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एक सेकंड की देरी से आएगा साल 2017, जानिए क्यों

इस बार नया साल एक सेकंड की देरी से आएगा. इस बार साल 2016 एक सेकंड की देरी से खत्म होगा तो वहीं नया साल 2017 एक सेकंड की देरी से शुरू होगा.विज्ञान की भाषा में कहें तो इस साल 31 दिसंबर में एक लीप सेकंड जोड़ा जा रहा है.

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एक सेकंड की देरी से आएगा नया साल 2017
एक सेकंड की देरी से आएगा नया साल 2017

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इस बार नया साल एक सेकंड की देरी से आएगा. पढ़ने में कुछ अटपटा तो जरूर लगा होगा लेकिन ऐसा ही होने जा रहा है. इस बार साल 2016 एक सेकंड की देरी से खत्म होगा तो वहीं नया साल 2017 एक सेकंड की देरी से शुरू होगा.

विज्ञान की भाषा में कहें तो इस साल 31 दिसंबर में एक लीप सेकंड जोड़ा जा रहा है. यह सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक साथ किया जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यूनिवर्सल टाइम के हिसाब से 31 दिसंबर को यूटीसी 23:59:59 के समय में एक लीप सेकंड जोड़ा जाएगा. भारतीय समय के अनुसार देखें तो यहां पर लीप सेकंड 1 जनवरी को IST 05:29:59 में जोड़ा जाएगा. सुनने में यह प्रक्रिया जितनी आसान लगती है उतनी आसान ये होती नहीं है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले 1972 से लेकर अब तक 36 बार दुनिया की घड़ी में लीप सेकंड जोड़े जा चुके हैं.

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देश में भारतीय मानक समय के कस्टोडियन का काम सीएसआईआर नेशनल फिजिकल प्रयोगशाला के जिम्मे है. देश में चल रही हर तरीके की क्लॉक, नेशनल फिजिकल प्रयोगशाला की दिल्ली स्थित मुख्यालय में रखी हुई परमाणु घड़ी से मिलान करके चलाई जाती है. 1 सेकंड का ऐडजस्टमेंट सुनने में तो काफी आसान लगता है लेकिन इस पर एस्ट्रोनॉमी, सैटेलाइट नेविगेशन और देश के सारे संचार माध्यम निर्भर करते हैं. यहां तो बात एक सेकंड की हो रही है लेकिन ऊपर बताए गए सभी कामों के लिए एक सेकेंड के अरबवें हिस्से की शुद्धता चाहिए. लिहाजा नेशनल फिजिकल प्रयोगशाला अपनी परमाणु घड़ी में हर तरीके के कैलकुलेशन के बाद बदलाव करती है.

दरअसल कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम यानी यूटीसी से दुनियाभर की घड़ियों का मिलान किया जाता है. यूटीसी में समय-समय पर टाइम को करेक्ट रखने के लिए लीप सेकंड को जोड़ा जाता है. यूटीसी दुनिया भर में अलग-अलग देशों में लगी हुई 300 परमाणु घड़ियों की शुद्धता पर आधारित समय प्रणाली है. ऐसी ही एक परमाणु घड़ी सीएसआईआर के नेशनल फिजिकल प्रयोगशाला के मुख्यालय में संचालित की जाती है.

लीप सेकेंड होता क्या है?
धरती पर रहने वाले हर जीव के लिए समय का आभास पृथ्वी के अपने अक्ष पर लगने वाले चक्कर की वजह से होता है. अपने अक्ष पर घूमने की वजह से पृथ्वी पर दिन और रात होते हैं. पृथ्वी का एक स्पिन तकरीबन 24 घंटे में लगता है. वैज्ञानिक भाषा में इसको एस्ट्रोनॉमिकल टाइम कहते हैं. लेकिन धरती के अपने अक्ष पर चक्कर लगाने की गति में तभी तेजी आती है तो कभी यह धीमी हो जाती है.

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घूर्णन गति में यह बदलाव चंद्रमा की गति की वजह से और समंदर में उठ रहे ज्वार-भाटे की वजह से होता है. यह बदलाव बेहद मामूली होता है. लिहाजा हम इसका आभास नहीं कर पाते हैं. इस बदलाव की वजह से एस्ट्रोनॉमिकल टाइम परमाणु घड़ी के जरिए मिल रहे टाइम से अलग हो जाता है. जब एस्ट्रोनॉमिकल टाइम और एटॉमिक टाइम में 0.9 सेकंड का अंतर आ जाता है तो परमाणु घड़ी में लीप सेकंड को जोड़कर इसका मिलान एस्ट्रोनॉमिकल टाइम से कर दिया जाता है. कुछ ऐसा ही 31 दिसंबर को होने जा रहा है.

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