माउंट एवरेस्ट पर चढ़ना कई लोगों की जिंदगी का सपना होता है. वहीं कुछ माउंटेनियर्स इसके लिए लंबी ट्रेनिंग करने के बाद ट्रैकिंग शुरू करते हैं. इसके बावजूद कई लोग इस मंजिल तक पहुंचते हुए खतरनाक मौसम और परिस्थितियों की चपेट में आकर जान गंवा देते हैं. हाल में नेपाली शेरपा गाइड ने माउंट एवरेस्ट की ट्रैकिंग के बीच फंसे एक मलेशियाई क्लाइंबर को बहुत खतरनाक परिस्थितियों से बचाकर निकाला है. इसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है.
डेथ जोन में रस्सी से लटका कांप रहा था
दरअसल, 30 साल के गेलजे शेरपा बीते 18 मई को एवरेस्ट पर 8,849 मीटर (29,032 फीट) पर एक चीनी क्लाइंट को गाइड कर रहे थे. यहां 'डेथ जोन' कहे जाने वाले क्षेत्र में उन्हें एक मलेशियाई क्लाइंबर रस्सी से लटका हुआ दिखा. वह ठंड से बुरी तरह कांप रहा था. गेलजे उसकी मदद को आगे बढ़े और किसी तरह उसे 600 मीटर नीचे लेकर आए. यहां एक अन्य गाइड नीमा ताशी शेरपा ने उनकी मदद की और उनको सुरक्षित स्थान पर इलाज के लिए पहुंचाया.
बारी- बारी कंधे पर ढोकर बचाई जान
गेलजे ने बताया कि हमने क्लाइंबर को एक स्लीपिंग मैट में लपेटा और बारी- बारी अपने कंधों पर उन्हें ढोते हुए सी लेवल से 7,162 मीटर की ऊंचाई पर बने कैंप-III पहुंचाया. इसके बाद उन्हें हेलीकॉप्टर से एयरलिफ्ट कराया गया.
-30 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे था पारा
बता दें कि माउंट एवरेस्ट पर डेथ जोन वह जगह है जहां पारा -30 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है. यह क्षेत्र अधिक खतरनाक और जानलेवा माना जाता है.
'इतनी ऊंचाई पर बचाव अभियान लगभग असंभव'
पर्यटक विभाग के अधिकारी बिग्यान कोइराला ने बताया कि इतनी ऊंचाई से किसी को बचाकर निकाल लेना लगभग असंभव है. ये बहुत अनोखा बचाव अभियान था. गेलजे ने बताया कि उन्होंने अपने क्लाइंट को समझाया कि वे अभी चढ़ाई छोड़ दे क्योंकि इस समय इस मलेशियाई शख्स की जान बचाना मेरे लिए ज्यादा जरूरी है. मोनास्ट्री में जाकर प्रार्थना करने से ज्यादा जरूरी है किसी की जान बचाना.
इस साल एवरेस्ट चढ़ते हुए 12 की मौत, 5 लापता
इधर, मलेशियाई क्लाइंबर को लॉजिस्टिक देने वाली ट्रैक कंपनी ताशी लाकपा शेरपा ने क्लाइंट की प्राइवेसी कहकर मलेशियाई शख्स का नाम बताने से मना कर दिया. बता दें कि नेपाल ने इस साल मार्च से मई तक चढ़ाई के मौसम के दौरान एवरेस्ट के लिए रिकॉर्ड 478 परमिट जारी किए थे. इसमें से कम से कम 12 पर्वतारोहियों की मृत्यु हो गई है, जो आठ सालों में सबसे अधिक संख्या है, और अन्य पांच अभी भी एवरेस्ट की ढलानों पर लापता हैं.