इन दिनों पाकिस्तानी महिला सीमा हैदर (Seema Haider) और उसके प्रेमी सचिन मीणा (Sachin Meena) के किस्से हर किसी की जुबान पर है. लेकिन इस लव स्टोरी को जासूसी के एंगल से भी जोड़कर देखा जा रहा है. यानि माना जा रहा है कि सीमा कोई पाकिस्तानी एजेंट हो सकती है जो कि जासूसी के लिए भारत आई है. हालांकि, इस बात की अभी पुष्टि नहीं हो पाई है. फिर भी इस मामले में अभी जांच जारी है. इसके लेकर सच तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन आज हम आपको भारत की उस महिला जासूस के बारे में बता रहे हैं जिसने देश के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी. इस जासूस ने एक पाकिस्तानी से शादी की, ससुराल में रही और गर्भवती भी हुई लेकिन उसका फोकस देश को खुफिया जानकारी देना ही रहा.
'कॉलिंग सहमत'
साल 2018 में आलिया भट्ट की एक फिल्म 'राजी' रिलीज हुई थी. 'राज़ी' फिल्म की कहानी सहमत खान जैसी बहादुर जासूस के किरदार पर थी. लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि यह फिल्म रिटायर्ड नेवी ऑफिसर हरिंदर सिक्का की सच्चे पात्रों पर लिखी किताब 'कॉलिंग सहमत' पर आधारित थी. यानी सहमत खान (बदला गया नाम) सचमुच में थी. आज हम आपको इसी सहमत खान की कहानी बताने जा रहे हैं. 'कॉलिंग सहमत' में सहमत की असली पहचान और ठीक लोकेशन को गुप्त रखा गया है.
आम सी लड़की थी, कोई पेशेवर जासूस नहीं
किताब के मुताबिक, कहानी शुरु होती है सन 1971 से. इंडिया-पाकिस्तान के युद्ध से पहले भारतीय सेना को एक जासूस की जरूरत थी जो पाकिस्तान के मंसूबों का पता लगा सके और दुश्मन की हरकतों पर नजर रख सके. इस काम के लिए कश्मीर के एक बिजनेस मैन ने कॉलेज ने पढ़ने वाली अपनी बेटी सहमत को राजी कर लिया. अजीब बात है कि सहमत कोई पेशेवर जासूस थी ही नहीं बल्कि वह तो बस एक आम सी लड़की थी जो देश की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती थी.
'सहमत ने दी अहम खुफिया जानकीरियां'
ट्रेनिंग के बाद सहमत का निकाह पाकिस्तानी आर्मी के एक ऑफिसर के साथ कर दिया गया. सहमत विदा होकर ससुराल (पाकिस्तान) चली गई. चूंकि पति पाकिस्तानी सेना में अधिकारी था तो सहमत ने ससुराल में रहते हुए ही भारत के खिलाफ पाकिस्तान के मंसूबों को लेकर भारत को बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराई. 'कॉलिंग सहमत' के मुताबिक उसने भारत को ऐसी -ऐसी खुफिया जानकारियां दी थीं जिसकी वजह से कई लोगों की जान बच सकी थी.
'वापस देश लौटी तो गर्भवती थी'
सहमत उन गिने चुने सीक्रेट एजेंट में से एक थीं, जो पाकिस्तान में जासूसी करने बाद भी जिंदा भारत लौट सकी थीं. इसे देश के लिए अपनी जिंदगी लगा देना ही कहेंगे कि सहमत 2 साल दुश्मनों के बीच रहकर जब भारत वापस आई तो वह गर्भवती थी. बाद में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया जो भारतीय सेना में शामिल हुआ.
'पंजाब में रहती हैं सहमत, भारतीय सेना में है बेटा'
हरिंदर सिक्का को ये किताब लिखने ख्याल तब आया जब कारगिल युद्ध के बारे में रिसर्च करते हुए उनकी मुलाकात भारतीय सेना में अधिकारी सहमत के बेटे से हुई. उसने अपनी मां की बहादुरी के बारे में विस्तार से बताया. कहते हैं कि सहमत इस समय पंजाब के मलेरकोटला में रहती हैं और इसके बाद सिक्का उनसे मिलने भी गए थे.
'खुफिया जानकारी के लिए जोखिम में डाल दी थी जान'
सिक्का ने सहमत द्वारा भारतीय खुफिया विभाग को दी गई सभी सूचनाओं की जांच की और सब कुछ सच निकला. किताब को पूरा करने में उन्हें 8 साल लग गए. जिस समय सहमत की शादी पाकिस्तान में हुई थी, उस समय पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध आसन्न होता जा रहा था. भले ही सहमत को केवल एक सूत्रधार बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया था, लेकिन सहमत गुप्त जानकारी हासिल करने के लिए उससे भी आगे निकल गई थी और जान तक जोखिम में डाल दी थी.
...तो गुमनाम रह जाती सहमत की कहानी
किताब में हरिंदर ने बताया है कि सहमत को देखकर उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि ये महिला इतनी बहादुर जासूस हो सकती है. साथ ही अगर सिक्का ने 'कॉलिंग सहमत' न लिखी होती तो देश के कई अन्य जासूसों की तरह सहमत की कहानी भी हमेशा के लिए गुमनाम रह जाती.