वक्त के ‘बुढ़ापे’ को फन की ‘जवानी’ से तौलते वयोवृद्ध महान सितार वादक पंडित रवि शंकर की नजर में जैसे-जैसे वह बूढ़े हो रहे हैं, वैसे-वैसे उनका फन जवान हो रहा है.
भारतीय सितार वादन की गूंज को पश्चिमी दुनिया में पहुंचाने का श्रेय रखने वाले सितार के ‘पंडित’ रवि शंकर सात अप्रैल को अपना 90वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं. सितार की सुरलहरियों पर शोहरत की विशाल इमारत खड़ी कर चुके रवि शंकर अब अपनी उम्र और फन की जवानी को एक-दूसरे से तौल रहे हैं.
इसकी बानगी उनकी कही गई एक बात में मिलती है. वह अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर लिखते हैं ‘मैं उम्र की इस दहलीज पर बैठकर अपनी जवानी को गुजरते देख रहा हूं. मैं पहले की तरह तेज नहीं दौड़ सकता लेकिन निश्चित रूप से उम्र के साथ मेरा संगीत और जवान हो रहा है, तो क्या मुझे अपनी जवानी गुजरने का मलाल करना चाहिये या फिर भगवान का शुक्र अदा करके संगीत की दुनिया में और गहरे डूब जाना चाहिये.’
जिंदगी में तमाम सम्मान और ख्याति अर्जित करने के बाद भी रवि शंकर में संगीत के प्रति वही दीवानगी है जो बरसों पहले हुआ करती थी. वेबसाइट के मुताबिक उनके 90वें जन्मदिन के मौके पर शिकागो कल्चरल सेंटर में इस महान कलाकार को समर्पित फिल्म एवं संगीत संध्या का आयोजन किया जाएगा. उनके जन्मदिन के जश्न के तहत प्रेस्टन ब्रैडली हॉल में भारत की तीन उभरती हुई संगीत प्रतिभाएं सितार वादक पुरबायन चटर्जी, बांसुरी वादक राकेश चौरसिया और तबला वादक योगेश शमसी एक कंसर्ट करेंगे. {mospagebreak}
सितार शिरोमणि के जन्मदिन के जश्न के तहत प्रेस्टन ब्रैडली हॉल में भारत की तीन उभरती हुई संगीत प्रतिभाएं सितार वादक पुरबायन चटर्जी, बांसुरी वादक राकेश चौरसिया और तबला वादक योगेश शमसी एक कंसर्ट करेंगे. रवि शंकर को भारतीय संगीत खासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है. बतौर प्रस्तोता, संगीतज्ञ, शिक्षक और लेखक के रूप में रवि शंकर ने खूब शोहरत कमाई.
वह देश के पहले शास्त्रीय संगीत कलाकार थे जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे. सात अप्रैल 1920 को वाराणसी के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे रवि शंकर ने बाबा अलाउद्दीन खां से तालीम ली. 1960 के दशक के मध्य में उन्होंने तीन यादगार प्रस्तुतियां- मॉनटेरी पॉप फेस्टिवल, कंसर्ट फॉर बांग्लादेश और वुडस्टॉक फेस्टिवल दीं. समय से आगे की सोच रखने वाले संगीतकारों में शुमार किये जाने वाले रवि शंकर ने कंसर्ट की विधा में भी क्रांति का सूत्रपात किया.
उन्होंने कभी रात भर चलने वाली संगीत संध्या के समय को कम किया. हालांकि इसके लिये रवि शंकर को काफी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा था. रवि शंकर का मानना था कि रात भर संगीत कंसर्ट चलने से लोगों का कार्यक्रम से लगाव कम होता जाता है. अगर उसकी अवधि को कम कर दिया जाए तो संगीत सुनने वाले के साथ-साथ बजाने वाले को भी ज्यादा आनंद आएगा. रवि शंकर ने भारत, कनाडा, यूरोप तथा अमेरिका में बैले तथा फिल्मों के लिये भी संगीत कम्पोज किया. इन फिल्मों में ‘चार्ली’, ‘गांधी’ और ‘अपू त्रिलोगी’ भी शामिल हैं.
कामयाब व्यक्ति के अच्छा इंसान भी होने की कहावत को चरितार्थ करते हुए रवि शंकर ने वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान वहां से भारत आ गए लाखों शरणार्थियों की मदद के लिये कार्यक्रम करके धन इकट्ठा किया. उन्होंने अपने मित्र जॉर्ज हैरिसन की मदद से एक कंसर्ट आयोजित किया और यह मानवीय कार्यक्रम कंसर्ट फॉर बांग्लादेश के नाम से मशहूर हुआ. बाद में यह कार्यक्रम ऐसे ही कल्याणकारी मकसद के लिये कंसर्ट आयोजित करने की प्रेरणा भी बना.