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कई शहरों में भगवान की मूर्ति के दूध पीने की अफवाह, चमत्कार मान मंदिर पहुंचे लोग

महाराष्ट्र के कई शहरों में नंदी की मूर्ति द्वारा दूध पीने की अफवाह पर अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति चंद्रपुर के अनिल दहेगावकर ने बताया कि यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसे सरफेस टेंशन कहते हैं. उन्होंने लोगों से इस प्रकार के अंधविश्वास पर विश्वास ना करने की अपील की. उन्होंने कहा कि इस प्रकार की बातों का प्रचार-प्रसार करना और लोगों को भ्रमित करना भी एक अपराध है.

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मूर्ति को दूध पिलाने मंदिरों में पहुंच रहे लोग.
मूर्ति को दूध पिलाने मंदिरों में पहुंच रहे लोग.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चंद्रपुर में नंदी की मूर्ति द्वारा दूध पीने की फैली अफवाह
  • अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने इसे बताया वैज्ञानिक प्रक्रिया
  • इस तरह की गलत अफवाहें फैलाने को बताया अपराध

महाराष्ट्र के कई शहरों में नंदी की मूर्ति द्वारा दूध पीने की चर्चा जोरों पर है. इससे जुड़े वीडियो और मैसेज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं. राज्य के हर छोटे बड़े शहरों से ऐसी ही तस्वीरें सामने आ रही है. चंद्रपुर, नागपुर, यवतमाल, अकोला, अमरावती और औरंगाबाद जैसे शहरों में लोग इस चमत्कार को देखने के लिए मंदिरों में भीड़ लगा रहे हैं.

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बता दें, कई साल पहले भी भगवान गणेश की मूर्ति द्वारा दूध पीने की अफवाह जम कर फैली थी. अब फिर से मंदिरों में नंदी की मूर्ति को दूध पिलाने के लिए भारी भीड़ जुट रही है. आखिर ये मामला क्या है, इसे जानने के लिए आजतक की टीम ने अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के सदस्यों से संपर्क किया. उन्होंने इसे एक वैज्ञानिक प्रक्रिया बताया और लोगों से इस प्रकार के अंधविश्वास पर विश्वास ना करने की अपील की. साथ ही इसे सच साबित करने वालों को 25 लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा भी की. समिति द्वारा कहा गया कि इस प्रकार की बातों का प्रचार-प्रसार करना और लोगों को भ्रमित करना भी एक अपराध है.

लोगों से की अपील

अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति चंद्रपुर के अनिल दहेगावकर ने कहा कि यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसे सरफेस टेंशन कहते है जिसके कारण किसी मिट्टी की मूर्ति या पत्थर की मूर्ति को कोई द्रव्य पदार्थ पानी या दूध से सम्पर्क होता है उस समय कुछ हद तक मूर्ति पानी सोख लेती है. इसी कारण हमें आभास होता है कि मूर्ति पानी पी रही है, लेकिन कुछ समय बाद पानी नीचे बहने लगता है. लेकिन मन में बसी श्रद्धा के कारण लोग उसे देख नहीं पाते और इसे एक चमत्कार मान लेते हैं. दहेगावकर ने लोगों से अपील की कि सामाजिक स्वास्थ्य बनाए रखें और जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार करें.

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