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अनोखी परंपराः दशहरे के 6 दिन बाद 'रावण दहन'

बुराई का प्रतीक माने जाने वाले रावण का पुतला देशभर में दशहरे के दिन जलाया जा चुका है, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में रावण दशहरे के छह दिन बाद तक जीवित रहता है. राजधानी लखनऊ से करीब 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे में दशहरे के छह दिन बाद रावण और उसके कुनबे का दहन करने की परंपरा सालों से चली आ रही है.

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रावण का पुतला
रावण का पुतला

बुराई का प्रतीक माने जाने वाले रावण का पुतला देशभर में दशहरे के दिन जलाया जा चुका है, लेकिन उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में रावण दशहरे के छह दिन बाद तक जीवित रहता है. राजधानी लखनऊ से करीब 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे में दशहरे के छह दिन बाद रावण और उसके कुनबे का दहन करने की परंपरा सालों से चली आ रही है.

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अनोखी परंपरा के पीछे खराब आर्थिक स्थिति
स्थानीय लोगों का कहना है कि अचलगंज पूजा समिति की खराब आर्थिक स्थिति इस अनोखी परंपरा की वजह है, जो करीब सौ सालों से चली आ रही है. अचलगंज पूजा समिति के महामंत्री मोतीलाल गुप्ता के मुताबिक, 'पूजा समिति ने गठन के बाद पहली बार आपसी सहयोग से चंदा लगाकर दुर्गा पूजा और दशहरा का आयोजन करने का निर्णय लिया. दुर्गा पूजा के आयोजन के वक्त ही इतना खर्चा आ गया और समिति के सामने पैसे की किल्लत आ गई.' गुप्ता ने कहा, 'दुर्गा पूजा तो किसी तरह संपन्न हो गई लेकिन पैसे की किल्लत की वजह से विजयादशमी के दिन रावण दहन का आयोजन नहीं हो पाया. समिति के सदस्यों ने एक बार फिर से लोगों से मदद मांगी. चार-पांच दिन बाद जब पैसे एकत्र हो गए तो फिर रावण दहन किया गया. तभी से यह परंपरा शुरू हुई और हर साल दशहरे के छह दिन बाद रावण दहन होने लगा.'

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और कहीं नहीं है ये अनोखी परंपरा
इस साल अचलगंज में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन 20 अक्टूबर को होगा. स्थानीय निवासी विकास तिवारी ने बताया, 'मुझे नहीं लगता कि रावण और उसके कुनबे का दहन छह दिन बाद करने की अनोखी परंपरा हमारे अचलगंज के अतिरिक्त कहीं पर होगी.' तिवारी ने कहा, 'बीते सालों की तरह इस साल भी मैं अपने परिवार को लेकर गांव के बाहर मैदान में जाऊंगा जहां पर दहन का कार्यक्रम आयोजित होगा.'

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