खाद्य सुरक्षा अध्यादेश पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने हस्ताक्षर कर दिए हैं. इसी के साथ 67 फीसदी आबादी को बेहद कम दर पर अनाज मुहैया कराने का रास्ता साफ हो गया है. चूंकि यह अध्यादेश है, इसलिए कानून का रूप देने के लिए सरकार को इसे 6 महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों में पास करवाना होगा.
राजनीतिक विरोध को दरकिनार करते हुए सरकार ने यह अध्यादेश लाने का फैसला किया था. यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा जिसके तहत 67 फीसदी आबादी को 6 करोड़ 20 लाख टन चावल, गेहूं और साधारण अनाज मुहैया कराया जाएगा. इसके लिए सरकार सालाना करीब 125 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी.
खाद्य अध्यादेश की बारीकियों से ज्यादा उसकी टाइमिंग पर सवाल हो रहे हैं. यह यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी योजना मानी जाती है. बताया जा रहा है कि इसी वजह से नवंबर के विधानसभा और अगले साल लोकसभा चुनावों से पहले इसे लागू करने में जल्दबाजी दिखाई गई. हालांकि कृषि मंत्री शरद पवार इससे सरकारी खजाने को होने वाले घाटे को लेकर कई बार चिंता जता चुके हैं.
इससे पहले कांग्रेस के मीडिया प्रभारी अजय माकन ने प्रेस कांफ्रेंस करके फूड बिल के फायदे गिनाए. उन्होंने दावा किया कि खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लागू होने के बाद देश में कोई भूखा नहीं रहेगा और बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की समस्या खत्म होगी. लगे हाथ उन्होंने यह भी कहा कि अध्यादेश को चुनाव से जोड़कर न देखा जाए.
क्या कह रहे हैं बाकी राजनीतिक दल
बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इस अध्यादेश को राजनीतिक हथकंडा बताया है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी विधेयक को पास करवाना चाहती है लेकिन इसके लिए संसद में बहस और कुछ संशोधन जरूरी थे. राजनाथ ने कहा, 'शायद जुलाई के तीसरे हफ्ते से मानसून सत्र शुरू हो रहा है, फिर जल्दबाजी में ऐसा करने की ज़रूरत क्या थी.'
वहीं, सीपीएम नेता वृंदा करात ने भी संसद के सत्र से पहले अध्यादेश लाकर विधेयक पास कराने की आलोचना की है. उन्होंने इसे संसद की अवमानना और आम लोगों से साथ अन्याय बताया है.
बाहर से समर्थन देकर कई बार यूपीए की डूबती लुटिया बचा चुके एसपी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी इस बिल को किसान विरोधी बताया है.
ये हैं आलोचना के बिंदु
1. इससे सरकार पर सब्सिडी का बहुत भारी बोझ पड़ेगा, जो राजकोषीय घाटे की समस्या को विकराल बना सकता है.
2. इसके लागू होने के बाद अनाज के बाजार पर फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया जैसी सरकारी एजेंसियों का दबदबा हो सकता है, जिससे निजी व्यापारी बाजार से बाहर हो जाएंगे.
3. छोटे किसान जो अब तक निजी उपयोग का अनाज खुद उगाते थे, सब्सिडी का अनाज खरीदने और पैसा बनाने के लिए दूसरी फसलों की ओर आकर्षित हो सकते हैं. इससे उत्पादन पर असर पड़ सकता है.
4. अध्यादेश लागू करने की प्रक्रिया में कई झोल और भ्रष्टाचार हो सकते हैं.