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विवाहपूर्व यौन सम्बन्ध और सहजीवन अपराध नहीं: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने विवाहपूर्व यौन सम्बन्धों और सहजीवन की वकालत करने वाले लोगों के माफिक व्यवस्था देते हुए मंगलवार को कहा कि किसी महिला और पुरुष के बगैर शादी किये एक साथ रहने को अपराध नहीं माना जा सकता.

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उच्चतम न्यायालय ने विवाहपूर्व यौन सम्बन्धों और सहजीवन की वकालत करने वाले लोगों के माफिक व्यवस्था देते हुए मंगलवार को कहा कि किसी महिला और पुरुष के बगैर शादी किये एक साथ रहने को अपराध नहीं माना जा सकता.

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प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति बी. एस. चौहान की पीठ ने कहा ‘दो बालिग लोगों का एक साथ रहना आखिर कौन सा गुनाह है. क्या यह कोई अपराध है? एक साथ रहना कोई गुनाह नहीं है. यह कोई अपराध नहीं हो सकता.’ न्यायालय ने कहा कि यहां तक कि पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान कृष्ण और राधा भी साथ-साथ रहते थे.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सहजीवन या विवाहपूर्व यौन सम्बन्धों पर रोक के लिये कोई कानून नहीं है. न्यायालय ने यह व्यवस्था दक्षिण भारतीय अभिनेत्री खुशबू की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई के दौरान अपना फैसला सुरक्षित करते हुए दी है. पीठ ने शिकायतकर्ताओं के वकील ने कहा ‘इससे आपको क्या परेशानी है. हमें तो कोई दिक्कत नहीं है. वह एक निजी नजरिया है. यह आखिर कैसे और कानून के किस प्रावधान के तहत अपराध है?’

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न्यायालय ने शिकायतकर्ताओं से कहा कि वे इस बात के सुबूत पेश करें कि क्या खुशबू के साक्षात्कार देने के बाद लड़कियां अपने घर से भागी थीं. अदालत ने यह भी पूछा कि क्या शिकायतकर्ताओं में लड़कियों के माता-पिता भी शामिल हैं. पीठ ने पूछा ‘क्या आप बता सकते हैं कि उस साक्षात्कार से कितने घर प्रभावित हुए.’

इसका जवाब ‘ना’ में आने पर पीठ ने कहा ‘तब आप कैसे कह सकते हैं कि आप पर गलत असर पड़ा?’ गौरतलब है कि खुशबू ने अपने खिलाफ मामलों को खत्म कराने के लिये मद्रास उच्च न्यायालय में दायर याचिका को वर्ष 2008 में खारिज किये जाने के बाद उच्चतम न्यायालय की शरण ली थी.

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