आजादी का एहसास क्या होता है, यह राजस्थान के सगत सिंह से बेहतर कौन समझ सकता है. राजस्थान के बाड़मेर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर इंद्रोई गांव निवासी सगत सिंह तीस सालों से जंजीरो में कैद होकर जानवरों से भी बदतर हालात में जीने को मजबूर था. अब जब वो तीस साल बाद जंजीरों से आजाद हुआ तो उसका खुशी का ठिकाना नहीं था. उसके चहरे से उसकी खुशी साफ झलक रही थी.
पहली बार चेहरे पर दिखाई दी खुशी
जयपुर से आई सामाजिक अन्वेषण एवं शोध संस्थान की टीम ने उसे जंजीरों से आजाद करवाकर उसे इलाज के लिए जोधपुर रवाना किया तो उसके चेहरे पर पहली बार खुशी दिखाई दी. उसने कैद से मुक्त करवाने वाली सामाजिक अन्वेषण एवं शोध संस्थान के लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया और परिवार के सदस्यों ने आभार जताया.
पेड़ से बंधा रहता था सगत
घर के बाहर पेड़ से बंधा सगत सिंह कई सालों से खुले आसमां तले पशुओं की तरह जिंदगी बसर कर रहा था. किसी ने भी उसे मुक्त करवाने की कोशिश नहीं की. कड़ाके की ठंड, भीषण गर्मी और बारिश के मौसम में वह पेड़ के नीचे जिंदगी बसर करने को मजबूर था. जिस पांव में जंजीर बंधी थी वहां पुराने घाव के निशान नजर आ रहे थे. उसके पास गंदे कपड़े और बदबूदार बिस्तर थे, जहां चारों तरफ मक्खियां भिनभिना रही थीं.
जोधपुर में होगा इलाज
सगत के परिवार वालों के पास इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं थे. जब इस बारे में सामाजिक अन्वेषण एवं शोध संस्थान को पता चला तो संस्था के कुछ सदस्य बाड़मेर पहुंचे और मानसिक
विक्षिप्त सगतसिंह को जंजीरों से मुक्त करवा कर मनोचिकित्सालय जोधपुर में इलाज के लिए भिजवाया, जहां पर सगत का मुफ्त उपचार किया जाएगा.