ट्रेन के डिब्बों में खोजी कुत्तों को विस्फोटकों का पता लगाते हुए तो आपने देखा ही होगा. लेकिन क्या आपको पता है कि काम के बोझ तले दबकर वे बेमौत मर रहे हैं? रेल न्यूज के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में दो खोजी कुत्तों की मौत हो गई.
12 अक्टूबर को पांच साल का एक लैब्राडोर खोजी कुत्ता, जिसका नाम था 'डॉन' मर गया. उसे दिल का दौरा पड़ा था. मई में भी एक लैब्राडोर की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. वह सामान की तलाशी ले रहा था कि उसे घातक दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई.
एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट हर्षा शाह ने बताया कि कुत्तों की अच्छी तरह से देखभाल न किए जाने के कारण उनकी मौत हो रही है. इन रक्षक कुत्तों पर काम का बहुत बोझ है. उन्हें ट्रेन के हर डिब्बे में जाकर जांच करनी होती है. शाह ने आरोप लगाया कि जहां आरपीएफ के जवान सिर्फ 8 घंटे काम करते हैं वहीं ये खोजी कुत्ते 14-15 घंटे काम करते हैं.
2008 में गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि हर आठ ट्रेन पर एक खोजी कुत्ता होना चाहिए. शाह ने कहा कि इन कुत्तों पर ज्यादा ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है. उन्हें आराम भी नहीं मिलता है. कई बार उन्हें शहर में हुए अपराध की जांच के लिए भी भेज दिया जाता है.