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रक्षा खरीद प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और तेज बनाने की जरूरतः विशेषज्ञ

रक्षा खरीद में ‘ऑफसेट’ प्रस्तावों की शर्तों में हाल ही में ढील देकर सरकार ने सशस्त्र बलों के लिये जरूरत के साजो-सामान खरीदने की प्रक्रिया में जटिलताएं कम करने की कोशिश की है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और तेजी लाने जरूरत है.

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रक्षा खरीद में ‘ऑफसेट’ प्रस्तावों की शर्तों में हाल ही में ढील देकर सरकार ने सशस्त्र बलों के लिये जरूरत के साजो-सामान खरीदने की प्रक्रिया में जटिलताएं कम करने की कोशिश की है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और तेजी लाने जरूरत है.

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वर्ष 1999 के करगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना दुनिया में रक्षा उपकरणों का सबसे अधिक आयात करने वाली सेना बन गयी है. भारत ने 1999 के बाद 50 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक के शस्त्र समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें से अधिकतर वायुसेना और नौसेना के लिये रहे हैं.

लेकिन दिलचस्प रूप से देश की सीमाओं की रक्षा की रीढ़ मानी जाने वाली थलसेना को बीते 25 वर्ष में नयी तोपें नहीं मिल पायी हैं. बोफोर्स तोप सौदे के विवादों में घिरने के बाद से थलसेना के तोपखानों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रभावित रही है.

रक्षा जगत की पत्रिका ‘इंडियन डिफेंस रिव्यू’ के संपादक भरत वर्मा ने बताया, ‘ऑफसेट प्रस्तावों की प्रक्रिया में ढील जरूर दी गयी है लेकिन रक्षा खरीद को आसान और तेज बनाने के लिये अधिक प्रयास करने की जरूरत है. इस मामले में वर्तमान में थलसेना में निर्णय प्रक्रिया काफी धीमी है, जिसे तेज और पारदर्शी बनाने की जरूरत है.’ उन्होंने बताया कि थलसेना को अब तक नयी तोपें नहीं मिल पायी हैं, तीन हजार युद्धक टैंकों में से आधे रात में जंग नहीं लड़ सकते. इसके अलावा युद्ध की स्थिति में सबसे अग्रिम मोर्चे पर कमान संभालने वाले कैप्टन, लेफ्टिनेंट और मेजर रैंक के 13,000 से अधिक युवा अफसरों की कमी है.

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{mospagebreak} वर्मा बताते हैं कि रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 26 फीसदी से बढ़ाकर कम से कम 49 फीसदी कर दिया जाना चाहिये. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्ष से थलसेना के परिप्रेक्ष्य में ध्यान साजो-सामान की खरीद और जम्मू कश्मीर में उसकी भूमिका जैसे मुद्दों पर केंद्रित किया गया लेकिन अधिकारियों की कमी के मसले को नजरअंदाज ही किया जाता रहा.

उन्होंने दावा किया कि थलसेना में आज हालात यह हैं कि एक बटालियन में 20 से 22 अफसरों की जरूरत के विपरीत महज पांच से छह अधिकारी हैं.

इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस में वरिष्ठ शोध सहायक राजीव नयन बताते हैं, ‘थलसेना को यह शिकायत रहती है कि उसका आधुनिकीकरण और तैयारियां नौकरशाही के कारण बाधित रहती है लेकिन बल की जरूरत और संवेदनशीलता को देखते हुए यह दलील स्वीकार्य नहीं है.’

उन्होंने कहा कि थलसेना के साथ सबसे बड़ी दिक्कत जरूरतों के बारे में उसके आकलन को लेकर रही है. थलसेना को किस तरह के साजो-सामान या मानव संसाधनों की जरूरत है, इस बारे में उचित तरीके से दस्तावेजी काम नहीं हो पाता. इस काम में सुधार लाने के लिये थलसेना को खुद ही पहल करनी होगी.

नयन ने स्वीकार किया कि पिछले कुछ वषरें से सेना में अधिकारियों की कमी है और इस मसले पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है.

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उन्होंने कहा कि थलसेना कहती है कि वह अफसरों की भर्ती के बारे में गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं कर सकती और युवाओं का रूझान सेना के प्रति कम हो गया है. लेकिन इस समस्या को दूर करने के लिये उसने कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं.

{mospagebreak} नयन ने कहा कि वर्ष 1962 के युद्ध के बाद राष्ट्रीय कैडेट कोर को जिस तरह तैयार किया गया, उसी तर्ज पर अब स्कूली स्तर से ही सेना को भावी अफसरों को प्रशिक्षित करना होगा. नयन बताते हैं कि ढ़ांचागत तरीके से अगर इस दिशा में कदम उठाये जायेंगे तो अगले कुछ ही वषरें में अफसरों की कमी की समस्या हल हो जायेगी.

अस्त्र-शस्त्र के मामले में थलसेना को वर्तमान में सबसे ज्यादा जरूरत तोपों की है. वह 105 एमएम, 130 एमएम और 155 एमएम की विभिन्न तरह की तोपों का इस्तेमाल करती है. उसकी अब दो हजार से अधिक होवित्जर तोपें खरीदने की योजना है. वहीं, युद्धक टैंकों के स्वदेशी संस्करणों को भी अधिक सक्षम बनाने की दिशा में काम हो रहा है.

पिछले दिनों थलसेनाध्यक्ष जनरल वी. के. सिंह खुद कह चुके हैं कि तोपखानों के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रभावित रही है और वर्दीधारी (सैन्य पक्ष) तथा गैर-वर्दीधारियों (असैन्य पक्ष) की ओर से गलतियां हुई हैं.

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सरकार ने हाल ही में रक्षा खरीद प्रक्रिया में ऑफसेट प्रस्तावों (रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करने के ऐवज में भारत में कुछ फीसदी हिस्सा निवेश करने) की शर्तों में ढील दी है.

नियमों के मुताबिक, 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य का रक्षा सौदा होने पर आपूर्ति करने वाली विदेशी कंपनी को भारत के रक्षा क्षेत्र में कम से कम 30 फीसदी का निवेश करना होता था. बदलावों के बाद अब यह निवेश नागरिक उड्डयन तथा आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी किया जा सकेगा. संभावना है कि इससे रक्षा सौदे आसान हो सकेंगे.

रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने कल ही एक नयी नीति की घोषणा की जिसके तहत अगले एक दशक में रक्षा खरीद में 50 फीसदी स्वदेशीकरण का लक्ष्य रखा गया है.

गौरतलब है कि 15 जनवरी 1949 को अंतिम ब्रितानी कमांडर के शीर्ष पद से हटने के बाद थलसेना की कमान फील्ड मार्शल के. एम करियप्पा को सौंपी गयी थी. इसी याद में हर वर्ष 15 जनवरी को थलसेना दिवस मनाया जाता है.

15 जनवरी को थलसेना दिवस पर विशेष प्रस्तुति.

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