
वैज्ञानिकों ने 16वीं सदी की एक महिला के चेहरे को तकनीक की मदद से रिक्रिएट किया है. उसके मुंह के भीतर ईंट ठूंसी गई थी. इसके पीछे की वजह में कहा गया कि वो मरे हुए इंसानों को न खा ले, इसलिए ऐसा किया गया. इटली के स्थानीय लोगों का मानना था कि ये महिला वैंपायर थी. इस कहानी के बारे में तब पता चला जब लाजारेटो नुओवो के एक द्वीप पर कब्रिस्तान की खोज हुई. 1500 और 1600 के दशक के अंत में बुबोनिक प्लेग के दौरान क्वारंटीन के रूप में इस जगह का इस्तेमाल किया गया था. साल 2006 में पुरातत्व अध्ययनों में कुछ ऐसे शव मिले, जो सदियों पहले दफनाए गए थे.
न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, फोरेंसिक शोधकर्ता सिसरो मोरेस ने साउथ वेस्ट न्यूज सर्विस को इस विचित्र खोज के बारे में बताया है. उन्होंने कहा, 'जब उन्हें कथित तौर पर एक वैंपायर, जिसे लोग चुड़ैल भी कहते थे, का पता चला, जो उस समय के लोकप्रिय मिथक के अनुसार प्लेग के लिए जिम्मेदार लोगों में से एक थी, तो उन्होंने पत्थर (ईंट) को एक सुरक्षात्मक उपाय के रूप में उसके मुंह में ठूंसा. जिससे उसे भोजन करने और अन्य लोगों को संक्रमित करने से रोका जा सके.'
रिकंस्ट्रक्शन तकनीक का उपयोग करते हुए मोरेस ने जांच की कि क्या यह "संभव" था कि उसके मुंह में ईंट ठूंसी गई थी, वो भी तब जब वो जीवित थी. मरी नहीं थी. क्योंकि उसके दांतों को नुकसान नहीं पहुंचा था, न ही शरीर के टिशूज को.'
स्वभाविक रूप से उसकी मौत के बाद ऐसा कर पाना आसान होता. ऐसी भी अटकलें हैं कि किसी ने "भूत भगाने" के लिए उसके मुंह में ईंट डाल दी थी ताकि वो मरने के बाद दूसरों को काट न सके और संक्रमित न कर सके. पिछले अध्ययनों से पता चला है कि जो खोपड़ी मिली है, वो एक निम्न-वर्ग की यूरोपीय महिला की थी, जिसकी मौत 61 साल की उम्र में हुई थी.
नए अध्ययन के लिए, वैज्ञानिकों ने खोपड़ी को फिर से रिक्रिएट किया और स्टायरोफोम से एक 'ईंट' बनाई, ताकि ये पता लगाया जा सके कि उसका इस्तेमाल कब हुआ था, मौत से पहले या बाद में. हालांकि इस सदियों पुराने रहस्य पर कई सवाल बने हुए हैं. मोरेस को लगता है कि वो इन सवालों के जवाब दे सकते हैं कि क्या 'मुंह में ईंट डालना संभव होगा, जिससे हड्डी और मुंह के अन्य हिस्से बरकरार रहें.