करने में जुटे हैं. आज रात को पीएम नक्सल प्रभावित राज्यों की अलग से मीटिंग कर रहे हैं. लेकिन जहां नक्सलवाद फैलने की संभावना है उसके लिए भी अलग मीटिंग करनी चाहिए. सोचना चाहिए कि जहां है वहां रोका जा सके और जहां फैल सकता है, वहां भी काम हो.
एनसीटीसी के संदर्भ में गृह मंत्री भी अपने प्रवचन में बोले नहीं हैं, पीएम भी बोले नहीं हैं, लेकिन एजेंडा में है. मैंने कहा कि आप बोले नहीं है इसलिए लगता तो है कि आपका मन क्या है, फिर भी मैं इस पर पूरे आग्रह से कहना चाहता हूं कि आप नई एजेंसी बनाकर समस्या का समाधान नहीं कर सकते. एक नई एजेंसी बनाकर आप वेल इस्टेबलिश्ड एजेंसी का मनोबल कम करते हैं. जैसे, पीएम की चेयरमैनशिप में प्लानिंग कमीशन पिछले पचास साल से काम कर रहा है. इस बार आपने अचानक एनएसी बना दी, तो प्लानिंग कमीशन बेकार हो गया, उसका कोई रोल ही नहीं रहा. ऐसी ही स्थित एनसीटी के कारण होगी, जो नहीं होनी चाहिए.
आईबी के अंदर एक अच्छा काम चल रहा था, वो था एमएसी का, मैक का. एक प्रकार से कहें, तो अभी उसने अपनी जड़ें जमाई थीं, अचानक से आप उसे आईबी से लेकर एनसीटी को दे रहे हैं. मतलब ये हुआ कि ये मैक नाम का बच्चा, जो पैरों पर खड़ा हो रहा था, उसे अनाथ कर दिया. कोई सोच नहीं है, रोजमर्रा की तरह काम निकाला जा रहा है.
मैंने आज एक गंभीर आरोप लगाया, मैंने कहा कि आपकी बातें राष्ट्रीय सुरक्षा की होती हैं, लेकिन आपके ऐक्शऩ राजकीय सुरक्षा के लिए होते हैं. देश को राष्ट्रीय सुरक्षा में रुचि है, आपकी रुचि राज की सुरक्षा में है. इसिलए आप सारी एजेंसी निजी राजनैतिक इस्तेमाल में ला रहे हैं, और इसके चलते इन सारी संस्थाओं को बर्बाद कर रहे हैं.
केंद्र सरकार ने पुलिस बलों के आधुनिकीकरण का काम लिया है. उसमें मैं देख रहा हूं कि साल 2002 में जो बजट था, आज 2013 में भी वही बजट है, कोई बढ़ोतरी नहीं. पहले 100 फीसदी फंड भारत सरकार देती थी, फिर उन्होंने राज्य पर 25 फीसदी बोझ डाल दिया. पिछली बार मैंने सुझाव दिया कि इसे कम करिए, तो राज्य का हिस्सा बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया. इससे स्टेट के ऊपर बर्डन बढ़ रहा है, बजट नहीं बढ़ा रहे, बस कागजी कार्रवाई बढ़ा रहे हैं.
भारत सरकार को पंचायत पर भरोसा है, मगर राज्य सरकार पर नहीं है. चाहे वो यूपीए के दलों की राज्य सरकार हो या एनडीए के दलों की. आप पंचायत को सीधा-सीधा पैसा देते हैं, उसमें कोई दिक्कत नहीं. मगर आधुनिकीकरण के नाम पर अलॉट किया पैसा राज्य को नहीं देते, दो-दो साल तक टीका टिप्पणी चलती रहती है. क्या टेंडर है, कौन वेंडर है, पूछते रहते हैं, अरे आप एक गाइड लाइन बनाकर तय कर दो, प्रोटोटाइप व्यवस्था बनाओ. फिर जांचो कि हो रहा है कि नहीं.
मैंने मीटिंग में कहा कि छत्तीसगढ़ में जो मारे गए, उनके लिए श्रद्धा है, पुलिस के जवान मारे जाते हैं, सेना के जवान मारे जाते हैं, उनके लिए श्रद्धा है. जवानों के सिर काट लिए जाते हैं, उन जवानों के लिए श्रद्धा है. केरल के दो मछुआरों को मार दिया गया, उनके लिए श्रद्धा है.
मैंने साफ कहा कि आज पूरे हाउस को छत्तीसगढ़ के साथ, डॉ. रमण सिंह के साथ खड़ा हो जाना चाहिए. आंध्र में माओवादियों ने कुछ बरस पहले एक डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को किडनैप किया. उन्हें छोड़ने के लिए सात माओवादियों को रिहा करने की मांग की गई. उसमें एक माओवादी एक एनजीओ की चेयरपर्सन थी, पदमा नाम की. वह भी जेल में थी. उन्हें छोड़ने की मांग थी. ये पदमा कौन हैं. एनएसी के मेंबर जो एक एनजीओ चलाते हैं, उस एनजीओ की ये चेयरपर्सन हैं. उनका पति जाना माना माओवादी आतंकवादी है. तो एक एक्टिविस्ट जिसे छोड़ने की मांग माओवादी कर रहे हैं, वह एनएसी में हो औऱ एनजीओ के खिलाफ कुछ न हो, ऐसा कैसे.
इसलिए मैं कहता हूं कि आप राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करते हैं मगर ऐक्शन राजकीय सुरक्षा के लिए लेते हैं. छत्तीसगढ़ के पुलिस जवानों ने जिस पर केस किया, कोर्ट में जो हुआ सो हुआ, उस पर डिबेट हो सकती है, उसके बरी होते ही आपने उसी रात उसे प्लानिंग कमीशन का मेंबर बना दिया, जिसके चेयरैमन प्रधानंत्री हैं. ऐसा करके आपने स्टेट के सारे फोर्स का मनोबल खत्म कर दिया.
दूसरा मैंने कहा कि एनसीटीसी या जो भी आप कर रहे हैं, आप फेडरल स्ट्रक्चर को दुर्बल कर रहे हैं. सब राज्य मिलकर भारत सरकार के साथ देश चलाते हैं, ये बिग ब्रदर का एटीट्यूड ठीक नहीं है. गृह मंत्री अपने भाषण में बोले कि मिजोरम और त्रिपुरा को अपना झगड़ा सुलझाना चाहिए. अरे भाई, फिर आप किसलिए हैं, भारत सरकार क्या करेगी. सरकारिया आयोग ने कहा था कि दो राज्यों के बीच झगड़े के निपटारे के लिए केंद्र सरकार को एक ठोस मैकेनिज्म बनाना चाहिए. मैंने सरकार से मांग की है कि सरकारिया कमीशन की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्रियों को बुलाकर चर्चा कराई जाए.