थुक्से रिनपोछे दो साल की उम्र में दार्जिलिंग और बाद में अपनी आगे की पढ़ाई के लिए भूटान भेजे गए एक लद्दाखी बौद्ध भिक्षु हैं. वे लद्दाखी और अपनी मूल संस्कृति नहीं जानते थे, लेकिन वह भाषा और परंपराएं सिखाने का श्रेय स्थानीय फिल्मों को देते हैं.
रिनपोछे ने लेह में शुक्रवार को तीसरे लद्दाख इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह के दौरान कहा, ‘मेरे ख्याल से फिल्में एक ऐसी चीज हैं, जिनसे आप सीख सकते हैं.’ वह अपने हॉलीनेस ग्वालयोंग द्रुकपा के धार्मिक राज प्रतिनिधि हैं, जो उस द्रुकपा वंश का प्रमुख है जिसके जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 267 मठ हैं.
उन्होंने बताया, ‘मैंने दो साल की उम्र में लद्दाख छोड़ दिया था. मुझे पढ़ने के लिए 12 साल के लिए दार्जिलिंग भेज दिया गया और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए भूटान चला गया. मैं तीन साल पहले ही लद्दाख लौटा और मुझे एहसास हुआ कि मैं लद्दाखी नहीं बोल सकता. अब मैं इसमें सहज हूं और लद्दाखी फिल्मों के जरिए यह भाषा सीख रहा हूं.’
रिनपोछे ने कहा, ‘हमारे पास एक छोटा सा फिल्मोद्योग है, लेकिन हम डीवीडी लेने के आदी हैं, इसलिए मैंने फिल्मों और गीतों के माध्यम से भाषा पर पकड़ बनाई. मुझे पारंपरिक परिधान, विवाह समारोह की भी जानकारी नहीं थी, मैंने यह सब फिल्मों से सीखा. इसलिए मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि फिल्में सिखाने का एक बहुत अच्छा माध्यम हो सकती हैं.’
यही नहीं उन्होंने कहा कि वह इस बात से खुश हैं कि लद्दाख में लोगों का ऐसा छोटा सा समूह है, जो फिल्म निर्माण में दिलचस्पी रखता है.
लद्दाख क्षेत्र में मुट्ठीभर ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्हें आर्थिक सहायता, सरकारी मदद और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता की उम्मीद है, जिससे एक दिन उनकी जिंदगी की दिशा बदल जाएगी. यहां फिल्म दिखाने के लिए भी कोई उचित जगह नहीं हैं. हालांकि, लद्दाख फिल्म एवं कल्चर सिटी को प्रतिभा विकसित करने की जगह बनाने की योजना पर काम चल रहा है.