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मरे हुए रिश्तेदार, सफेद रोशनी और... मरते वक्त इंसान के दिमाग में क्या चलता है, पता चल गया

वैज्ञानिकों ने चार लोगों पर एक स्टडी की है, जिसमें पता चला है कि मरते वक्त इंसान के दिमाग में क्या चल रहा होता है. इन सभी लोगों के वेंटिलेटर हटा दिए गए थे. सभी की मौत हो गई थी.

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इंसान के दिमाग की आखिरी एक्टिविटी को जानने के लिए हुई स्टडी (तस्वीर- Pixabay)
इंसान के दिमाग की आखिरी एक्टिविटी को जानने के लिए हुई स्टडी (तस्वीर- Pixabay)

जब इंसान की मौत हो रही होती है, तब उसके दिमाग में क्या कुछ चलता है, इस बारे में बताने के लिए वैज्ञानिकों ने सबूत पेश किए हैं. इससे पहले मौत के मुंह में सामने के बाद लौटकर आने वाले लोगों ने सफेद रोशनी और लंबे वक्त पहले मर चुके अपने रिश्तेदार दिखने की बात कही हैं. विशेषज्ञों का दावा है कि ये एक्टिविटी दिमाग के उस हिस्से में दर्ज की गई, जो सपने देखने, मिर्गी के दौरान होश खोने और चेतना (कॉन्शियसनेस) में बदलाव वाली स्टेज से जुड़ा होता है. 

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मिरर की रिपोर्ट के अनुसार, इसके लिए वैज्ञानिकों ने उन चार मरीजों की जांच की, जिनकी मौत कार्डियक अरेस्ट के बाद हुई थी, जबकि उनके दिमाग में चल रही इलेक्ट्रिक एक्टिविटी को इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) द्वारा मापा जा रहा था.

चारों कोमा में थे, कोई रिस्पॉन्स नहीं दे रहे थे और जब मेडिकल मदद से उन्हें ठीक करने की सभी उम्मीदें खत्म हो गईं, तो उनके परिवार की अनुमति से उनके लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद कर दिया गया. अब चूंकी इन्हें जीवित रखने वाले वेंटिलेटर हटा दिए गए. जिसके बाद दो लोगों में गामा एक्टिविटी बढ़ने के साथ ही हार्ट रेट बढ़ने लगा.

इन दोनों मरीजों को पड़ा था दौरा

गामा वेव एक्टिविटी को दिमाग में सबसे तेज़ माना जाता है और यह चेतना से जुड़ी होती है. इन दोनों को ही दौरा पड़ा था, लेकिन मौत के एक घंटे पहले तक ऐसा नहीं हुआ.

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रिसर्च के सह लेखक और मिशिगन सेंटर फॉर कॉन्शियसनेस साइंस के फाउंडिंग डायरेक्टर डॉक्टर जॉर्ज मशॉर ने कहा, 'मरने की प्रक्रिया के दौरान एक निष्क्रिय (जो काम न करे) दिमाग से कितना ज्वलंत अनुभव निकल सकता है, वह एक न्यूरोसाइंटिफिक विरोधाभास है. डॉ. बोरजिगिन ने इस महत्वपूर्ण स्टडी का नेतृत्व किया है, जो न्यूरोफिजियोलॉजिकल मकैनिजम पर प्रकाश डालने में मदद करती है.'

वहीं बाकी दो मरीजों में हार्ट रेट समान दर से नहीं बढ़ा और न ही ब्रेन एक्टिविटी बढ़ी. इससे करीब 10 साल पहले ऐसी ही स्टडी जानवरों पर की गई थी. कार्डियक अरेस्ट के बाद ऑक्सिजन कम होने से इंसान और जानवर दोनों के निष्क्रिय होते दिमाग में गामा एक्टिवेशन को रिकॉर्ड किया गया.

ये स्टडी काफी कम लोगों पर की गई है, इसलिए ये टीम सामने आए नतीजों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई बयान देने से बच रही है. उन्होंने कहा कि ये पता करना भी नामुमकिन है कि मरीजों ने क्या अनुभव किया, क्योंकि वो ये बताने के लिए जीवित ही नहीं थे.
 
इनका कहना है कि बड़े स्तर पर स्टडी करने से, और अधिक जरूरी आंकड़े मिल सकते हैं. इससे पता चल सकता है कि गामा एक्टिविटी में होने वाली ये हलचल मौत से ठीक पहले की चेतना का प्रमाण है या नहीं. स्टडी में सामने आए नजीतों को जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित किया गया है.

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