पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने कहा कि चेतेश्वर पुजारा टेस्ट मैचों की तरह वनडे क्रिकेट में भी सफल हो सकते हैं. पुजारा ने द्रविड़ के संन्यास लेने के बाद नंबर तीन स्थान की भरपायी अच्छी तरह से की है.
पुजारा को शुरू से ही द्रविड़ का उत्तराधिकारी माना जा रहा था तथा इस युवा बल्लेबाज ने अब तक 13 टेस्ट मैच में लगभग 65 की औसत से रन बनाकर इसे सही साबित किया. द्रविड़ को लगता है कि सौराष्ट्र का यह बल्लेबाज टेस्ट क्रिकेट में उन्हीं के जैसा रवैया अपनाता है.
द्रविड़ ने कहा, ‘उसने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शानदार शुरुआत की है. सच्चाई यह है कि उसकी शुरुआत मुझसे भी बेहतर है. मैं समझता हूं कि वह बल्लेबाजी के पुरानी परंपरा के हिसाब से आगे बढ़ा है. वह कई शॉट ईजाद कर रहा है और टेस्ट क्रिकेट में उसका रवैया वैसा ही जैसा मेरा था.’
पुजारा ने अब तक वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट नहीं खेला है लेकिन घरेलू स्तर पर वनडे मैचों में उन्होंने 56.97 की औसत से रन बनाये हैं जिसमें आठ शतक और 17 अर्धशतक शामिल हैं.
द्रविड़ ने कहा, ‘वह बेसिक्स पर ध्यान देता है. आप देख सकते हो कि लगातार सुधार कर रहा है और वह ऐसा खिलाड़ी है जो सवालों का जवाब ढूंढता है. वह जिस तरह से क्रिकेट खेल रहा है. मुझे लगता है कि वह कई सवालों के जवाब ढूंढ सकता है और इनमें से एक सवाल वनडे क्रिकेट है.’
द्रविड़ का मानना है कि टेस्ट क्रिकेट को बनाये रखने के लिये इसका कार्यक्रम सही तरह से तैयार करने की जरूरत है तथा सभी टीमों को अधिक से अधिक मैच दिये जाने चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘मैं निश्चित तौर पर इसका बेहतर कार्यक्रम देखना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि अधिक से अधिक टीमें टेस्ट क्रिकेट खेलें. मैं चाहता हूं कि सभी टीमों को एक दूसरे के खिलाफ अधिक से अधिक मैच खेलने का मौका मिले. इससे टेस्ट क्रिकेट आगे बढ़ेगा और उसमें सुधार होगा. टेस्ट क्रिकेट को बनाये रखने का एक ही रास्ता है कि जितना संभव हो अधिक मैच खेलना.’
द्रविड़ ने कहा कि अपने करियर के शुरुआती दौर में विदेशों में खेलने पर उन्हें उछाल से तालमेल बिठाने में दिक्कत हुई. उन्होंने कहा, ‘मैं विदेशों में ऐसी परिस्थितियों में सफल होना चाहता था जिनका मुझे अनुभव नहीं था. अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के शुरुआती दौर में मुझे उछाल वाली गेंदों से सामंजस्य बिठाने में मुश्किल हुई.’
द्रविड़ ने कहा, ‘जब मैं पहली बार ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड गया, तो मैंने देखा कि विदेशों के कुछ चोटी के खिलाड़ी लंबाई वाली गेंदों को छोड़ देते थे. भारतीय बल्लेबाज इस तरह की गेंद खेलते हैं क्योंकि भारत में इन्हें छोड़ने पर वह आपके मिडिल या ऑफ स्टंप से गिल्लियां उड़ा सकती है. इस उछाल से सामंजस्य बिठाने और विशेषकर पारी के शुरू में यह जानना कि कौन सी गेंद छोड़ना है, काफी मुश्किल होता है.’